चैनल पर अपलोड 22 मिनट 6 सेकेंड की वीडियो में रवीश ने बांग्लादेश में मचाए उत्पात को ‘छात्रों का प्रदर्शन’ बताया। साथ ही प्रधानमंत्री भवन में घुसने वाली दंगाई भीड़ को देश की जनता कहकर वीडियो में संबोधित किया और दिखाया कि बांग्लादेश के लोग पीएम आवास से सोफे, कुर्सियाँ, अटैची, बैग, साड़ी, मछली, बकरी, खरगोश वगैरह लेकर जा रहे हैं। उन्होंने वीडियो में पहले सवाल किया कि क्या इन हरकतों को लूट कहा जा सकता है। आगे खुद जवाब देते हुए बोले- ये लूट नहीं है बल्कि जनता को ये एहसास हुआ है कि उनके पास अधिकार और शक्तियाँ हैं।
Rabies Kumar justifying the L00T in Bangladesh 🤡🤡 pic.twitter.com/ua8yTUkVpz
— desi mojito 🇮🇳 (@desimojito) August 6, 2024
रवीश कुमार जिस भीड़ के कृत्य को शब्दों के हेर-फेर से जस्टिफाई करते दिख रहे हैं और उनकी हरकतों को लोकतंत्र की लड़ाई जैसा दिखा रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि उसी भीड़ ने छात्र प्रदर्शन के नाम कितने लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस भीड़ ने थाने के थाने जला डाले। उसमें काम करने वाले पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। यही भीड़ जो आरक्षण के नाम पर सड़कों पर उतरी है और जिसकी ताकत देख रवीश कुमार हैरानी जता रहे हैं वो खुलेआम हिंदुओं को निशाना बना रही है, मंदिरों पर हमले कर रही है… लेकिन रवीश कुमार जैसे लोग इसे छात्रों का सफल विद्रोह बताकर संबोधित कर रहे हैं और शेख हसीना जिन्हें खुद चुनावों के जरिए सत्ता मिलती रही उन्हें तानाशाह के तौर पर दिखा रहे हैं।
उनका कहना है कि मुल्क में जो आगजनी हुई है, संपत्तियों को तोड़फोड़ा गया है वो सिर्फ जनता का गुस्सा है और सोशल मीडिया फेसबुक, यूट्यूब के समय में इस गुस्से शांत नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि छात्रों का प्रदर्शन पहले शांत ही था लेकिन 12 जुलाई को शेख हसीना ने इन्हें रजाकार कह दिया था इसके बाद लोगों का गुस्सा उनपर भड़क गया। रवीश कुमार ने अपनी 22 मिनट की वीडियो में सिर्फ ये दिखाना चाहा कि किस तरह से बांग्लादेश में जो कुछ हुआ वो सही था और शेख हसीना द्वारा सरकारी नौकरी में बढ़ाया जा रहा आरक्षण गलत।
दिलचस्प बात ये है कि ये रवीश कुमार जैसे लोग आरक्षण का समर्थन और विरोध मुल्क और भीड़ को देखकर करते हैं। भारत में आरक्षण कम करने की बात होना इन्हें गलत लगता है और बांग्लादेश में आरक्षण का बढ़ना इनके लिए समस्या की बात है। रवीश कुमार इस लिस्ट में अकेले नहीं हैं जो बांग्लादेश में हुए तख्तापलट और लूट को जायज बता रहे हैं। आरफा खानुम शेरवानी समेत कई नाम हैं जिन्हें ये पूरा तख्तापलट लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र तरीका जैसा दिख रहा है, लेकिन सवाल ये है कि क्या हिंसक आंदोलन में शामिल भीड़ सिर्फ छात्रों की थी। इसमें बांग्लादेश के विपक्ष का कोई रोल नहीं था? क्या इसमें इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों का हाथ नहीं था?