भारतीय छात्रों के लिए टेक्स्ट किताब बनाने वाले राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने क्लास छठी में ब्राह्मणों/पुजारियों के लिए पढ़ाए जा रहे भ्रामक दावों को अपनी किताबों से हटा दिया है।
एक साल पहले इस मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट विवेक पांडे ने आरटीआई फाइल की थी। उन्होंने लिखित में प्रमाण माँगे थे कि हिंदू पंडितों ने महिला और शूद्रों के साथ भेदभाव किया, इसका सबूत दिया जाए।
NCERT ने इस आरटीआई के जवाब में कहा था कि उनके पास इस दावे के कोई सबूत नहीं हैं कि ब्राह्मणों/पुजारियों ने महिलाओं और शूद्रों को वेद नहीं पढ़े दिया। इसके बाद उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि वो अपनी किताबों से इस भ्रामक दावे को हटा लेंगे।
I filed RTI to @ncert on caste system taught in std-6. Young minds are filled with biased improper facts on caste hirarchy & taught misinterpreted vedic scriptures. This will take a bad toll on the fundamentals of children & society as a whole! #LiesOfNcert #NCERT #NCERTHISTORY pic.twitter.com/WAa1E7Iuw1
— Dr Vivek Pandey (@Vivekpandey21) September 1, 2022
अब 2023-24 के संस्करण से ये दावा हटाया जा चुका है। ऑपइंडिया इस बात की पुष्टि करता है।
बता दें कि यह विवादित दावा छठी क्लास की इतिहास की किताब के पाँचवे चैप्टर- ‘राज्य, राजा और प्राचीन गणतंत्र’ (पृष्ठ नंबर-44-45) पर दिखाई देता था। इसमें कहा गया था कि पुजारियों ने वर्णव्यवस्था बनाई और कहा कि ये जन्म से तय होता है।
Asked information. pic.twitter.com/eJv2EwVQWA
— Dr Vivek Pandey (@Vivekpandey21) September 1, 2022
NCERT किताब में ये भी कहा गया कि महिलाओं को शूद्रों के समूह में रख उन्हें वेद पढ़ने से रोका गया। इतना ही नहीं था ये भी लिखा गया कि पुजारियों ने कुछ लोगों को अछूत घोषित कर दिया था।
पहले की किताब में मौजूद टेक्स्ट
हमारे पास ऐसी कई पुस्तकें हैं जिनकी रचना उत्तर भारत में, विशेषकर गंगा और यमुना द्वारा प्रवाहित क्षेत्रों में की गई थी। इन पुस्तकों को अक्सर उत्तर वैदिक कहा जाता है, क्योंकि इनकी रचना ऋग्वेद के बाद हुई थी जिसके बारे में आपने अध्याय 4 में पढ़ा था। इनमें सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के साथ-साथ अन्य पुस्तकें भी शामिल हैं। इनकी रचना पुजारियों द्वारा की गई थी, और बताया गया था कि अनुष्ठान कैसे किए जाने चाहिए। उनमें समाज के बारे में नियम भी शामिल थे।
पुजारियों ने लोगों को चार समूहों में विभाजित किया, जिन्हें वर्ण कहा जाता था, उनके अनुसार, प्रत्येक वर्ण के कार्य अलग-अलग थे। प्रथम वर्ण ब्राह्मण का था। ब्राह्मणों से अपेक्षा की जाती थी कि वे वेदों का अध्ययन करें (और पढ़ाएँ), यज्ञ करें और उपहार प्राप्त करें। दूसरे स्थान पर शासक थे, जिन्हें क्षत्रिय भी कहा जाता था। उनसे लड़ाई लड़ने और लोगों की रक्षा करने की अपेक्षा की गई थी।
तीसरे थे वैश या वैश्य। उनसे अपेक्षा की गई थी कि वे किसान, चरवाहे और व्यापारी होंगे, क्षत्रिय और वैश्य दोनों ही बलिदान दे सकते थे। अंतिम शूद्र थे, जिन्हें अन्य तीन समूहों की सेवा करनी पड़ती थी और वे कोई अनुष्ठान नहीं कर सकते थे। अक्सर, महिलाओं को भी शूद्रों के साथ समूहीकृत किया जाता था। महिलाओं और शूद्रों दोनों को वेदों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी, पुजारियों ने यह भी कहा कि ये समूह जन्म के आधार पर तय किए गए थे।
आरटीआई के बाद अब ये टेक्सट किताबों में से हटा दिया गया है। अब किताब में लिखा गया, “चार सामाजिक श्रेणियाँ थीं, अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मणों से अपेक्षा की गई कि वे वेद पढ़ें और पढ़ाएँ, यज्ञ करें और दक्षिणा पाएँ। क्षत्रियों से अपेक्षा की जाती थी कि वे युद्ध लड़ें और लोगों की रक्षा करें। वैश्यों से अपेक्षा की जाती थी कि वे किसान, चरवाहे और व्यापारी होंगे। शूद्रों से अन्य तीन समूहों की सेवा करने की अपेक्षा की गई थी।
NCERT ने भ्रामक दावा हटाया
मालूम हो कि NCERT की किताब में किए गए दावों का कोई आधार नहीं था। विवेक पांडे की आरटीआई के जवाब में लिखा गया था, “चूँकि पांडुलिपि का मूल मसौदा विस्तृत संदर्भ प्रदान नहीं करता है, इसलिए दावों के मूल स्रोत को साझा करना मुश्किल होगा।”
#GoodNews: NCERT has removed misleading claims about Brahmins from its 6th Standard textbook. I had filed #RTI asking #NCERT to show evidence that Brahmins divided people into Varnas and that women and Shudras were not allowed to read Vedas. pic.twitter.com/URtFUdM1kQ
— Dr Vivek Pandey (@Vivekpandey21) February 4, 2024
इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि अगले सत्र से किताब से भ्रामक दावा हटा लिया जाएगा।