Sunday, November 17, 2024
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मद्रास HC ने ‘जाति-वर्ण’ वाले फैसले में किया बदलाव, कहा था: वर्तमान जाति व्यवस्था 100 साल से भी कम पुरानी, इसे वर्ण व्यवस्था से जोड़ना ठीक नहीं

न्यायमूर्ति अनीता सुमंत ने कहा था कि जातियों में समस्या है लेकिन यह व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और इसका दोष पुरातन वर्ण व्यवस्था पर नहीं मढ़ा जा सकता। अब कोर्ट के संशोधित आदेश में लिखा गया है, "जातियों का वर्गीकरण, जैसा कि हमें आज दिखता है, काफी नई और हालिया सोच है।"

मद्रास हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार (7 मार्च, 2024) को तमिलनाडु के राज्य मंत्री उदयानिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर दिए गए बयान की निंदा की थी। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि वर्तमान जाति व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और उसे पुरातन वर्ण व्यवस्था से नहीं जोड़ा जा सकता। अब कोर्ट ने अपने इस आदेश में बदलाव किए हैं और कहा है कि जातियों का वर्गीकरण एक नई और हालिया व्यवस्था है।

पुराने आदेश में मद्रास हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति अनीता सुमंत ने कहा था कि जाति व्यवस्था में समस्या है लेकिन यह व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और इसका दोष पुरातन वर्ण व्यवस्था पर नहीं मढ़ा जा सकता। अब कोर्ट के संशोधित आदेश में लिखा गया है, “जातियों का वर्गीकरण, जैसा कि हमें आज दिखता है, काफी नई और हालिया सोच है।”

असली आदेश में में क्या था?

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में कहा था कि तमिलनाडु में 370 पंजीकृत जाति हैं और जातियों के बीच की समस्याओं को भी देखा गया है। उन्होंने आगे कहा कि अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच यह मतभेद कुछ हद तक उन्हें दिए जाने वाले फायदों के कारण हैं।

उन्होंने कहा, “यह न्यायालय इस बात से सहमत है कि समाज में जाति के आधार पर अभी भी असमानताएँ मौजूद हैं और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हालाँकि, जाति व्यवस्था की उत्पत्ति, जैसा कि हम आज इसे देखते हैं, एक सदी से भी कम पुरानी है। तमिलनाडु में 370 पंजीकृत जातियाँ हैं। राज्य में एक या दूसरी जाति के प्रति निष्ठा का दावा करने वाले समूहों द्वारा खींचतान और दबाव चलता आया है। अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच यह मतभेद कुछ हद तक उन्हें उपलब्ध दिए गए फायदों के कारण भी है।”

किस मामले में कोर्ट ने यह कहा?

यह आदेश हिंदू मुन्नानी संस्था द्वारा उदयानिधि स्टालिन, तमिलनाडु के राज्य मंत्री पीके शेखरबाबू सांसद ए राजा के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया था। इस याचिका में विवादित बयानों के बावजूद उनके पद पर बने रहने पर प्रश्न उठाए गए थे। गौरलतब है कि 2 सितंबर, 2023 को चेन्नई में एक कार्यक्रम में उदयानिधि स्टालिन ने कहा था कि कुछ चीजों का न केवल विरोध होना चाहिए बल्कि उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा था, “जिस तरह डेंगू, मच्छर, मलेरिया और कोरोनो वायरस को खत्म किया जाना चाहिए, उसी तरह हमें सनातन धर्म को भी खत्म करना होगा।” उनके इस बयान के बाद पूरे देश भर में आक्रोश देखा गया गया था।

उनके इस बयान पर एक संगठन हिंदू मुन्नानी के पदाधिकारियों ने आपत्ति जताते हुए मद्रास हाई कोर्ट में तीन याचिकाएँ दायर कीं थीं। उन्होंने स्टालिन, शेखरबाबू और ए राजा से स्पष्टीकरण दिए जाने की माँग करते हुए कहा था सनातन धर्म के विलुप्त होने का आह्वान करने वाले एक सम्मेलन में भाग लेने के बाद भी यह लोग सार्वजनिक पद पर क्यों बने हुए हैं।

क्या था कोर्ट इस मामले पर रुख?

उदयानिधि ने इस मामले में कोर्ट के सामने कहा कि उनका बयान हिंदुओं या हिंदू धर्म पर नहीं बल्कि जाति व्यवस्था पर था। बुधवार(6 मार्च, 2024) को कोर्ट ने इस मामले को सुनते हुए स्टालिन की टिप्पणी की निंदा की। हालाँकि, कोर्ट उन्हें मंत्रिपद से हटाने की माँग नहीं मानी। कोर्ट ने कहा कि वह तब तक ऐसा कोई आदेश जारी नहीं कर सकता जब तक कि उन्हें इस पद के लिए अयोग्य घोषित नहीं कर दिया जाता।

कोर्ट ने कहा कि सनातन धर्म के बारे में उल्टे सीधे बयान गलत सूचना को बढ़ावा देना है। हाई कोर्ट ने कहा कि उदयानिधि स्टालिन का मौजूदा जाति व्यवस्था को लेकर सनातन धर्म पर हमला करना ठीक नहीं था। कोर्ट ने कहा, “सनातन धर्म को दी गई यह संज्ञा सर्वथा गलत है क्योंकि यह ऐसी जीवनशैली को बढ़ावा देता है जो कि सात्विकता, आगे बढ़ने और पवित्र है।”

कोर्ट ने की अन्य कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

कोर्ट ने कहा कि इतिहास में लोगों ने जाति के नाम पर एक-दूसरे पर प्रश्न उठाए हैं। उसने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे काम स्वीकार नहीं किए जा सकते। कोर्ट ने इतिहास में हुए अन्याय को लेकर कहा कि इनके लिए डैमेज कंट्रोल की आवश्यकता है, जिससे बराबरी आए।

कोर्ट ने कहा, ”यह कोर्ट स्पष्ट रूप से इस बात पर राजी है कि समाज में आज जाति के नामा पर गैर बराबरी मौजूद है और उन्हें दूर किया जाना चाहिए। लेकिन, जाति व्यवस्था की उत्पत्ति, जैसा कि आज हमारे सामने है, एक सदी से भी कम पुरानी है। क्या इन दुखद परिस्थितियों के लिए पूरी तरह से प्राचीन वर्ण व्यवस्था को दोषी ठहराया जा सकता है? इसका उत्तर ना है।

कोर्ट ने माना न्यायालय ने माना कि वर्ण व्यवस्था वर्गीकरण के लिए जन्म के बजाय व्यक्ति के व्यवसाय को आधार मानती है। कोर्ट ने कहा “वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि व्यवसाय के आधार पर वर्गीकरण करती है। इस व्यवस्था को सदियों पहले समाज को आसानी से चलाने के लिए बनाया गया था, तब समाज की आवश्यकताओं के आधार पर प्रमुख व्यवसायों की पहचान की गई थी। आज ऐसी व्यवस्था कितनी कारगर है, यह बात विवादास्पद है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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