राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने एल्गार परिषद और माओवादियों के बीच संबंधों के मामले में विशेष अदालत के समक्ष पेश किए गए मसौदा आरोपों में कहा है कि आरोपित अपनी सरकार बनाना चाहते थे और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते थे। एनआईए ने इस महीने की शुरुआत में मसौदा पेश किया था और इसकी एक प्रति सोमवार (23 अगस्त) को उपलब्ध कराई गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने एल्गार परिषद मामले के आरोपितों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत विशेष अदालत के समक्ष इस मसौदे में 15 आरोपितों के खिलाफ 17 आरोप लगाए हैं। एनआईए के अनुसार, आरोपित प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य थे।
मसौदा आरोपों के अनुसार, आरोपितों का हिंसक गतिविधियों के पीछे मुख्य उद्देश्य राज्य से सत्ता हथियाने के लिए क्रांति और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से एक जनता सरकार स्थापित करना था। एनआईए के अधिकारियों ने कहा कि आरोपितों का इरादा हिंसा को उकसाना और कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष फैलाना, साजिश करना, अव्यवस्था पैदा करना था, ताकि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो। मसौदे में यह भी दावा किया गया कि आरोपित ने भारत और महाराष्ट्र की सरकारों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास किया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मसौदा में यह भी आरोप लगाया गया है कि आरोपित एल्गार परिषद बैठक के दौरान पुणे में भड़काऊ गाने चला रहे थे, लघु नाटक प्रस्तुत कर रहे थे और नक्सलियों के समर्थन में साहित्य बाँट रहे थे।
मसौदा में कहा गया है, ”आपराधिक साजिश का इरादा भारत से एक हिस्से को अलग करना और व्यक्तियों को इस तरह के अलगाव के लिए उकसाना था।” इसमें आरोप लगाया गया है कि आरोपितों का इरादा विस्फोटक पदार्थों का इस्मेताल करके लोगों में भय पैदा करना था।
साथ ही इसमें दावा किया गया है कि आरोपितों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों को उग्रवादी गतिविधियों के लिए भर्ती किया था।
आरोपितों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120-बी (साजिश), 115 (अपराध के लिए उकसाना), 121, 121-ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124-ए (राजद्रोह), 153-ए (जुलूस में हथियार), 505 (1) (बी) (अपराध को बढ़ावा देने वाले बयान) और 34 (साझा इरादे) के तहत आरोप लगाए गए हैं। उन पर यूएपीए की धाराओं 13, 16, 17, 18, 18ए, 18बी, 20 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा), 38, 39 और 40 (आतंकवादी संगठन का हिस्सा होने की सजा) के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।
इस मामले में गिरफ्तार आरोपितों में कार्यकर्ता रोना विल्सन, नागपुर के वकील सुरेंद्र गॉडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शोमा सेन, रिपब्लिकन पैंथर्स के सुधीर धवले, कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, कार्यकर्ता अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस, दिवंगत पिता स्टेन स्वामी, आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा, प्रोफेसर हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गायचोर, ज्योति जगताप और फरार आरोपित मिलिंद तेलतुंबडे शामिल हैं।
बता दें कि एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। इसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इन भाषणों के कारण अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगाँव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई। अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों के साथ कथित रूप से संबंध रखने वाले लोगों ने आयोजित किया था।