दिल्ली स्थित एम्स के डॉक्टरों की असोसिएशन ने भी ममता सरकार को दो दिन (48 घंटे) का अल्टिमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि दो दिनों में पश्चिम बंगाल सरकार ने डॉक्टरों की माँगें स्वीकार नहीं की, तो फिर एम्स में भी अनिश्चितकालीन हड़ताल की जाएगी।
"उसे (उनके बेटे को) डॉक्टरी सहायता की ज़रूरत थी। मैं उसे कई अस्पतालों में लेकर गया। किसी ने सहायता नहीं की। उसकी गलती क्या थी? इस हड़ताल ने मेरे बेटे की जान ले ली।"
सवाल ज्यों का त्यों है, क्या उनकी सरकार डॉक्टरों के काम करने हेतु सुरक्षित माहौल दे सकेगी? क्या बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की नृशंष हत्या का सिलसिला रुकेगा या राजनीतिक जंग के नाम पर बुरे से बुरे और बर्बर कृत्य को भी जायज ठहराने का सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा? यह वक्त ही बताएगा।
डॉक्टरों की माँग है कि उनकी सुरक्षा में कानून लागू हो। आईएमए सेक्रेट्री ने कहा कि उन्हें पता है कि मरीज़ इस 'बंद' से परेशान होंगे, लेकिन उनकी सुरक्षा भी ज़रूरी है।
ममता बनर्जी ने नॉर्थ 24 परगना में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि वो बंगाल को गुजरात नहीं बनने देंगी। अपने बयान में ममता ने साफ़ बोल दिया कि अगर आप बंगाल में आए हैं तो आपको बांग्ला ही बोलनी होगी।
जब कोई व्यक्ति अपने बूढ़े अब्बू की हॉस्पिटल में हुई मौत पर 200 लोगों की भीड़ ले आता है, तो पता चलता है कि प्रशासन को समाज का एक हिस्सा कैसे देखता है। उसके बाद ममता का यह कहना कि ‘पुलिस वाले भी तो मरते हैं ड्यूटी पर लेकिन उनके सहकर्मी हड़ताल नहीं करते’, एक मूर्खतापूर्ण बयान है।
हैरानी की बात तो ये है कि ममता बनर्जी डॉक्टरों को धमकी दे रही हैं और उनके भतीजे आबेष बनर्जी डॉक्टरों के समर्थन में प्रदर्शन उतर आए हैं। आबेश बनर्जी, ममता के भाई कार्तिक बनर्जी के बेटे हैं, केपीसी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हैं।
इस हड़ताल के कारण कई सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में हड़ताल के तीसरे दिन भी ओपीडी सेवाएँ, पैथोलॉजिकल इकाइयाँ और आपातकालीन वार्ड बंद रहे। इसके अलावा निजी अस्पतालों में भी हड़ताल के चलते चिकित्सीय सेवाएँ बंद रहीं।
ये भीड़ इतनी जल्दी कैसे आती है, कहाँ हमला करती है और किधर गायब हो जाती है? क्या पुलिस ने नहीं देखा इन्हें? क्या हॉस्पिटल में सुरक्षा के लिए पुलिस आदि नहीं होती या फिर इस पहचानहीन भीड़ का सामूहिक चेहरा ममता की पुलिस ने पहचान लिया और उन्हें वो करने दिया जो वो कर गए?