Wednesday, November 13, 2024
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श्रीलंका में फिर लगा आपातकाल: चुनाव में FREE वाला कल्चर ले डूबा देश को, घट गए दो-तिहाई कर दाता

सबरी ने बताया कि साल 2020 के शुरू में देश में 15,50,000 करदाता थे, जो साल 2021 के अंत तक 4,12,000 रह गए। दरअसल, नवंबर 2019 में राष्ट्रपति राजपक्षे सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए देश में व्यापक कर कटौती की थी। इससे लगभग दो तिहाई करदाता घट गए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे (Sri Lankan President Gotabaya Rajapaksa) ने शुक्रवार-शनिवार (6-7 मई 2022) की आधी रात को एक बार फिर आपातकाल (Emergency) लगा दिया। राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा कि बढ़ते आर्थिक संकट को लेकर राष्ट्रपति के इस्तीफे की माँग को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को ट्रेड यूनियनों ने भी देशव्यापी हड़ताल की थी। ऐसे में कानून-व्यवस्था को बनाए रखना जरूरी है। उधर श्रीलंका के वित्त मंत्री ने बताया कि अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए साल 2019 में राजपक्षे सरकार द्वारा की गई व्यापक कर कटौती के बाद देश में करदाताओं की संख्या लगभग 10 लाख कम हो गई है।

शुक्रवार को ट्रेड यूनियनों के हड़ताल के बाद छात्रों ने देश की संसद का घेराव करने की चेतावनी दी थी। श्रीलंका के लोगों का आरोप है कि राष्ट्रपति गोतबाया देश में जारी आर्थिक संकट से निपटने में पूरी तरह नाकाम साबित हो चुके हैं। इसके बावजूद वे अपना पद नहीं छोड़ रहे हैं।

विद्यार्थियों ने चेतावनी दी है कि राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने पद नहीं छोड़ा तो वे संसद का घेराव करेंगे। वहीं, इंटर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट फेडरेशन (IUSF) ने संसद तक जाने वाले रास्तों को बंद कर दिया है और वहाँ लगातार प्रदर्शन कर रही है। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए आँसू गैस के गोले और वाटर कैनन का इस्तेमाल कर रही है। व्यापार संघ, स्वास्थ्य, डाक, बंदरगाह सहित सरकारी सेवाओं से जुड़े ज्यादातर व्यापार एवं कर्मचारी संघ हड़ताल में शामिल हैं।

इमरजेेंसी लगाने के बाद सरकार सार्वजनिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, विद्रोह व दंगा और नागरिक आपूर्ति आदि के लिए नियम कठोर नियम बना सकती है। इस दौरान राष्ट्रपति के आदेश के बाद किसी भी व्यक्ति की संपत्ति पर कब्जा किया जा सकता है और किसी भी परिसर की तलाशी ली जा सकती है। बिना कारण बताए किसी को गिरफ्तार भी किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर राष्ट्रपति किसी भी कानून को बदल या निलंबित भी कर सकते हैं।

बता दें कि चीन के कर्ज के जाल में फँसने के बाद श्रीलंका के हालात बेहद खराब हो चुके हैं। आर्थिक संकट के कारण वहाँ के लोगों को जरूरी चीजें तक नहीं मिल रही हैं और महँगाई अपने चरम पर पहुँच गई है। बिजली और परिवहन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की स्थिति जर्जर हो चुकी है। इसको लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है।

देश में करदाताओं की संख्या 10 लाख घटी

श्रीलंका के वित्त मंत्री अली साबरी ने बताया कि पिछले दो वर्षों में देश में लगभग 10 लाख करदाता कम हो गए हैं। सबरी ने बताया कि साल 2020 के शुरू में देश में 15,50,000 करदाता थे, जो साल 2021 के अंत तक 4,12,000 रह गए। दरअसल, नवंबर 2019 में राष्ट्रपति राजपक्षे सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए देश में व्यापक कर कटौती की थी। सरकार ने मूल्य वर्धित कर (VAT) को 15 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया था और सात अन्य करों को भी समाप्त कर दिया था। सबरी ने इसे सरकार की ऐतिहासिक गलती बताया।

इन कर कटौती के कारण अगले वर्ष देश की क्रेडिट रेटिंग में गिरावट आई और श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में अलग-थलग पड़ गया। जून 2019 में देश का विदेसी मुद्रा भंडार 8,864 मिलियन डॉलर के पर था, जो जनवरी 2022 में 2,361 मिलियन डॉलर पर आ पहुँचा। इसमें कोविड-19 की स्थिति ने और समस्या उत्पन्न की। साल 2018 में श्रीलंका के पर्यटन उद्योग में उछाल आया और $4.4 मिलियन राजस्व के रूप में प्राप्त हुआ, लेकिन कोविड के कारण साल 2021 में यह गिरकर $200 मिलियन तक रह गया।

इसके पहले भी लगा था इमरजेंसी

इसके पहले देश में 1 अप्रैल को आपातकाल लागू किया गया था। हालाँकि, कुछ दिन बाद ही 5 अप्रैल को इसे हटा लिया गया था। दरअसल, उस समय आपातकाल लगाने का निर्णय 31 मार्च 2022 को राष्ट्रपति आवास के बाहर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के बाद लिया गया था। प्रदर्शन के दौरान पुलिस को बल प्रयोग करते हुए 45 लोगों को गिरफ्तार भी किया था। इसके अलावा, अलग-अलग शहरों में कर्फ्यू लगा दी गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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