भारतवंशियों की अमेरिका में, टेक की दुनिया में बढ़ती पहुँच में एक नया अध्याय जोड़ते हुए सुंदर पिचाई सर्च इंजन गूगल की मालिक कम्पनी अल्फ़ाबेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनने जा रहे हैं। 2015 में बनी अल्फ़ाबेट कम्पनी के पास गूगल सर्च इंजन, जीमेल, यूट्यूब समेत गूगल ग्रुप की सभी कंपनियों को नियंत्रित करने का हक है। अभी तक अल्फ़ाबेट के अध्यक्ष सर्गेई ब्रिन और सीईओ लैरी पेज थे, लेकिन दोनों ने ही आज रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है। गूगल कम्पनी की शुरुआत इन्हीं दोनों ने की थी।
Google chief Sundar Pichai named CEO of parent company Alphabet
— ANI Digital (@ani_digital) December 3, 2019
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सुंदर पिचाई गूगल का जो कॉर्पोरेट साम्राज्य संभालेंगे, उसमें जीमेल, यूट्यूब, एंड्रॉइड जैसी जानी-मानी कंपनियों और सेवाओं के अलावा ड्रोन के द्वारा डिलीवरी करने, अमेरिकी सेना व चीन सरकार के साथ मिलकर काम करने जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।
गूगल के पहले माइक्रोसॉफ्ट में भी सीईओ की कुर्सी एक भारतवंशी सत्या नडेला को मिल चुकी है। इसके अलावा वित्तीय सेवाएँ देने वाली मास्टरकार्ड और कम्प्यूटर पर कई तरह के सॉफ्टवेयर बनाने वाली एडोब के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के पद पर भी क्रमशः अजय सिंह बंगा और शांतनु नारायण काबिज़ हैं। कुछ समय पहले तक पेप्सिको कम्पनी की सीईओ भी भारतवंशी इंदिरा नूयी ही थीं, जो 2018 में 12.5 साल सेवाएँ देकर हटीं।
गंभीर और मितभाषी पिचाई कड़े प्रशासक माने जाते हैं। गूगल में उनके सीईओ बनने के बाद से एक ओर जहाँ कम्पनी के कारोबार में गति के साथ दिशा भी देखने को मिली है, वहीं दूसरी ओर उन पर यह भी आरोप लगते हैं कि उनके समय में कम्पनी में बोलने, सोचने आदि की आज़ादी पर बंदिशें लग रहीं हैं। उनके ही समय में कम्पनी में जेम्स डे’मोर काण्ड हुआ था, जब कम्पनी की महिला आरक्षण नीति पर सवाल करने को लेकर एक कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया गया था।
इसके अलावा पिचाई के सामने एक और बड़ी चुनौती अमेरिकी संसद के सवालों का जवाब देने की होगी। जहाँ कई रिपब्लिकन सांसद गूगल में फेसबुक की ही तरह लिबरल-समर्थक दुराग्रह और पूर्वाग्रह का शक जता चुके हैं, वहीं वामपंथी डेमोक्रेट्स को शक है कि गूगल लोगों का डाटा बिना उनकी मर्ज़ी के चुरा कर उनकी निजता का हनन कर रही है। इसके अलावा दोनों ही पार्टियों के सांसद डिजिटल विज्ञापनों के बाजार में गैर-क़ानूनी तरीके से एकाधिकार जमाने की कोशिश का भी आरोप गूगल पर लगा चुके हैं। ऐसे में कुछ टेक टिप्पणीकारों का यह भी मानना है कि अमेरिकी संसद की सुनवाई के पहले यह बदलाव कम्पनी के कर्मचारियों के बीच लगातार लोकप्रियता खो रहे पिचाई को बलि का बकरा बना कर बाहर करने की दिशा में भी कदम हो सकता है।