कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के ताजा बयान से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य में कॉन्ग्रेस-जेडीएस (JDS) गठबंधन में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। अपनी पार्टी के विधायकों और विधान-पार्षदों की बैठक को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे हर क्षेत्र में कॉन्ग्रेस के हस्तक्षेप के कारण एक मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक क्लर्क के तौर पर काम करने को मजबूर हैं। इस बैठक में कुमारस्वामी भावुक हो गए और गठबंधन को लेकर उनका दर्द छलक आया।
इस बैठक में कुमारस्वामी ने गठबंधन चलाने में उन्हें आ रही कठिनाइयों का भी जिक्र किया और कहा कि राज्य सरकार में गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस के नेता उनसे हर काम अपने पक्ष में कराना चाहते हैं और मज़बूरन उनकी बात सुनने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं है। उन्होंने खुद को बहुत दबाव में बताया और कहा कि कॉन्ग्रेस के नेता उन्हें अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं।
साथ ही कुमारस्वामी ने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी उन पर कैबिनेट विस्तार करने के लिए भी दबाव बना रही है। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर ‘बिग ब्रदर’ की तरह बर्ताव करने का भी आरोप मढ़ा। सीएम ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने राज्य की सभी निगमों और बोर्ड्स में अध्यक्ष के रूप में अपने लोगों को बैठा दिया है।
कई लोगों का मानना है कि इस साल होने वाले आम चुनावों में JDS राज्य की एक तिहाई सीटों पर दावेदारी ठोकना चाहती है, जिसके कारण पार्टी द्वारा ऐसे बयान दे कर कॉन्ग्रेस पर दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन खुद मुख्यमंत्री की तरफ से ऐसे बयानों का आना ये बताता है कि प्रदेश में गठबंधन सरकार के टिकने की सम्भावना बहुत ही कम है। बीते दिनों JDS अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा ने भी कहा था उनके बेटे कुमारस्वामी को गठबंधन सरकार चलाने के लिए काफी पीड़ा उठानी पड़ रही है और साथ ही उन्हें ये पीड़ा बर्दाश्त करने की सलाह भी दी थी।
ताज़ा बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनावों तक वो गठबंधन के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाएंगे। JDS सुप्रीमो ने कहा कि वो फ़िलहाल राज्य की आधा दर्जन सीटों को जीतने का लक्ष्य बना रहे हैं और गठबंधन के ख़िलाफ़ कोई भी कदम उठाने से पार्टी की सम्भावना खतरे में पड़ सकती है।
वहीं कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री ने कॉन्ग्रेस द्वारा शुरू की गई RTE योजना को भी बोगस बताया था। कुमारस्वामी ने कहा था कि RTE को सबको शिक्षा का अधिकार देने के लिए अस्तित्व में लाया गया था लेकिन अब यह निजी विद्यालयों के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने का जरिया बन रहा है और इसकी कीमत सरकारी स्कूलों को चुकानी पड़ रही है।