Sunday, November 17, 2024
Homeविविध विषय41 मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन पर बॉलीवुड बना पाएगी ‘The 33’ जैसी फिल्म, या...

41 मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन पर बॉलीवुड बना पाएगी ‘The 33’ जैसी फिल्म, या सरसों के खेत वाले गाने ठूँस मसाला-मूवी तक ही रहेगा इनका दायरा?

जिस तरह से सिल्कयारा सुरंग में फँसे श्रमिकों को गब्बर सिंह नेगी मजदूरों को मानसिक रूप पर मजबूत करते रहे। इसी तरह सैन जोस खदान में फँसे श्रमिकों को लुईस उरुज संबल देते रहे। उनकी लीडरशिप के कारण सैन जोस खदान में फँसे सभी 33 सैनिक 69 दिनों तक सरवाइव करने में सफल रहे थे।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित सिल्कयारा की निर्माणाधीन सुरंग में पिछले 17 दिनों से फँसे 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन बेहद जटिल था, जिसे भारत और उत्तराखंड की सरकार ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह देश के सबसे कठिन बचाव अभियानों में एक था। आमतौर पर 17 दिनों तक इस ऑपरेशन के बारे में सुन-पढ़कर इसकी गंभीरता का अंदाजा लगा पाना आम लोगों के लिए आसान नहीं है।

सुरंग में क्षैतिज रूप से 80 मीटर नीचे और 60 मीटर अंदर की ओर फँसे इन श्रमिकों को निकालना भौगोलिक रूप से पहाड़ी होने के कारण और जटिल बन गया। ये सिर्फ रेस्क्यूर टीम के लिए ही नहीं, बल्कि अंदर फँसे मजदूरों के धैर्य की भी परीक्षा था। 60 मीटर अंदर फँसे मजदूरों की मानसिक और शारीरिक स्थिति को समझना तो आम लोगों को हॉलीवुड की फिल्म ‘The 33’ देखना चाहिए।

फिल्म द 33 चिली देश में हुए एक सोने की खदान धँसने की वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है। चिली के रेगिस्तान में स्थित सैन जोस के कैपियापो खदान 5 अगस्त 2010 में ढह गया था, जिसके कारण 33 श्रमिक अंदर फँसकर गए थे। उनके पास सीमित खाना और पीने का पानी था। अमेरिका के नासा आदि संस्थाओं की सहयोग के बावजूद इन श्रमिकों को निकालने में 69 दिन लग गए थे।

जिस तरह से सिल्कयारा सुरंग में फँसे श्रमिकों को गब्बर सिंह नेगी मजदूरों को मानसिक रूप पर मजबूत करते रहे। इसी तरह सैन जोस खदान में फँसे श्रमिकों को लुईस उरुज संबल देते रहे। उनकी लीडरशिप के कारण सैन जोस खदान में फँसे सभी 33 सैनिक 69 दिनों तक सरवाइव करने में सफल रहे थे।

उस दौरान जिस कंपनी के खदान में मजदूर फँसे थे, वह उन मजदूरों को निकालने को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं थी। हालाँकि, चिली सरकार ने इन मजदूरों को निकालने का बीड़ा उठाया और अमेरिका से लेकर तमाम देशों से विशेषज्ञों को बुलाया। रेस्क्यू ऑपरेशन के जारी रहने के ऑगर मशी, ड्रिलिंग मशीन बार-बार टूट जा रही थी। हजारों क्विंटल के चट्टान रास्ते में आ रहे थे, लेकिन मजदूर कहाँ फँसे इसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी।

रेस्क्यू ऑपरेशन के कुछ दिन बाद एक ऐसा भी समय आया कि ऑपरेशन टीम ने इन श्रमिकों को निकालने का बंद करने का फैसला ले लिया। उन्हें लगा कि 17 दिन बीत जाने के बाद शायद ही कोई श्रमिक जिंदा होगा। सीमित खाना-पानी होने के बाद भी श्रमिकों के बीच फँसे मजदूरों को लुईस उरूज लगातार हौसला देते रहे। उन्हें विश्वास था कि कंपनी भले ही उन्हें छोड़ दे, लेकिन चिली की सरकार उन्हें मरने के लिए नहीं छोड़ेगी।

उरूज अपने साथियों को भरोसा दिलाते रहे कि एक दिन ऐसा वक्त आएगा, तब वे सभी अपने-अपने परिवारों के बीच रहेंगे। खाना-पानी को भी वे इस तरह मैनेज करते रहे कि अंदर फँसे लोग, अधिक से अधिक दिन तक जीवित रह सके। हालाँकि, उनके अधिकांश साथियों को उम्मीद नहीं थी कि वे फिर कभी सुरंग से बाहर निकल पाएँगे, लेकिन उरूज ऐसा नहीं मानते थे।

इन सब कोशिशों के रेस्क्यू टीम काम को बंद करना चाहती थी, लेकिन चिली की सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया। इस दौरान रेस्क्यू ऑपरेशन का लाइव प्रसारण चलता रहा और 55 लाख लोग हर समय इसे देखते रहे। चिली की मीडिया ने इन मजदूरों को एक सेकेंड के लिए भी नहीं छोड़ा। घटना के दिन से ही पल-पल की रिपोर्टिंग करते रहे। सरकारी हर फैसले की जानकारी देशवासियों तक पहुँचा रहे। वहाँ की मीडिया के लिए उस समय इन श्रमिकों से बड़ा कोई मुद्दा नहीं था।

आखिरकार, रेस्क्यू टीम ने प्लान को बदला और एक बार फिर से विदेशों से ड्रिलिंग मशीन को मंगाकर काम शुरू किया। टीम को पता नहीं था कि श्रमिक कहाँ हैं, लेकिन सौभाग्य और टीम के प्रयास से श्रमिकों तक ड्रिलिंग का काम पूरा हुआ। हालाँकि तब भी रेस्क्यू टीम सटीक लोकेशन और मजदूरों के जिंदा बचे होने को लेकर अनजान थी।

ऐसे में अंदर फँसे मजदूरों ने एक कपड़े पर सभी लोगों के जिंदा और सुरक्षित होने की जानकारी लिख कर ड्रिलिंग मशीन के एक छोर पर बाँध दी। ड्रिलिंग मशीन को जब ऊपर खींचा गया और उसमें श्रमिकों का संदेश मिला तो टीम का हौसला बढ़ गया।

इसके बाद उन लोगों को खाना, पानी, दवाई, कपड़े और कैमरा आदि अंदर भेजा गया और उनसे हर पल चिली सरकार कॉन्टैक्ट में रही। आखिरकार अगले 30 दिनों के बाद उन्हें एक कैप्सूल के जरिए सभी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। कैप्सूल के जरिए लोगों का रेस्क्यू किया गया और

इस तरह के रेस्क्यू ऑपरेशन में आने वाली समस्याओं को लेकर बनी The 33 फिल्म एक बेहद शानदार फिल्म है। इसमें सरकार की कोशिश, टीम के प्रयास और श्रमिकों के हौसले को बखूबी दिखाया गया है। भारत में इस तरह की फिल्में बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि यहाँ कमर्शियल और डॉक्यू-ड्रामा फिल्मों को मापने का मानदंड ही अलग है।

हालाँकि, पश्चिम बंगाल के रानीगंज के महाबीर खदान में 13 नवंबर 1989 को कोयले से बनी चट्टानों को विस्फोट करके तोड़ा जा रहा था। इसी दौरान में पानी भर गया और वहाँ से काम कर रहे 232 लोगों में से 6 श्रमिकों की मौके पर मौत हो गई। वहाँ कैप्सूल के जरिए श्रमिकों को बाहर निकाला गया। इस ‘रानीगंज’ फिल्म भी बनी है, लेकिन इस फिल्म में भी वो बात नहीं है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत का AAP से इस्तीफा: कहा- ‘शीशमहल’ से पार्टी की छवि हुई खराब, जनता का काम करने की जगह...

दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत ने अरविंद केजरीवाल एवं AAP पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकार पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।

क्या है ऑपरेशन सागर मंथन, कौन है लॉर्ड ऑफ ड्रग्स हाजी सलीम, कैसे दाऊद इब्राहिम-ISI के नशा सिंडिकेट का भारत ने किया शिकार: सब...

हाजी सलीम बड़े पैमाने पर हेरोइन, मेथामफेटामाइन और अन्य अवैध नशीले पदार्थों की खेप एशिया, अफ्रीका और पश्चिमी देशों में पहुँचाता है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -