इस्लामी मुल्क पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच स्थित वेश-चमन सीमा पर हजारों पख्तून प्रदर्शनकारियों ने डेरा डाल दिया है। प्रदर्शनकारी सरकार की नई नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस नीति के तहत वैध वीजा और पासपोर्ट के बिना सीमा पार करने की अनुमति नहीं है। इस फैसले ने चमन के लगभग 12 लाख लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। पहले वे स्वतंत्र रूप से सीमा के आर-पार आते-जाते थे।
पाकिस्तान मीडिया संस्थान डॉन के मुताबिक, स्थानीय लोगों और सैन्य नेताओं को मिलाकर बनी बनी पाकिस्तान की राष्ट्रीय शीर्ष समिति ने पिछले साल फैसला सुनाया था कि केवल वैध पासपोर्ट और वीजा वाले लोगों को ही चमन सीमा पार करने की अनुमति दी जाएगी। पहले पाकिस्तानी और अफगान अपने-अपने पहचान पत्र दिखाकर सीमा पार करते थे।
हालाँकि, सरकार के इस निर्णय से लाखों लोगों प्रभावित हुए हैं। इसको लेकर उनमें आक्रोश भड़क उठा है। इस नीति के विरोध में स्थानीय पख्तून हजारों की तदाद में लगभग 180 दिनों से चमन और अफगान जिले स्पिन-बोल्डक के बीच अधिकृत सीमा क्रॉसिंग फ्रेंडशिप गेट पर डेरा डाल दिया है।
इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने बदलते मौसम की मार सही। आँसू गैस के गोले को सहन किया है और गोलियों से घायल भी हुए हैं। वे तब तक उस जगह को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, जब तक कि उनकी बात सरकार द्वारा सुनी नहीं जाती। ‘चमन पारलट’ नामक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व चमन निवासी अखवोंड द्वारा किया जा रहा है।
अखवोंड का कहना है कि पख्तून आजादी की माँग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे सिर्फ अपना सामान्य जीवन वापस चाहते हैं जिसमें वे सीमा पार स्वतंत्र रूप से आ-जा सकें। अखवोंड बताते हैं कि पाकिस्तान की तरफ की सीमा चमन और अफगानिस्तान में वेश कहलाता है और वे सब इसे चमन सीमा के रूप में संदर्भित करते हैंं।
लगातार निगरानी चौकियों के बढ़ने और कंटीले तार लगाने से पहले भी यह जमीन दोनों ओर के पख्तूनों के लिए एक घर की तरह था। सीमा के दोनों ओर के पख्तून ना सिर्फ एक परिवार की तरह साथ रहते थे, बल्कि वे राष्ट्रीयता, जनजाति संस्कृति और मजबूत भावनाओं के बंधन से भी बँधे हुए थे।
ब्रिटिश विदेश सचिव सर मोर्टिमर डूरंड ने 1893 में अफगानिस्तान और भारत के बीच सीमा की स्थापना की थी और पख्तून प्रांत को अलग कर दिया था। दोनों देशों के बीच फैली हुई 2,430 किलोमीटर लंबी डूरंड रेखा पख्तून जनजातीय क्षेत्रों से होकर गुजरती है और उन्हें दो अलग-अलग मुल्कों में विभाजित करती है। पाकिस्तान बनने के बाद डूरंड रेखा उसे विरासत में मिली, लेकिन इस पर कोई औपचारिक समझौता या मान्यता नहीं है।
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) के उपाध्यक्ष काशिफ पानेजई के मुताबिक, सीमा पर जो इलाका बँटा हुआ है, वह सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है, वह उनका घर है। उन्होंने कहा, “डूरंड रेखा कई गाँवों को आधे में विभाजित करती है और कई लोगों को उनके कृषि वाली भूमि से विभाजित करती है। यह जनजातियों और अन्य समूहों को बीच से बाँटता है।”
पिछले छह महीनों में प्रदर्शनकारी प्रशासन के साथ कई दौर की बातचीत कर चुके हैं। हालाँकि, इसका कोई फायदा नहीं हुआ। बैठकों में अधिकारी हमेशा यही कहते हैं कि स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर है, क्योंकि वीसा और पासपोर्ट की जरूरत पर सैन्य नेतृत्व ने निर्णय लिया है। हालाँकि, अखवोंड इस्लामाबाद जाकर सेना प्रमुख से बात करने को तैयार हैं, लेकिन कई प्रयास के बाद भी वे विफल रहे हैं।
वहीं, अधिकारी असफल वार्ता के लिए प्रदर्शनकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। चमन के डिप्टी कमिश्नर कैप्टन राजा अतहर अब्बास ने डॉन को बताया, “यदि आप कानूनी चश्मे से देखें तो सरकार का निर्णय अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाओं के अनुरूप है। प्रत्येक राज्य को अपने स्वयं के सीमा नियम बनाने का अधिकार है। दस्तावेज के बिना अफगान नागरिकों का पाकिस्तान में प्रवेश चिंताजनक है।”
कैप्टन अब्बास स्वीकार करते हैं कि चमन के नागरिक वास्तविक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य प्रदर्शनकारियों को समायोजित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और मृत्यु और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं जैसे मानवीय मुद्दों पर उदार रहा है। अपने सामान्य जीवन की बहाली की माँग को लेकर तंबू में हजारों लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है।