अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर कर्नाटक (Karnataka) में श्रीरंगपट्टनम (Srirangapatna) की जामिया मस्जिद को ध्वस्त करने का आह्वान करने और उसके स्थान पर एक हनुमान मंदिर के निर्माण की माँग करने वाले संत ऋषि कुमार को मंगलवार (18 जनवरी 2022) को गिरफ्तार कर लिया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चिकमगलुरु (Chikkamagaluru) में काली मठ के प्रमुख संत ऋषि कुमार का यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में उन्होंने कथित तौर पर बयान दिया था कि बाबरी मस्जिद की तर्ज पर श्रीरंगपट्टनम की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद को गिरा देना चाहिए, क्योंकि वहाँ पहले एक हनुमान मंदिर स्थित था। इसके बाद पुलिस कुमार को गिरफ्तार कर श्रीरंगपट्टनम ले आई।
पुलिस ने बताया कि ऋषि कुमार (Rishi Kumar) कुछ दिन पहले ही सड़क दुर्घटना में एक बाल कलाकार की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए श्रीरंगपट्टनम आए हुए थे। इस दौरान साधु ने श्रीरंगपटना में जिस ऐतिहासिक मस्जिद की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) देखरेख कर रहा है, उसके सामने खड़े होकर कहा कि इस ढाँचे को भी अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तरह जल्द ही ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए। मस्जिद के परिसर के अंदर खंभे, दीवारें और जल निकाय हिंदू वास्तुकला के प्रतीक हैं।
यह वीडियो रविवार (16 जनवरी 2022) को संत के एक सहायक ने शूट किया था। उन्होंने वीडियो में यह भी कहा कि श्रीरंगपट्टनम में एक मंदिर को मस्जिद में बदल दिया गया है। हिंदुओं को अब जाग जाना चाहिए। हिंदू संगठनों को हाथ मिलाना होगा और एकजुट होकर इस मामले में आगे आना होगा।
बताया जा रहा है कि वीडियो को उनके फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट किया गया था। वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद श्रीरंगपट्टनम पुलिस चिकमंगलूर जिले में स्थित काली मठ में गई और ऋषि कुमार को हिरासत में लेकर स्थानीय अदालत में पेश किया। वहीं, संत अपने बयान पर अडिग हैं और उनका कहना है कि मंदिर को मस्जिद में बदला गया है।
अदालत में संत के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल का बयान विवादास्पद नहीं है। वकील ने तर्क दिया, “मस्जिद में मंदिरों के निशान देखकर उन्होंने अपना दर्द बयां किया था।” वहीं, सरकारी वकील ने संत की रिहाई का विरोध किया। उन्होंने कहा कि उनकी जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा होने का खतरा और सबूतों से छेड़छाड़ का अंदेशा है। कोर्ट ने बुधवार (19 जनवरी 2022) के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बता दें कि यह बयान ऐसे समय में आया है जब कर्नाटक सरकार ने हाल ही में विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया है और राज्य के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की इच्छा व्यक्त की है।