Sunday, December 22, 2024
Homeविविध विषयभारत की बातजिस 'शंकराचार्य पर्वत' को PM मोदी ने श्रीनगर में किया प्रणाम, उसे इस्लामी कट्टरपंथी...

जिस ‘शंकराचार्य पर्वत’ को PM मोदी ने श्रीनगर में किया प्रणाम, उसे इस्लामी कट्टरपंथी बुलाते हैं ‘तख्त-ए-सुलेमान’ : नाम बदलकर हिंदू इतिहास मिटाने की रिवायत पुरानी

हर हिंदू के लिए जहाँ शंकराचार्य पर्वत एक पवित्र स्थान है। वहीं इस्लामी कट्टरपंथियों की आँख में इसकी पवित्रता खटकती रहती है। जगहों के नाम बदलने की रिवायत उन्होंने इस स्थान के लिए प्रयोग की हुई है और वह इसे कोह-ए-सुलेमान कहने लगे।

आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (7 मार्च 2024) श्रीनगर पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने दूर से पहले एक पर्वत को प्रणाम किया और उसके बाद वहाँ फोटों खिंचवाई। ये तस्वीरें शेयर करते हुए पीएम ने जानकारी दी कि आज उन्हें शंकराचार्य पर्वत को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

पीएम के इस ट्वीट के बाद जो शंकराचार्य पर्वत चर्चा में आया है उसका अपना इतिहास है। यहाँ बना मंदिर समुद्र तल से 1100 फीट की ऊँचाई पर है, जो कि कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों से जाना जाता है। इसके बारे में मौजूद जानकारी बताती है कि मंदिर का निर्माण राजा गोपादात्य ने करवाया था। बाद में डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पँहुचने के लिए सीढ़ियाँ बनवाई थी। जब जगद्गुरु शंकराचार्य अपने भारत यात्रा के दौरान यहाँ आए थे तो उन्होंने इसी पर्वत पर साधना की थी। उनका साधना स्थल आज भी यहाँ मौजूद है।

शंकराचार्य पर्वत को इस्लामी कट्टरपंथी बुलाते हैं तख्त-ए-सुलेमान

हर हिंदू के लिए जहाँ शंकराचार्य पर्वत एक पवित्र स्थान है। वहीं इस्लामी कट्टरपंथियों की आँख में इसकी पवित्रता खटकती रहती है। जगहों के नाम बदलने की रिवायत उन्होंने इस स्थान के लिए प्रयोग की हुई है। आप अगर इंटरनेट पर देखेंगे तो पाएँगे कि कई जगह इस जगह को लोग तख्त-ए-सुलेमान का नाम देकर आज भी बुलाते हैं और शंकराचार्य पर्वत का नाम लोगों की स्मृति से मिटाने का काम करते हैं।

इस पर्वत का नाम लोगों की जुबान पर तख्त-ए-सुलेमान करने का काम आज से नहीं हो रहा। साल 2014 में भी इस पर विवाद हुआ था। तब, तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि इस पर्वत के और भी नाम हैं और वो रहेंगे। ये अकेली जगह नहीं है जिसके एक से ज्यादा नाम नहीं होते…

शंकराचार्य पर्वत का नाम भले ही सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से नहीं बदला गया हो लेकिन कश्मीर के इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसे तख्त-ए-सुलेमान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

अनंंतनाग को कहते हैं इस्लामाबाद

मालूम हो कश्मीर का ये कोई पहला ऐसा स्थान नहीं है जिसका नाम बदलकर वहाँ का इस्लामीकरण करने का प्रयास किया गया हो। इसी कश्मीर के अनंतनाग जिले को इस्लामाबाद कहते भी कई लोगों को सुना जा चुका है।

अनंतनाग जिला जिसे कभी कश्मीर की प्राचीन राजधानी कहते थे। लेकिन मुस्लिम आक्रांताओं ने यहाँ के मंदिर को नष्ट करके इसे इस्लामाबाद नाम दिया था। आज के समय में इस्लामाबाद पाकिस्तान की राजधानी है। लेकिन, कश्मीर के कट्टरपंथी अनंतनाग फिर भी इस स्थान को इस्लामाबाद बुलाने से नहीं चूकते।

सरकारी एंकर ने कहा था अनंतनाग को इस्लामाबाद

गौरतलब है कि कश्मीर की धरती पर हिंदू नाम वाले स्थानों का इस्लामीकरण कितना ज्यादा आम करने के प्रयास हुआ है इसका अंदाजा एक घटना से भी लगाया जा सकता है। ये मामला साल 2014 का है। तब, बाढ़ में खबर को पढ़ते वक्त डीडी के एक एंकर ने अनंतनाग को इस्लामाबाद कहा था और शंकराचार्य पर्वत को कोह-ए-सुलेमान कहा था।

सरकारी चैनल के एंकर की इस हरकत का बाद में बहुत विरोध हुआ था जिसके बाद उसे एंकरिंग से हटाकर अलग कामों में लगा दिया गया। लेकिन सोचिए अगर वो विरोध नहीं होता तो क्या धीरे-धीरे इस्लामाबाद आम लोगों की भाषा में सामान्य नहीं हो जाता। जैसे शंकराचार्य पर्वत से जुड़ा एक इतिहास है वैसे ही अनंतनाग नाम से भी हिंदू आस्था जुड़ी है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ये वो स्थान है जहाँ भगवान शिव ने अमरनाथ गुफाओं के रास्ते में अपने कई सांपों को छोड़ा था। इसलिए इसे यह नाम मिला जिसका अर्थ है ‘अनंत’ (अनंत) ‘सर्प’ (नाग)। इसके अलावा कश्मीर में नाग का अर्थ झरने से बताया जाता है इसलिए ये भी मान्यता है कि अनंत झरने होने से इस स्थान को अनंत नाग कहा गया है।

सूर्य मंदिर को दिखाया शैतान की गुफा

इन दोनों जगहों के अतिरिक्त भी कई ऐसे स्थान हैं जिनपर इस्लामी आतताइयों का कहर बरपा और उनका नामोंनिशान मिटाने का प्रयास हुआ। इनमें एक नाम मार्तंड सूर्य मंदिर का है जिसकी स्थापना कश्मीर के महान राजा ललितादित्य मुक्तिपीड ने की थी। लेकिन बाद में इसे सुल्तान सिकंदर शाह मीरी ने ध्वस्त करवा दिया… और हिंदू आज भी इसके टूटे हिस्से देख मीरी द्वारा दिए गए घाव को महसूस करते हैं।

लेकिन इससे इस्लामी कट्टरपंथियों, वामपंथियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। वो इस पवित्र स्थान को शैतान की गुफा बताकर दुनिया के आगे पेश करते हैं। जैसे साल 2014 में हैदर फिल्म में किया गया था। इस फिल्म में इस पवित्र स्थान को शैतान की गुफा का तमगा दिया गया था और तब किसी ने इसका विरोध तक नहीं किया था। हाँ… कश्मीरी पंडितों ने अपने मंदिर की छवि गलत दिखाने की जानकारी होने पर इसका विरोध किया था लेकिन उस समय उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था।

ऋषि कश्यप की धरती बना बाद में कश्मीर

बता दें कि कश्मीर की जिस धरती पर इस्लाम थोपने का प्रयास मुस्लिम शासकों द्वारा किया गया, वो कश्मीर कभी ऋषि कश्यप की धरती के नाम से जाना जाता था। यहाँ के मंदिर जग के प्रसिद्ध मंदिरों में से थे। यहाँ की आबादी कभी सिर्फ हिंदुओं की थी। यहाँ धर्म सिर्फ सनातन था। यहाँ नदी-झरनों की पूजा होती थी… लेकिन मुस्लिम शासकों के घुसते ही सब बदल गया। सूफियों की परंपरा ने यहाँ कट्टरपंथ के पैर फैलवाए और देखते ही देखते हिंदुओं के मंदिर ध्वस्त किए जाने लगे, जगहों के नामों का इस्लामीकरण होने लगे और हिंदुओं का नरसंहार कश्मीर के इतिहास में जुड़ गया।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।

जिस संभल में हिंदुओं को बना दिया अल्पसंख्यक, वहाँ की जमीन उगल रही इतिहास: मंदिर-प्राचीन कुओं के बाद मिली ‘रानी की बावड़ी’, दफन थी...

जिस मुस्लिम बहुल लक्ष्मण गंज की खुदाई चल रही है वहाँ 1857 से पहले हिन्दू बहुतायत हुआ करते थे। यहाँ सैनी समाज के लोगों की बहुलता थी।
- विज्ञापन -