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जब भी राम मंदिर को देखें, इसे सिर्फ हिंदुओं की आस्था का प्रतीक न मानें। यह प्रतीक है उन बलिदानियों का भी, जिन्होंने अपनी दुधमुँही बच्ची को छोड़ राम नाम के लिए सीने पर गोली खाई। यह प्रतीक है उनका भी, जिनके परिवार वालों को आज तक उनका अंतिम दर्शन न हो सका।
अयोध्या में जब भी राम मंदिर जाएँ, अपने आराध्य रामलला को याद करें… साथ में उनको भी याद करें, जिन्होंने अपना कल न्योछावर कर दिया, आपके आज के हिंदुत्व की गाथा के लिए। यहाँ पढ़ें उन बलिदानियों की कहानियाँ, करें उन्हें नमन!
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