25 जनवरी 1990 को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) ने भारतीय वायु सेना के चार निहत्थे अधिकारियों की हत्या कर दी थी। इस मामले में आतंकी यासीन मलिक के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मिल गई है। जम्मू की टाडा कोर्ट ने कहा है कि उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त सबूत हैं।
यासीन फिलहाल आतंकी फंडिंग के मामले में जेल में बंद है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अदालत ने उसके खिलाफ सोमवार को आरोप तय करने की मॅंजूरी दी है। वायुसेना जवानों की हत्या तब की गई जब उनके पास कोई भी हथियार नहीं था और वे एयरपोर्ट जाने के लिए बस का इन्तजार कर रहे थे। वहाँ भारतीय वायुसेना के 14 जवान थे। तभी अचानक से एक मारुति जिप्सी और एक बाइक से 5 आतंकी वहाँ पहुँचे और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उन्होंने एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। जवानों के अलावा 2 कश्मीरी महिलाओं की भी हत्या कर दी गई, जो बस का इंतजार कर रही थीं। आतंकियों ने ख़ून से लथपथ जवानों के सामने डांस करते हुए जिहादी नारे भी लगाए थे।
आतंकी यासीन मलिक को ‘अलगाववादी नेता’ के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। वह जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का चीफ भी है। जेकेएलएफ मूलतः एक आतंकवादी संगठन है जिसकी स्थापना 1977 में की गई थी। सन 1989 में इसी संगठन के आतंकियों ने जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या की थी। दिसंबर 1989 में मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण किया गया था जिसके बदले में पाँच आतंकियों को छोड़ा गया था।
दिसंबर 8, 1989 को रुबैया सईद के अपहरण के बाद पंद्रह दिनों तक ड्रामा चला था जिसके बाद वीपी सिंह सरकार द्वारा अब्दुल हमीद शेख़, शेर खान, नूर मोहम्मद कलवल, अल्ताफ अहमद और जावेद अहमद जरगर नामक आतंकियों को जेल से छोड़ा गया था। चौदह साल बाद जेकेएलएफ के जावेद मीर ने रुबैया सईद के अपहरण की बात कबूल की थी। इसके अगले साल जनवरी 25 जनवरी 1990 को जेकेएलएफ ने भारतीय वायु सेना के 4 अधिकारियों की हत्या कर दी थी। खुद यासीन मलिक ने भी बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि उसने ड्यूटी पर जा रहे 40 वायुसैनिकों पर गोलियाँ चलाई थीं। इसके बावजूद वह आजतक कानून के शिकंजे से बाहर खुला घूम रहा है। उम्मीद है कि अब इस केस में तेज़ी आएगी और यासीन मलिक को उसके पापों की सज़ा मिलेगी।