BHU पिछले काफी दिनों से सुर्ख़ियों में है। कभी अपने साफ-सुथरे छवि के लिए जाना जाने वाला महामना का ये परिसर कुछ सालों से आंदोलनों, प्रदर्शन, मारपीट और लाठीचार्ज का अड्डा बनता जा रहा है। ऐसा क्यों है, जब हमने इस पर वहाँ के विभिन्न संकायों के छात्रों से बात करने की कोशिश की, तो छात्रों ने कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।
छात्रों का कहना है कि जब से BHU में वामपंथ का प्रकोप बढ़ना शुरू हुआ तब से यहाँ पढ़ाई कम और बेमतलब के लफड़े ज़्यादा हो रहे हैं। चाहे दो साल पहले का छेड़छाड़ का फर्जी मामला हो या यहाँ के छात्रों का चरित्रहनन, सबमें यहाँ के वामपंथी धड़े का बहुत बड़ा हाथ है। इन्हें शुरू से ही कॉन्ग्रेस का साथ मिलता रहा। अब तो यहाँ के सभी देश-विरोधी छोटे-छोटे संगठन मिलकर जॉइंट एक्शन कमिटी के बैनर तले आकर हर स्थापित व्यवस्था का विरोध करने लगे हैं, जिससे यहाँ पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है।
नाम न छापने की शर्त पर वहाँ के कई छात्रों ने बताया कि BHU में JNU के लोगों और वामपंथ समर्थकों की नियुक्ति तेज हुई है तभी से यहाँ भी वामपंथ का कोढ़ फ़ैल गया है। जिसके उपचार के लिए राष्ट्र, यहाँ के नागरिकों और मातृभूमि के लिए समर्पित छात्रों ने एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाया है जिसे नाम दिया है ‘अखिल भारतीय बाँस योजना।’
जब ऑपइंडिया ने योजना के मकसद या प्रयोजन के बारे में तहकीकात की तो हमें BHU के छात्रों ने ही बताया, “इस परिसर को वामपंथी प्रकोप से, जहरीले वामपंथ से बचाने के लिए बनाया गया है। क्योंकि अब यहाँ भी आजादी के नारे लगने लगे हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वामपंथियों को हिंदुत्व से ही आजादी चाहिए। इन्हें ब्राह्मणों से आजादी चाहिए। जितनी भी तरह की आए दिन इनकी आजादी की माँग है, उसे देखते हुए हम छात्रों ने वामपंथियों को ही यहाँ से खदेड़ने के लिए यह स्वयं सहायता समूह बनाया हैं।”
“लेकिन उसके लिए हम गाँधीवादी तरीका ही अपनाएँगे। शांतिपूर्ण तरीके से इनके हर नैरेटिव को काटना यहाँ के राष्ट्रवादी छात्रों का महामना प्रदत्त कर्तव्य है, जिसका हम तहे दिल से पालन करने के लिए वचनबद्ध हैं। क्योंकि हमें इस देश से प्यार है। महामना के उद्देश्यों और उनके आदर्शों से मुहब्बत है। यहाँ हम जातिवाद की विषबेल नहीं पनपने देंगे। इसीलिए जहरीले वामपंथ को विषहीन बना कर छोड़ना है।”
जब हमने इस योजना के संस्थापक सदस्यों से बात की तो उन्होंने इस पर थोड़ा और प्रकाश डाला। ‘अखिल भारतीय बाँस योजना’ दरअसल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा शुरू किया गया एक निकाय है। जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए गए और उसके बाद देश के अन्य शिक्षण संस्थानों को अस्थिर और देशद्रोह के विष से व्याप्त करने की कोशिश की गई तब BHU के छात्रों ने तय किया कि एक ऐसा छात्र समूह बनाया जाए जो कि शिक्षण संस्थानो में जेहादी, नक्सली और देशद्रोही प्रवृत्ति का विरोध हर स्तर पर कर सके।
संस्थापकों ने अपने स्वयंसेवक छात्रों के बारे में बताया, “बाँस योजना के छात्र सोशल मीडिया से लेकर जमीनी विरोध तक हर स्तर पर ऐसे तत्वों का विरोध करने से नही चुकते। इनका मुख्य नारा है ‘जय बाँस-तय बाँस।’ बाँस को चूँकि आदिशस्त्र माना जाता है इसलिए उस प्रतीक को हमने अपनाया है।”
“बौद्धिक विमर्श, सोशल मीडिया के अभियान और जमीनी कार्रवाई सभी के लिए इनकी अपनी टीम है। राष्ट्रवादी संगठन जहाँ छवि, पहल और श्रेय के बारे में सोचते हुए कई बार अपने दायित्वों से चूक जाते है इसलिए बाँस योजना ने अपनी कार्यपद्धति भी ईजाद की है। इसमें जुड़ा हर व्यक्ति राष्ट्रीय पदाधिकारी होता है और इसमें सभी के अधिकार और निर्णय की शक्ति एक समान है ताकि कोई बड़ा और कोई छोटा न हो। इसका मूल मर्म यह है कि जब हम भारत माता की सेवा में लगे हो तो सभी सेवक और सेनानी है इसमें कोई बड़ा और छोटा हो ही नही सकता।”
“बाँस योजना की सैद्धान्तिक दृष्टि यह है कि देश और देश की संस्कृति से बड़ा कुछ नहीं होता इसलिए सभी कार्यक्रम और कार्य लक्ष्य आधारित होने चाहिए। इसलिए मार्ग कौन-सा अपनाया जाए यह विमर्श का विषय नही होना चाहिए।”
नोट- ऑपइंडिया इस तरह के किसी भी समूह और उसकी गतिविधियों का समर्थन नहीं करता है।