अगर आप भी विदेशी मीडिया में भारत विरोधी हिन्दूफोबिक फेक खबरों को देख-देख माथा पकड़ कर बैठ जाया करते हैं और समझ नहीं पाते कि भारत विरोधी ऐसी फेक खबरें लिखने/प्लांट करने वालों का मंतव्य होता क्या है, कौन है इस सबके पीछे? और, सोचते रह जाते हैं कि क्या ये लोग सिर्फ भारत विरोधी-हिन्दूफ़ोबिक मानसिकता के कारण ऐसा करते हैं या इन्हें इस नफरत के कारोबार को चलाने-फैलाने के एवज में प्रत्यक्ष-परोक्ष लाभों की भी बड़ी भूमिका होती है? तो दरअसल आप की सोच सही दिशा में काम कर रही है।
Why i am angry? A US Newspaper today asked me write on Delhi Riots asking how many died on Religion basis in connection with Trump’s visit. Rate was $1500 for 1000 words….My Reply was : Your President Trump rightly call you as Presstitutes @#$%^&* @#$%^ ?? https://t.co/DIdQBusN5a
— J Gopikrishnan (@jgopikrishnan70) February 29, 2020
इन भारत विरोधी खबरों को किस कदर प्लांट किया जाता है विदेशी मीडिया में, उसके मोडस ऑपरेंडी को कल यानी शनिवार को द पायनियर के वरिष्ठ पत्रकार जे गोपीकृष्णन ने एक ट्वीट कर सबके सामने नंगा कर दिया। सीनियर जर्नलिस्ट ने अपने ट्वीट में खुलासा किया कि किस तरह एक अमेरिकी अखबार ने उन्हें दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों में हुई मौतों को सांप्रदायिक आधार पर रिपोर्ट करता एक 1000 शब्द का आर्टिकल लिखने के लिए 1500 अमेरिकी डॉलर (लगभग 1 लाख 10 हजार रुपए) का ऑफर किया। ध्यान रहे कि यह दंगा ठीक उसी समय भड़काया गया था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे।
अपने ट्वीट में जे गोपीकृष्णन ने हिन्दू विरोधी/भारत द्रोही एजेंडे की कलई खोलते हुए इन अमेरिकी बेस्ड लेफ्टिस्ट मीडिया संगठनों को ‘रास्कल्स’, ‘क्रुक्स’ कहा। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इन मीडिया संगठनों को ‘प्रेस्टिट्यूट्स’ कहना भी जायज ठहराया।
गोपीकृष्णन यहीं नहीं रुके। उन्होंने उन भारतीय पत्रकारों को भी लताड़ लगाई, जो कुछ सौ डॉलर्स के लिए अपनी आत्मा बेचते घूमते हैं।
उन्होंने आगे एक और घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मार्च 2012 में जब 2-जी स्कैम सामने आया था, उस वक्त भी एक नॉर्वे बेस्ड अखबार ने उन्हें uninor के पक्ष में रिपोर्ट लिखने के लिए 25000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 18 लाख रुपए) की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।
Based on this Economic Times PAID report – Norway PM/President wrote to Indian PM Manmohan Singh – on how bad is Indian system to foreign companies. Presstitues play all games. Some time i feel – should have pocketed $25,000 and fooled Norway guys after landing India ? https://t.co/K76fx7wZ6v
— J Gopikrishnan (@jgopikrishnan70) February 29, 2020
गोपीकृष्णन इस मामले पर से और पर्दा हटाते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने अपनी कलम गिरवी रखने से मना कर दिया तो देखते हैं कि ठीक उसी ब्रीफ के साथ जिस पर उन्हें लिखने को कहा गया था, वह स्टोरी इकॉनमिक टाइम्स में छपती है, और उसी के हवाले से नॉर्वे के तत्कालीन नेता प्रधानमंत्री को लिखते हैं कि भारत का सिस्टम विदेशी कंपनियों को सुचारु रूप से काम करने में किस तरह से अवरोध पैदा करता है।
PBNS Breaking:
— Prasar Bharati News Services (@PBNS_India) February 28, 2020
Police complaints filed against The Wall Street Journal @WSJ with @DelhiPolice & Maharashtra Police for “defaming particular religion & spreading communal tension” with respect to alleged misreporting on #DelhiViolence & murder of IB official Ankit Sharma. pic.twitter.com/lmAh6Cyy2B
गोपीकृष्णन की बात को सामने रखते हुए जरा उन सारी रिपोर्ट्स को याद करिए, जो मौके-बेमौके भारतीय पत्रकारों द्वारा विदेशी मीडिया के लिए लिखी जाती रही हैं। वो चाहे बरखा दत्त की रिपोर्टिंग हो या राणा अय्यूब नामक प्रोपोगैंडिस्ट का लेख, जो दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों को मुस्लिम नरसंहार कहती है या वॉल स्ट्रीट जर्नल की वह रिपोर्ट, जिसमें मुस्लिम आतंकी भीड़ द्वारा आईबी के अंकित शर्मा की 400 बार चाकू गोद कर की गई हत्या और शव नाले में फेंक देने की जगह, हिन्दू भीड़ को ही अंकित शर्मा की हत्या का दोषी ठहरा दिया जाता है। और जिसकी वजह से वॉल स्ट्रीट जर्नल के खिलाफ कंप्लेंट भी दर्ज की जाती है।
दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों को pogrom कहती राणा अयूब:
I spoke to BBC world on the anti Muslim pogrom in Delhi and the complicity of Narendra Modi. Close to 40 killed so far. Link belowhttps://t.co/PQINiv8Uuh
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) February 27, 2020