Sunday, November 17, 2024
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‘आम लोगों को बोलने की आज़ादी नहीं, देश में अघोषित प्रतिबंध’: शिवसेना को जावेद अख्तर में दिखे वीर सावरकर, ‘सामना’ में की तारीफ़

आरोप लगाया गया है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से ही कई निर्दोष लोग सरकारी फैसलों का शिकार हुए हैं। कोरोना, सांप्रदायिक घटनाएँ और किसान आंदोलन - इन सब में लोगों की मौतों का दावा कर भाजपा पर इसका दोष मढ़ा गया है।

महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना मुखपत्र ‘सामना’ को अब गीतकार जावेद अख्तर में भी वीर सावरकर नजर आ रहे हैं। उनकी तारीफों के पुल बाँधे गए हैं। इस लेख में दावा किया गया है कि अन्याय के विरोध में लिखने पर आजकल लेखकों को ‘देशद्रोही’ करार दिया जाता है। साथ ही आरोप लगाया गया है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से ही कई निर्दोष लोग सरकारी फैसलों का शिकार हुए हैं। कोरोना, सांप्रदायिक घटनाएँ और किसान आंदोलन – इन सब में लोगों की मौतों का दावा कर भाजपा पर इसका दोष मढ़ा गया है।

‘सामना’ के इस ‘अग्रलेख’ में पूछा गया है कि क्या ये सारी चीजें लेखकों और कवियों के चिंतन का विषय नहीं होनी चाहिए? बताया गया है कि नासिक में हुए 94वें साहित्य सम्मेलन में जावेद अख्तर ने इसी ओर इशारा दिया है। बता दें कि 70-80 के दशक में सलीम खान के साथ जोड़ी बना कर फिल्मों की कहानियाँ और पटकथाएँ लिखने वाले जावेद अख्तर जोड़ी टूटने के बाद गीतकार बन गए और आजकल ‘ट्विटर ट्रोल’ की भूमिका में हैं। इस साहित्य सम्मेलन में उन्हें मुख्य अतिथि की भूमिका में बुलाया गया था।

‘सामना’ ने उन्हें एक वाक्पटु और वक्त बताते हुए लिखा है कि ‘अघोषित प्रतिबंधों से गुजरते हुए देश में’ उन्होंने लोगों से अपील की, “जो बात कहने से डरते हैं सब, तू वो बात लिख, इतनी अँधेरी थी न पहले कभी रात लिख।” इसे वीर सावरकर को सच्ची श्रद्धांजलि बताते हुए लिखा गया है कि जावेद अख्तर ने लेखकों को आत्मसमर्पण न करने की सलाह दी है। स्वतंत्रता से पहले वीर सावरकर के उद्धरणों का जिक्र किया गया है। लिखा गया है कि उसी तरह आज जावेद अख्तर नेतृत्व कर रहे हैं।

‘सामना’ के इस लेख में लिखा है, “लोकतंत्र में, साहित्यिक और आम नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। श्री जावेद अख्तर का कहना है कि उन्हें प्रश्न पूछते रहना चाहिए। जो लेखक ऐसा नहीं करते, वो बकरियों और भेड़ों के उन पूँछों के सामान हैं जिनका देश के लिए कोई उपयोग नहीं। जो स्पष्ट रूप से बोलते हैं उन्हें घेर लिया जाता है और परेशान किया जाता है। जावेद अख्तर भी उस स्थिति से गुजरे हैं। इसलिए उनके दिल का दर्द बाहर आ गया। आपातकाल में लिखने की आजादी का गला घोंट दिया गया था, उसका दुख आज भी व्यक्त किया जाता है।”

ये अजीब है, क्योंकि सितंबर 2021 में इसी शिवसेना ने ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)’ और ‘विश्व हिन्दू परिषद (VHP)’ की तुलना तालिबान से करने पर जावेद अख्तर की आलोचना की थी। ‘सामना’ के उस लेख में दावा किया गया था कि RSS को लेकर कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जावेद अख्तर का बयान हिन्दू संस्कृति का अपमान करने वाला है। लेकिन, उसी लेख में जावेद अख्तर की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि जब भी कट्टरवादी और देशद्रोही ताकतें सिर उठाती हैं, जावेद अख्तर उसके चीथड़े कर देते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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