ऐसा नहीं फ़िरोज़ गाँधी कॉन्ग्रेसी नहीं थे या राजनीति में उनकी हिस्सेदारी नहीं थी। गाँधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली के पहले सांसद वही थे। फिर, बात-बात में नेहरू, इंदिरा और राजीव का नाम लेने वाले कॉन्ग्रेसी और उनका अगुआ शीर्ष परिवार फिरोज का नाम लेने से क्यों डरता है?
लोग इस मामले में बात छिपा रहे हैं कि बिमल जालान को सरकार में लाने वाले मोदी नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी हैं। 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी ने 4-5 उभरते हुए आर्थिक और सार्वजनिक नीति (पब्लिक पॉलिसी) के विद्वानों को सरकारी तंत्र का हिस्सा बनाया था।
12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्मे साराभाई की उपलब्धियों को इस मौके पर हर कोई याद कर रहा है। इंटरनेट सर्च ईंजन गूगल ने डूडल के जरिए उन्हें याद किया है। लेकिन जयराम रमेश को इस मौके पर भी नेहरू ही याद आए।
पुलिस को चकमा दे स्वामी राज्यसभा में पहुँच चुके थे। सभापति बीडी जत्ती पिछले सत्र में मृत हुए सदस्यों की सूची पढ़ रहे थे। उनके खत्म करने से पहले ही स्वामी ने टोका, "सर, इस सूची में एक और नाम है। इन सत्रों के बीच लोकतंत्र भी मर गया है। इसलिए उसका नाम भी आपको शामिल करना चाहिए।"
जरदारी ने कहा, "हम ईस्ट पाकिस्तान की जंग हारे थे। मैं इस पर नहीं जाना चाहता। इसके बहुत से मसले हैं, लेकिन हमारा आधा अंग टूट चुका था। इसी तरह आज कश्मीर का हमारा आधा अंग टूट चुका है।"
कुछ दिनों पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस के टी थॉमस आरएसएस को आपातकाल से मुक्त कराने वाला बता चुके हैं। संघ के तृतीय वर्ष शिविर में उन्होंने कहा- "अगर किसी संगठन को आपातकाल से देश को मुक्त कराने के लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए, तो मैं आरएसएस को दूंगा।”
गोला इलाके में कुछ अराजक तत्व मूर्ति को बुर्का पहनाकर वहाँ से चले गए। जब सोमवार सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों ने इंदिरा पार्क में पूर्व पीएम की मूर्ति पर बुर्का चढ़ा हुआ देखा तो वह दंग रहे गए। यह खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई।