राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने भीमा-कोरेगाँव मामले में शुक्रवार (9 अक्टूबर, 2020) को आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा, हनी बाबू और स्टेन स्वामी समेत आठ आरोपितों के खिलाफ 10,000 पन्नों की एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की थी। एनआईए की चार्जशीट में उल्लेख किया गया है कि आरोपितों का प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के साथ “सक्रिय संबंध” है।
सागर गोरख, रमेश गिचोर और कबीर कला मंच (केकेएम) की ज्योति जगताप को भी मुंबई में विशेष एनआईए अदालत के समक्ष दायर आरोप-पत्र में नामित किया गया हैं। वहीं चार्जशीट में नामित आठवां आरोपित मिलिंद तेलतुम्बडे फरार है।
आरोपितों के खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत देशद्रोह, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आपराधिक साजिश आदि का मामला दर्ज है। इन लोगों पर आतंकवादी संगठन सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा को बढ़ावा देने और धर्म, जाति तथा समुदाय के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने की साजिश रचने का भी आरोप है।
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में गौतम नवलखा पर सरकार के खिलाफ कथित बुद्धिजीवियों को एकजुट करने और प्रतिबंधित संगठन CPI(M) की गुरिल्ला गतिविधियों के लिए कैडर्स को सम्मिलित करने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है। इसके अलावा चार्जशीट में पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध होने का भी उल्लेख किया गया है।
एनआईए के प्रवक्ता और एजेंसी में पुलिस उप महानिरीक्षक सोनिया नारंग ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे के बारे में कहा है कि वह ‘भीमा-कोरेगाँव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान’ के आयोजकों में से एक था और एल्गार परिषद की एक मीटिंग में भी उपस्थित था। यह बैठक हिंसा से एक दिन पहले 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवार वाडा में में हुई थी।
एनआईए अधिकारी ने यह भी कहा कि दस्तावेजों में तेलतुम्बडे के खिलाफ ठोस सबूत पाए गए हैं। तेलतुम्बडे अन्य माओवादी कैडरों के संपर्क में था और उनकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन इकट्ठा किया करता था।
हनी बाबू पर आरोप लगाया गया है कि उसने माओवादी इलाकों में विदेशी पत्रकारों के जाने का इंतजाम किया और उनको सुविधा मुहैया करवाई। इसके अलावा प्रोफेसर जीएन साई बाबा की रिहाई के लिए फंड इकट्ठा किया, जिस पर आतंकी संगठनों से जुड़े होने का आरोप है।
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने आरोप पत्र में 83 साल के स्टेन स्वामी पर माओवादी कैडर होने का भी आरोप लगाया है। केंद्रीय एजेंसी का दावा है कि वह Persecuted Prisoners Solidarity Committee(PPSC) का संयोजक था, जो कथिततौर पर सीपीआई (एम) का ही एक संगठन है।
एल्गार परिषद भीमा-कोरेगाँव केस
एल्गार परिषद भीमा-कोरेगाँव केस 31 दिसंबर 2017 को शनिवार वाडा में आयोजित हुए एल्गार परिषद के कार्यक्रम से संबंधित है। इसी कार्यक्रम के बाद 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की थी। वहाँ भीमा-कोरेगाँव युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ मनाने लाखों दलित इकट्ठा हुए थे, जिसे 1818 में पेशवा के ख़िलाफ़ लड़ा गया था और इसमें ब्रिटिशों ने जीत हासिल की थी। इस युद्ध में ब्रिटिशों की तरफ से अधिकतर दलित थे।
इस पूरे केस में 8 जनवरी को मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद पुणे पुलिस ने अपनी जाँच शुरू की। पुलिस के अनुसार, गिरफ्तार हुए ‘कार्यकर्ताओं’ ने दावा किया कि इस आयोजन को माओवादियों द्वारा पोषित किया गया था और आरोपित भी माओवादी ही हैं।
पुणे पुलिस ने इस मामले में 2 साल तक अपनी जाँच जारी रखी, फिर जाँच को इस वर्ष जनवरी में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी को ट्रांसफर कर दिया गया। मामला संभालने के बाद एजेंसी ने दावा किया कि कुछ आरोपितों के डिवाइसों से ऐसे दस्तावेज और पत्र पाए गए, जिनसे पता चला कि उन लोगों के लिंक प्रतिबंधित सीपीआई (एम) समूह से थे।
मामला एजेंसी को ट्रांसफर होते ही इस केस में पुलिस ने 9 कथित बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया। इसमें सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस और वरवरा राव का नाम शामिल था। इन पर आरोप था कि इन्होंने वहाँ भड़काऊ भाषण दिए।