अयोध्या में राममंदिर देखने की प्रतीक्षा करते हुए हिंदुओँ की कितनी ही पीढ़ियाँ निकल गईं, लेकिन देर से ही सही यह स्वप्न अब पूरा होेने जा रहा है। हिंदुओं की मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक अयोध्या पुरी के नवनिर्मित राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को भगवान राम बाल रूप में पधारेंगे। इसको लेकर पूरा देश जोश एवं उमंग से भरा हुआ है। हालाँकि, इस दिन को देखने के लिए कई लोगों ने कई तरह के बलिदान दिए।
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं, जिनका नाम है वीरेंद्र विमल। विमल को रामकाज की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक की सरकारी नौकरी छोड़ दी। बैंक में वरीय सहायक की नौकरी करने वाले विमल ने शुरुआत में झारखंड की राजधानी राँची (उस समय बिहार का हिस्सा था झारखंड) बाहर की पोस्टिंग नहीं लगी। उन्हें लगा कि वे राँची से बाहर जाएँगे तो उनका काज प्रभावित होगा। हालाँकि, जब नौकरी बाधा बनने लगी तो उसे छोड़ दी।
अब वे विश्व हिंदू परिषद (VHP) के पूर्णकालिक सदस्य हैं। उन पर क्षेत्र मंत्री का दायित्व है। वर्तमान समय में वीरेंद्र विमल झारखंड और बिहार का प्रवास करते हैं। 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है, इसको लेकर वे पूजित अक्षत को घर-घर बाँटने में लगे हुए हैं। इसके बाद अयोध्या में व्यवस्था को सँभालने के लिए 15 जनवरी के बाद वहाँ जाने को तैयार बैठे हैं।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, वीरेंद्र विमल की साल 1980 में स्टेट बैंक में नौकरी लगी थी। हालाँकि, भगवान राम के प्रति अपने जीवन को समर्पित करने वाले विमल अगले ही साल, यानी 1981 में वीएचपी से जुड़ गए। 1987 से इसके सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने वीएचपी में कई दायित्वों का निर्वहन किया। इसके लिए वे राँची से बाहर पोस्टिंग नहीं लेते थे।
नियमानुसार पोस्टिंग नहीं लेने के कारण वीरेंद्र विमल को प्रोन्नति नहीं मिली। हालाँकि, उन्हें प्रोन्नति की कोई चिंता नहीं हुई। हालाँकि, आगे चलकर साल 2001 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस बीच साल 1991 और 1992 में जब मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो वे नौकरी में रहते हुए अयोध्या कारसेवा के लिए पहुँचे। इस दौरान उन्होंने कई लोगों का नेतृत्व भी किया।
विमल कहते हैं, “6 दिसंबर 1992 का वो दिन याद है जब कारसेवकों ने विवादित ढाँचे को तीन-चार घंटे में गिरा दिया था। उस कारसेवा में राँची के 100 लोगों की टोली का मुझे प्रमुख बनाया गया था। हम लोग राँची से ट्रेन में गोमो गए। वहाँ से आसपास के स्टेशनों का टिकट लिया, क्योंकि अयोध्या जी का टिकट लिए पैसेंजरों को बिहार के स्टेशनों पर उतार लिया जा रहा था।”
6 दिसंबर को याद करते हुए विमल आगे कहते हैं, “विवादित ढाँचे के चारों तरफ लगाए गए लोहे की पाइप के घेरों को कारसेवकों ने उखाड़ दिया। पाइप से दीवार को लोग गिराने लगे। तीन-चार घंटे में ही वह विवादित ढाँचा ध्वस्त हो गया। फिर उसी रात से वहाँ मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया गया। 7 दिसंबर 1992 की सुबह तक अस्थाई मंदिर बनकर तैयार हो गया।”
उन्होंने बताया कि जब वे अयोध्या से राँची पहुँचने वाले थे तो आरा गेट पर राजदेव यादव नामक व्यक्ति ने ट्रेन का सिग्नल डाउन करके उन्हें ट्रेन से उतरने को कहा। यादव ने कहा कि वे लोग उन लोगों का स्वागत करना चाहते हैं। दरअसल, स्वागत की तैयारी राँची स्टेशन पर की गई थी, लेकिन पता चला कि वहाँ पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी कर रही है। इसके बाद लोगों ने राँची स्टेशन से पहले ही कारसेवकों को उतारकर स्वागत कर दिया।