उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े 18 केस वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने ज़िला प्रशासन को इस बारे में कोर्ट की अनुमति लेने को कहा है। 2013 में हुए इस दंगे को लेकर दायर किए गए 125 मामलों को वापस लेने की माँग लम्बे समय से की जा रही है। इस बाबत डीएम-एसएसपी से रिपोर्ट माँगी गई थी, लेकिन अधिकारियों ने मामले को वापस लेने से मना कर दिया था।
अब सरकार ने डीएम राजीव शर्मा को एक पत्र भेजा है जिसमें उन्हें 18 मुक़दमों को वापस लेने की संस्तुति करते हुए कोर्ट में अपील दायर करने का निर्देश दिया गया है। बता दें कि जिन मुक़दमों को वापस लिए जाने का निर्णय लिया गया है, उनमे कोई भाजपा नेता नामज़द नहीं है।
जिन मुक़दमों को वापस लिया जाना है, वह भौराकलां और फुगाना क्षेत्र के हैं। एडीएम प्रशासन ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सरकार ने मुक़दमे वापस लेने के लिए कुल 13 बिंदुओं पर जानकारी माँगी थी। उन्होंने बताया कि अभी पूरी सूची तो नहीं आई है लेकिन इस बाबत एकल आदेश जारी कर दिया गया है। शासकीय अधिवक्ता राजीव सिंह शर्मा ने कहा:
“मुकदमे वापसी के लिए शासन का पत्र प्राप्त हो गया है। अब मुकदमे वापस लेने के लिए कोर्ट में अपील की जाएगी। इस संबंध में कोर्ट का फ़ैसला ही अंतिम होगा।”
बता दें कि मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को लेकर चल रहे मुक़दमों में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, बिजनौर के सांसद भारतेंद्र सिंह, सरधना विधायक संगीत सोम और बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक सहित कई भाजपा नेताओं को आरोपित बनाया गया था। संगीत सोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। इतना ही नहीं, दंगों से जुड़े मामलों में विहिप के दुर्गा वाहिनी की संस्थापक अध्यक्ष साध्वी प्राची भी नामज़द हैं। इसके अलावा योगी सरकार में राज्यमंत्री का पदभार संभाल रहे सुरेश राणा को भी आरोपित बनाया गया था।
बता दें कि, 2013 में अखिलेश सरकार के दौरान मुज़फ़्फ़रनगर में भड़की हिंसा में 60 से भी अधिक लोग मारे गए थे। गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के मुताबिक़, इन दंगों में क़रीब 20 हिन्दू मारे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार को फटकार लगाते हुए लापरवाही बरतने का दोषी बताया था।