अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में 5 दिसम्बर को सुनवाई हुई है, जिसमें ‘कैम्पस के नेताओं को जिम्मेदार ठहराए जाने और यहूदी विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने’ को लेकर सुनवाई हुई। कॉलेजों में यहूदी विरोधी घृणा के कारण ये सुनवाई करनी पड़ी।
गौरतलब है कि 7 अक्टूबर, 2023 को इजरायल पर इस्लामी आतंकी संगठन हमास के हमले के बाद अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में छात्रों ने इसका जश्न मनाया था और यहूदियों के विरोध में नारे लगाए थे। यहूदी छात्रों को परेशान भी किया गया था। हार्वर्ड के छात्रों ने हमास के समर्थन में एक प्रेस रिलीज भी जारी किया था।
🚨🚨🚨Presidents of @Harvard @MIT and @Penn REFUSE to say whether “calling for the genocide of Jews” is bullying and harassment according to their codes of conduct. Even going so far to say it needs to turn to “action” first. As in committing genocide.
— Rep. Elise Stefanik (@RepStefanik) December 5, 2023
THIS IS UNACCEPTABLE AND… pic.twitter.com/hUY3SgoOOi
इस मामले में अब ‘कॉन्ग्रेस’ (अमेरिकी संसद) सुनवाई कर रही है। संसद ने अमेरिका के हार्वर्ड (Harvard) की अध्यक्ष क्लाऊडीन गे, मैसाचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) की अध्यक्ष सैली कोर्नब्लथ और पेन (Penn) विश्वविद्यालयों की अध्यक्ष एलिज़ाबेथ मैगिल को सुनवाई में बुलाया गया था।
इस दौरान जब कॉन्ग्रेस सदस्य एलिसी स्टेफनिक ने इन तीनों से यूनिवर्सिटी कैम्पस में यहूदियों के नरसंहार के नारे लगाए जाने की निंदा करने को कहा तो इससे इन्होंने मना कर दिया। उनका कहना था कि उनके विश्वविद्यालयों के नियमों के अंतर्गत यह गलत नहीं है। इसलिए वह इसको गलत नहीं ठहराएँगी।
अब स्टेफनिक ने ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर इनके त्यागपत्र की माँग की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, “हार्वर्ड, पेन और MIT की अध्यक्षों ने यह मानने से इनकार कर दिया है कि यहूदियों के नरसंहार का ऐलान उनके नियमों के अनुसार किसी की बेइज्जती या उत्पीड़न है। उन्होंने यहाँ तक कह दिया है कि यह नरसंहार के नारे कार्रवाई में बदलने जरूरी हैं। यानी नरसंहार हो। यह अस्वीकार्य और यहूदी विरोधी है। इन सभी को आज ही त्याग पत्र दे देना चाहिए।”
इस सुनवाई के दौरान स्टेफनिक ने प्रश्नों का इन तीनों से स्पष्ट रूप से ‘हाँ’ या ‘ना’ में उत्तर देने को कहा कि यहूदियों के नरसंहार के नारे लगाना उनके विश्वविद्यालयों के नियमों के अनुसार उत्पीड़न है या नहीं। हालाँकि, यह तीनों स्पष्ट जवाब देने से बचती रहीं और इधर-उधर घुमा कर उत्तर दिया।
इस पर MIT की अध्यक्ष कोर्नब्लथ ने कहा कि यहूदियों के नरसंहार के नारों को तभी उत्पीड़न माना जाएगा जब वह सच में बदल जाएँ। पेन विश्वविद्यालय की अध्यक्ष मैगिल ने कहा कि यह तबी उत्पीड़न जाएँगे जब यह आचरण बन जाएँ। हार्वर्ड की अध्यक्ष गे ने भी कुछ ऐसी ही बात की। इनके इस जवाबों से स्टेफनिक गुस्सा हो गईं और कहा कि इन जवाबों में कोई स्पष्टता नहीं है। उनका कहना था कि यह तीनों इस मामले में स्पष्ट जवाब नहीं दे रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह तीनों अपने विश्वविद्यालयों में यहूदियों के विरुद्ध नारों पर सही एक्शन नहीं ले पाईं।
स्टेफनिक की इन तीनों से काफी तगड़ी बहस हुई। स्टेफनिक का कहना था कि इन लोगों का जवाब हाँ में होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि इन तीनों का आचरण अस्वीकार्य है। उनका कहना था कि यहूदियों के खिलाफ नारों पर एक्शन ना ले पाना इन तीनों की भारी चूक है।