स्वराज्य की पत्रकार स्वाति गोयल-शर्मा ट्विटर पर अंग्रेजी मीडिया का वह घिनौना चेहरा नकाब उधेड़ कर सामने रखतीं हैं, जिसके बारे में सोशल मीडिया और “राइट-विंग” पत्रकारों के दौर से पहले भी हम सब अख़बार पढ़ते, टीवी देखते हुए जानते तो थे, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। स्वाति बतातीं हैं कि कैसे दलितों का उत्पीड़न अगर ब्राह्मण-सवर्ण की बजाय मुस्लिम के हाथों हो, अगर ‘एंगल’ ऐसा बने कि दलित को हिन्दू पीड़ित के रूप में दिखाना पड़े, तो सच को झुठलाने के लिए पत्रकारिता का समुदाय विशेष और खुद को ‘फैक्ट-चेकर’ कहने वाले नफ़रती किस हद तक गिर जाते हैं।
न केवल पीड़ितों की गैसलाइटिंग (उनके दर्द, उनके अनुभव को अपने क्षुद्र एजेंडे के लिए दूसरों के ही नहीं, खुद पीड़ित के दिमाग में झुठलाने की कोशिश करना; अपने अनुभव को खुद झुठलाने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से बरगलाना और भ्रमित करना) से वह बाज़ नहीं आते, बल्कि अगर कोई सच दिखाने की कोशिश कर भी रहा हो तो उसे जेल भेजने की कोशिश करने, धमकी से उसे चुप कराने की कोशिश करने में भी यह मीडिया गिरोह नहीं हिचकिचाता।
दलित-बनाम-मुस्लिम पर असहज हो जाता है मीडिया गिरोह
बेगूसराय के नूरपुर में एक महादलित परिवार की महिलाओं के साथ बलात्कार की कोशिश इलाके में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लड्डू मियाँ और अन्य कुछ मुस्लिम पर लगा था। आरोप यहाँ तक लगा था कि बलात्कार करने मुस्लिमों में से एक बेधड़क नंगा आया था। इस पर स्वराज्य ने विस्तृत ग्राउंड-रिपोर्टिंग की थी, जिसे यहाँ पढ़ा जा सकता है।
उसी मामले की रिपोर्टिंग के अपने अनुभव ट्विटर पर साझा करते हुए स्वाति गोयल-शर्मा ने निम्न थ्रेड लिखा। इसमें पीड़ित परिवार के साथ Factchecker.in के संवाददाता की लीक हुई बातचीत का ज़िक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि इससे यह साबित हो जाता है कि नैरेटिव के धंधा करने वालों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है अगर दलितों पर अत्याचार करने वाला ‘सही’ समुदाय से ताल्लुक न रखे।
The recently leaked phone conversation between a https://t.co/AWmFqi0Hjo reporter and a dalit family from Begusarai only confirms the narrative-peddlers’ discomfort with Dalit atrocity cases where perpetrator is not from desirable community
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) August 22, 2019
I write:https://t.co/kLABxK1tKl
यहाँ स्वाति गोयल-शर्मा जिस रिकॉर्डिंग्स की बात कर रहीं हैं, वे पीड़ित परिवार के साथ Factchecker.in के संवाददाता की रिकॉर्डिंग हैं, जिन्हें ट्विटर पर जारी IIM-C और IIT-G से पढ़े (यानि मीडिया गिरोह के ‘अनपढ़-नाकारा लोग ही हिंदूवादी बनते हैं’ का मिथक तोड़ने वाले) हिंदूवादी सामाजिक कार्यकर्ता संजीव नेवर ने जारी किया था। वे शुरू से इस मामले से जुड़े रहे थे और इसे SC-ST आयोग तक भी लेकर गए। इन रिकॉर्डिंग में वायर और फैक्टचेकर के रिपोर्टर को पीड़ित परिवार पर अपना बयान बदलने या उसमें से हिन्दू-मुस्लिम ‘एंगल’ हटा मामूली सा ज़मीन विवाद बना देने का दबाव बनाते सुना जा सकता है।
Reporter says he works for @thewire_in and @Factcheckindia and wants to know if the matter is indeed of religious hate.
— Sanjeev Newar संजीव नेवर (@SanjeevSanskrit) August 18, 2019
No sensitivity to crime, its gravity, no words of sympathy for victim despite knowing he is minor. As revealed later, he knew all details of case already. 2/n pic.twitter.com/0C5v4x9v19
सच बोलने के लिए जेल की धमकी
स्वाति गोयल-शर्मा ट्विटर पर आगे लिखतीं हैं कि अंग्रेजी मीडिया में से वह अकेली थीं जो इस मामले को कवर कर रहीं थीं। मीडिया के एक हिस्से ने उनके काम को, उनके द्वारा इस मामले की उजागर की गई सच्चाईयों को झुठलाने की भरसक कोशिश की। पहले मामले को नज़रअंदाज़ किया, फिर उसकी गंभीरता कम करके दिखाने की कोशिश की, फिर उसमें से साम्प्रदायिक एंगल हटाने की कोशिश की और फिर अंत में स्वाति को साम्प्रदायिक और पीड़ितों को झूठा दिखाने की कोशिश की गई।
स्वाति आगे तंज़ कसतीं हैं कि उनका ‘अपराध’ “मुस्लिम गाँव” छोड़ने के लिए एक गरीब दलित परिवार पर पड़ रहे दबाव और आधी रात में हुए हमले को रिपोर्ट करना था। इसके लिए एक ‘फैक्टचेकिंग’ वेबसाइट के सह-संस्थापक ने उन्हें गिरफ्तार करने की भी अपील की।
I was the only one from English media to report the case in June. It was obviously an irritant, and a section of media went great lengths to refute it.
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) August 22, 2019
Their strategy: ignore, play it down, at least wash the communal taint off it, call journalist communal, prove victims as liars
My crime was I reported a poor dalit family’s allegations that they were attacked at midnight and are facing sustained pressure to leave the “Muslim village”
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) August 22, 2019
Co-founder of a fact-checking site even slyly called for my arrest when he shud hv been questioning the police instead
गवाहों के बारे में दोहरापन
स्वाति ने यह भी बताया कि एक न्यूज़ पोर्टल ने जब अपनी स्वतंत्र ग्राउंड-रिपोर्टिंग में पाया कि पीड़ित परिवार अपनी कहानी, अपने बयान पर कायम हैं, तो उसने 4 ऐसे लोगों से बात करके, जो मौके पर मौजूद नहीं थे, यानि मामले के गवाह नहीं थे, एक रिपोर्ट छाप दी कि गाँव वालों ने स्वराज्य की “मामले को साम्प्रदयिक रंग देने की कोशिश” को झुठला दिया है।
वे केस की आगे की प्रगति के बारे में बतातीं हैं कि जब संजीव नेवर की शिकायत पर राष्ट्रीय SC आयोग ने हस्तक्षेप किया तो जाँच में निकल कर आया कि पुलिस ने कई सारी गलतियाँ की थीं। SHO को मूल FIR बदलने के लिए निलंबित कर दिया गया, और बदले के इरादे से पीड़ित परिवार पर दाखिल दो काउंटर-FIRs नकली निकलीं, और पीड़ितों को पुलिस सुरक्षा दी गई।
A news portal did a ground check after my report. To their horror, the dalit family stood by their allegations. So it quoted 4 non-eye witnesses and published a report titled ‘Villagers reject Swarajyamag’s communalisation of dispute between two families’
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) August 22, 2019
Can u believe it?
Here’s how the case unfolded:@SanjeevSanskrit took the matter to National SC commission. Probe revealed severe lapses on part of police. SHO was suspended for changing original FIR. Two counter FIRs against victims were found to be motivated and false. Police protection given
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) August 22, 2019