कॉर्पोरेट टैक्स की ओर ध्यान दिलाते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत उन प्रमुख देशों में शामिल है जहाँ कोर्पोरेट टैक्स सबसे कम है इसी कारण विदेशी निवेशकों का भरोसा लगातार बढ़ रहा है।
अर्थव्यवस्था फिर से मजबूत हो रही है। बिक्री में वृद्धि के बाद कारखानों ने बहुत तेजी से नए वर्कर्स को काम पर रखा है। यह पिछले सात साल में वर्कर्स को काम पर रखने की सबसे तेज गति है।
भारत को 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में 60 साल लगे। इसके अगले 12 वर्षों में देश के 2 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का गौरव प्राप्त किया। इसके बाद भारत ने अभूतपूर्व छलांग लगाते हुए मात्र 5 वर्षों में 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन कर दुनिया को चौंका दिया।
"2008 में आर्थिक संकट के दौरान भारतीय बैंकों ने लचीलापन दिखाया था। तब मैं वित्त मंत्री था, सार्वजनिक क्षेत्र के एक भी बैंक ने धन के लिए मुझसे सम्पर्क नहीं किया था। लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़े पैमाने पर पूंजी की ज़रूरत है और अगर उन्हें यह मुहैया कराई जा रही है तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।"
"बैंकों के फँसे कर्जों के संकट (एनपीए क्राइसिस) के बीज 2007-08 में पड़ गए थे। तब मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी की कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में थी। इस काल खंड में बहुत सारे खराब कर्ज बाँटे गए, आज इनकी साफ़-सफाई होना विकास के लिए ज़रूरी है।"
वर्ष 2014 में जब PM मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार बनी, तो उस समय भारत की रैंकिंग 190 देशों में से 142वें स्थान पर थी। 4 साल तक जारी सुधार के बाद साल 2017 में भारत की रैंकिंग सुधरकर 100 हो गई। 2018 में स्थिति फिर सुधरी और भारत ईज़ ऑफ़ डुईंग लिस्ट में 77वाँ स्थान बनाने में क़ामयाब रहा था।
इसी महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की सौगात दी थी। टैक्स में कटौती से कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि होती है, जिससे कम्पनियाँ निवेश करने के लिए अतिरिक्त धन का उपयोग कर पाएँगी।
सीतारमण ने कहा कि राजन के समय में बैंक कर्जों में बहुत समस्याएँ थीं। राजन के ही RBI प्रमुख रहते भ्रष्ट नेताओं के फ़ोन कॉल से क़र्ज़ मिल जाया करते थे। बैंकों को उस दलदल से निकलने के लिए सरकार से पूँजी ले-ले कर काम चलाना पड़ रहा है।
ऑनलाइन फेस्टिव सीजन शुरू हो चुका है। त्योहारों की शुरुआत के साथ ही ऑनलाइन रिटेलर्स के बीच आँकड़ों की लड़ाई भी शुरू हो गई। आँकड़े बताते हैं कि ब्रिकी पिछले साल से डबल है। आखिर कहॉं गई मंदी और 'लोग खर्च नहीं करना चाहते हैं' की दलीलें।