2014 में नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के बाद से मुख्यधारा के मीडिया का परिदृश्य काफी बदल गया है। जो चीजें पहले खामोश थी, अब उन्हें और ज्यादा खामोश नहीं किया जा सकता। डिजिटल मीडिया के आगमन के साथ ही आम जनता के सांस्कृतिक मुद्दों को मुख्यधारा की आवाज मिल गई। ऐसे में एक ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें लोगों ने सिर-आँखों पर बिठा रखा है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी की।
अर्नब गोस्वामी बॉलीवुड में ड्रग रैकेट के खिलाफ अभियान में सबसे आगे रहे हैं। जबकि अन्य उनकी आलोचना में। जहाँ अन्य लोगों ने ड्रग एडिक्ट एक्टर्स के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करने का प्रयास किया, वहीं अर्नब गोस्वामी ने उनके लिए ‘पुड़िया गैंग’, ‘पुड़िया वाले’, ‘आफीमची’ और ऐसे ही कई अन्य शब्दों का इस्तेमाल किया।
इस तरह, संपूर्ण बॉलीवुड ड्रग रैकेट पर पूरे प्रकरण के दौरान, फिल्म इंडस्ट्री के प्रभाव के सांस्कृतिक पहलू को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है। सच कहा जाए, तो मुख्यधारा के मीडिया में बॉलीवुड के प्रतिकूल सांस्कृतिक प्रभाव पर कभी चर्चा नहीं हुई। शीर्ष पत्रकारों और फिल्म उद्योग के सांस्कृतिक मूल्य काफी हद तक समान थे। लेकिन अब वह बदलती दिख रही है, और इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाले शख्स अपनी पीढ़ी के सबसे प्रभावशाली भारतीय पत्रकार हैं: अर्नब गोस्वामी।
कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि वह सिर्फ और सिर्फ टीआरपी के लिए ऐसा कर रहे हैं। यह काफी हद तक सही हो सकता है। लेकिन राजदीप सरदेसाई भी रेटिंग के लिए ऐसा कर सकते थे। राहुल कंवल या बरखा दत्त या और कोई ऐसा कर सकता था लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया। वास्तव में, अर्नब गोस्वामी एकमात्र ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने सांस्कृतिक युद्ध (cultural war) पर प्रकाश डाला है, जिसे अब तक अनदेखा किया गया है।
शनिवार (सितंबर 26, 2020) की रात बहस के दौरान अर्नब गोस्वामी ने गरजते हुए कहा, “आज, मैं बॉलीवुड के नकली अँग्रेज़ को बताना चाहता हूँ, भारतीय सिनेमा छोड़ दो। हमारी संस्कृति और परंपराओं पर बॉलीवुड का प्रभाव बढ़ रहा है। यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि देश की अगली पीढ़ी पर इसका प्रभाव बढ़ता ही जाए। जिस तरह से वे बोलते हैं, जिस तरह से वे चलते हैं, जिस तरह से वे कपड़े पहनते हैं, उसी तरीके की नकल की जा रही है।”
उन्होंने कहा, “हमारी मानसिकता कहाँ जा रही है? पश्चिम के नालों में बहने वाले गंदा पानी को यहाँ के कुछ लोग इसे गंगाजल मानते हैं। वे अपने माथे पर पश्चिम की गंदगी तिलक के रूप में लगा रहे हैं। यह हमारी सनातन संस्कृति और सभ्यता के खिलाफ है। भारतीय संस्कृति का सार सनातन धर्म है लेकिन वे इसके महत्व को नहीं पहचानते हैं। क्योंकि इनके रोम-रोम में इटली वाला रोम बसा है और हमारे रोम-रोम में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बसे हैं।”
अर्नब गोस्वामी ने आगे कहा, “हमारी दृष्टि अयोध्या, काशी, सनातन संस्कृति के मथुरा से प्रेरित है। लेकिन उनका नाम रोम और पेरिस से लिया गया है। इसीलिए वे सनातन धर्म के अपमान को एक उपलब्धि मानते हैं। जो लोग भारत आकर अश्लीलता फैलाते हैं, ड्रग्स का सेवन करते हैं, वे विदेश में भी ऐसा ही करने का साहस नहीं जुटा सकते हैं।”
यह सब काफी अभूतपूर्व है। कुछ साल पहले, यह किसी के लिए भी अकल्पनीय रहा होगा कि मुख्यधारा का मीडिया चैनल प्राइम टाइम के दौरान इस तरह के विचारों को प्रसारित करेगा। और इस तरह से अपनी बात रखना किसी के बस की बात नहीं थी। वह इस समय अपने मन की बात कहने वाले सबसे लोकप्रिय पत्रकार हैं। अर्नब गोस्वामी यहीं नहीं रुके।
उन्होंने कहा, “वे ड्रग्स को उच्च वर्गीय समाज का एक सांस्कृतिक पहचान मानते हैं। धिक्कार है तुम्हारे उच्च समाज के तरीकों को, जिसको ना ही अपने देश और ना ही अपनी परंपरा पर अभिमान है। वो जीते जी मृतक समान है। हमें सनातन धर्म को स्वीकार करना होगा और पश्चिमी संस्कृति को दूर करना होगा।”
इस बहस में कुछ ऐसा हुआ, जो पहले कभी नहीं हुआ था। मुकेश खन्ना ‘शक्तिमान’ ने उन विज्ञापनों के खिलाफ बात की जो परिवार की संस्था के विनाश को बढ़ावा देते हैं। दो साधुओं को भी अपनी राय साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया था और अर्नब गोस्वामी उनके साथ काफी श्रद्धा से पेश आए।
बहस के दौरान जब एक पैनलिस्ट ने साधु को रोकने के लिए अशिष्टता का परिचय दिया तो अर्नब गोस्वामी ने उन्हें डाँटते हुए कहा कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। साधुओं ने निहित स्वार्थों द्वारा हमारी संस्कृति के खिलाफ युद्ध पर बात की और फिल्मों में अपराधियों के महिमामंडन का भी विरोध किया। यह भी सुझाव दिया गया कि साधुओं को सेंसर बोर्ड में जगह दी जाए और एडिटर-इन-चीफ ने इस पर अपनी सहमति व्यक्त की।
शनिवार के शो में एक निश्चित बदलाव को दर्शाया गया था। अर्नब गोस्वामी ने अपने शो पर कुछ समय सनातन धर्म को समर्पित किया। उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “आदि शक्ति माँ कामाख्या, देवी जगदंबा, ईष्टदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश” उनके आशीर्वाद के लिए जिसके परिणामस्वरूप रिपब्लिक भारत कुछ महीनों में ही देश का शीर्ष हिंदी चैनल बन गया है।”
यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह इस तथ्य को उजागर करता है कि अब मुख्यधारा के मीडिया में अर्नब गोस्वामी और अन्य के बीच का अंतर केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक भी है। और जैसा कि किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने एक बार कहा था कि राजनीति में संस्कृति का ह्रास हो रहा है।