44 साल बाद असम में उग्रवादी समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इसकी स्थापना 1979 में की गई थी। उग्रवादी संगठन ने अपने लड़का विंग को भंग करने का फैसला असम और भारत सरकार के साथ हुए हालिया समझौते के बाद किया है।
उल्फा के लड़ाका विंग को खत्म करने का निर्णय असम के दारांग जिले के चमुआपाड़ा गाँव में हुई बैठक में लिया गया। इस दौरान उल्फा के 900 लड़ाके मौजूद थे। अब ये लड़ाके सामान्य जीवन में लौट कर समाज सेवा का काम करेंगे।
उल्फा के संस्थापक सदस्यों में से एक अनूप चेतिया ने मीडिया से बातचीत में कहा, “यह हमारे लिए एक भावुक और पीड़ादायक दिन है। हमने 1979 में जिस संगठन को जन्म दिया उसे इस तरह से खत्म किया गया जबकि यह अपना उद्देश्य भी नहीं पूरा कर पाया। हमें अपनी सशस्त्र लड़ाई परिस्थितियों के कारण छोड़नी पड़ी। हमारे पास इस समझौते से लोगों को जो मिला वह स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।” चेतिया ने बताया है कि वह अब अहोम विकास मोर्चा नामसे संगठन बनाएँगे।
उल्फा का समाप्त करने का निर्णय दिसम्बर 2023 में उग्रवादी समूह द्वारा भारत सरकार और असम सरकार के साथ समझौते करने के बाद हुआ है। 29 दिसंबर 2023 को नई दिल्ली में केंद्र सरकार, असम सरकार और उल्फा के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत उल्फा ने अपने सभी हथियार और गोला-बारूद सरकार को सौंप दिए थे। उल्फा के 750 कैडर ने भी हथियार डाल दिए थे। अब तक उल्फा के 9000 से अधिक कैडर हथियार डाल चुके हैं।
उल्फा के मुख्यधारा में जुड़ने के बाद अब असम में शान्ति का माहौल बनने की उम्मीद है। हालाँकि, उल्फा एक अन्य गुट, जिसका मुखिया परेश बरुआ है, अब भी सशस्त्र लड़ाई में जुटा हुआ है। वह भारत सरकार के साथ बातचीत का भी विरोधी है। वह लम्बे समय से फरार है और बाहर से ही अपनी उग्रवादी गतिविधियों को चला रहा है।
केंद्र सरकार ने बताया था कि 1979 में उल्फा के गठन के बाद से इसकी हिंसा से 10 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा उल्फा के हमलों में सुरक्षा बलों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। केंद्र सरकार ने बताया था कि उल्फा के हमलों में चार दशक में सुरक्षाबलों के करीब 700 जवान बलिदान हुए थे।