पिछले महीने श्री लंका में हुए आतंकी हमलों के मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही बरतने और भारत से मिली गुप्त जानकारी को हल्के में लेने के आरोप में निलंबित चल रहे पुलिस इंस्पेक्टर-जनरल पूजित जयासुंदरा ने देश के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना पर आरोप लगाया कि हमले के पहले पुलिस द्वारा की जा रही इस्लामी कटटरपंथियों की जाँच सिरिसेना ने रुकवा दी थी। जयासुंदरा के मुताबिक इसके लिए सिरिसेना ने खुद को डायरेक्ट रिपोर्ट करने वाली स्टेट इंटेलिजेंस सर्विस (एसआईएस) का इस्तेमाल किया था।
गुप्तचर व सुरक्षा विभागों में संवाद की कमी
अपनी 20 पन्नों की शिकायत में जयासुंदरा राष्ट्रपति सिरिसेना के अंतर्गत आने वाले और सीधे उन्हें रिपोर्ट करने वाले सुरक्षा विभाग और गुप्तचर एजेंसियों के बीच गंभीर रूप से संवाद की कमी को रेखांकित किया है। उन्होंने यह कहा कि देश की चोटी की गुप्तचर एजेंसी एसआईएस ने पुलिस को आदेश दिया था कि इस्लामिक उग्रवादियों के खिलाफ पुलिस की चल रही जाँच चलने दी जाए। यह जाँच पुलिस का टेररिस्ट इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (आतंकी जाँच विभाग) कर रहा था, और इसमें शामिल संस्थाओं में से एक नेशनल तौहीद जमात भी थी, जिस पर इस समय धमाकों का शक है।
जयासुंदरा के आरोप ऐसे समय आए हैं जब राष्ट्रपति सिरिसेना पहले ही राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीरता से न लेने के आरोपों से दो-चार हैं। एक दूसरे गुप्तचर अधिकारी सिसिरा मेंडिस ने संसदीय पैनल को बताया कि इन धमाकों को रोका जा सकता था। मेंडिस के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठकें नियमित अंतराल पर नहीं होतीं थीं जिससे ऐसे हमलों की धमकी जैसे खतरों की समीक्षा नहीं हो पाई।
जयासुंदरा ने एसआईएस पर पुलिस को भारत से मिली श्री लंका में (तब) संभावित इस्लामी आतंकी हमले की ‘टिप’ साझा नहीं साझा करने का भी आरोप लगाया है। इससे पहले इकोनॉमिक टाइम्स में पद से हटाए गए श्री लंका पुलिस के प्रमुख (यानी जयासुंदरा) के ही हवाले से दावा किया गया था कि उन्हें मिली टिप पर भारत-पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों को देखते हुए भरोसा नहीं हुआ था।
जिम्मेदारी न लेने के कारण हटाए गए थे जयासुंदरा
सिरिसेना ने ईस्टर धमाकों के बाद जयासुंदरा को इसलिए निलंबित कर दिया था क्योंकि जयासुंदरा ने हमले के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराए जाने देने से मना कर दिया था। उनके मुताबिक उन्हें यह भी पेशकश मिली थी कि यदि वे जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दें तो उन्हें कोई कूटनीतिक पद दे दिया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि पिछले वर्ष अक्टूबर में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना के बीच मतभेद बढ़ने के बाद से ही उन्हें हाशिए पर डाल दिया गया था।