Saturday, November 16, 2024
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SC ने CBI को सौंपी सुशांत मामले की जाँच, कहा- मुंबई पुलिस ने नहीं की उपयुक्त कार्रवाई, न हुई एक भी FIR दर्ज

फैसला सुनाते हुए अदालत ने विशेष रूप से कहा कि इस मामले के संज्ञान में आने के बाद धारा 154 के तहत एफआईआर होना अनिवार्य थी। पूर्व में हुए मामले बताते हैं कि जाँच के शुरुआती समय में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि संबंद्ध थाने के बाद मामले में जाँच के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार नहीं थे।

सुप्रीम कोर्ट ने आज (अगस्त 19, 2020) सुशांत सिंह की मौत के मामले की जाँच का सारा दारोमदार सीबीआई (CBI) को सौंप दिया। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पटना में दर्ज एफआईआर को सही माना। इसके साथ ही मुंबई पुलिस को लेकर कहा कि उन्होंने इस मामले में FIR नहीं दायर की और न अपनी जाँच शुरू की।

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए मुंबई पुलिस को लेकर कुछ महत्तवपूर्ण बातें कहीं। कोर्ट ने कहा, “वर्तमान मामले में, मुंबई पुलिस ने बिना किसी FIR किए धारा 174 के दायरे को बढ़ाने का प्रयास किया है और इसलिए, जैसा कि प्रतीत होता है, मुंबई पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराध के लिए कोई जाँच नहीं की जा रही है। वहाँ अब भी FIR दर्ज होना बाकी है और न ही उन्होंने सीआरपीसी की धारा 175 (2) के तहत इस मामले में दृढ संकल्प दिखाया।”

कोर्ट ने कहा, हितधारकों द्वारा निष्पक्ष जाँच पर आशंका को देखते हुए, इस न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि सत्य की खोज एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा की जाए, जो दोनों राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित ना हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जाँच और जाँच प्राधिकरण की विश्वसनीयता को संरक्षित किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने दो अलग-अलग अदालतों में मामले के क्षेत्राधिकार पर आगामी संभावनाओं को मद्देनजर रखते हुए ये भी कहा कि ये मामला सीआरपीसी की धारा 186 व अन्य उपयुक्त धाराओं के तहत हल किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि सभी बातों से ये मालूम होता है कि मुंबई पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत जो जाँच की, वह निश्चित कारण के लिए बहुत सीमित थी। इस केस को अपराध की धारा 157 के तहत नहीं जाँचा गया।

अदालत ने सुशांत के पिता की शिकायत को ध्यान में रखा और कहा कि शिकायतकर्ता ने कहा है कि वह पटना से अपने बेटे से संपर्क करने की कोशिश करते थे लेकिन आरोपितों ने कभी उनके इस प्रयास को पूरा नहीं होने दिया। जिसके कारण पिता-पुत्र के बीच बात नहीं हो पाई और उनके पास से अपने बेटे को बचाने की संभावना समाप्त हो गई।

फैसला सुनाते हुए अदालत ने विशेष रूप से कहा कि इस मामले के संज्ञान में आने के बाद धारा 154 के तहत एफआईआर होना अनिवार्य थी। पूर्व में हुए मामले बताते हैं कि जाँच के शुरुआती समय में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि संबंद्ध थाने के बाद मामले में जाँच के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार नहीं थे।

सुप्रीम कोर्ट ने केस में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल किया। अदालत ने कहा, “उपरोक्त प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि सुप्रीम कोर्ट एक योग्य मामले में, न्याय प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 142 शक्तियों को लागू कर सकता है। इस मामले में अजीब परिस्थितियों के लिए आवश्यक है कि इस मामले में पूर्ण न्याय किया जाए।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि मुंबई पुलिस ने इस मामले में एक्सिडेंटल मौत की रिपोर्ट को दर्ज किया था। इसमें सीमित जाँच शक्ति थी। अब चूँकि बिहार पुलिस ने एक पूरी एफआईआर दर्ज की है, जिसे पहले से ही सीबीआई को भेज दिया गया है। ऐसे में केंद्रीय एजेंसी को मामले की जाँच करनी चाहिए।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी सुनिश्चित किया कि राजपूत की हत्या के पीछे की जाँच में सीबीआई का एकमात्र अधिकार होने के बारे में किसी प्रकार का कोई भ्रम न हो और न ही कोई भी अन्य राज्य पुलिस इसमें हस्तक्षेप करे।

CBI सुशांत के मामले में न केवल एफआईआर दर्ज करने बल्कि राजपूत की मौत के मामले से जुड़ी किसी अन्य एफआईआर की जाँच करने का भी हक रखेगी। साथ ही सीबीआई को अपनी जाँच के लिए राज्य सरकारों की अनुमति की जरूरत नहीं होगी, वह जब चाहें, जिससे चाहें पूछताछ कर सकते हैं। सबूत इकट्ठा करने के लिए महाराष्ट्र सरकार से परमिशन नहीं लेनी होगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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