जमीअत उलमा-ए-हिंद की गवर्निंग काउंसिल की बैठक दिल्ली में हुई। ये बैठक दो दिनों तक चली, जिसमें पहले दिन तो आधुनिक शिक्षा पर बड़ी-बड़ी बातें कही गई, लेकिन दूसरे ही दिन जमीअत उलमा-ए-हिंद ने साफ कर दिया कि वो इस्लामी संगठन है और इस्लाम उसके लिए सबसे पहले है। इस बैठक में कुछ प्रस्ताव भी पारित हुए हैं, जिसमें मुस्लिम छात्रों से स्कूलों में ‘शिर्क’ का विरोध करने और गैर-इस्लामी कामों से दूर रहने की अपील की गई।
यही नहीं, जमीअत ने छात्रों और परिजनों से कहा है कि अगर उन पर प्रार्थना, सूर्य नमस्कार जैसी गतिविधियों में शामिल होने का दबाव डाला जाए, तो वो भी वो इसमें शामिल न हों, बल्कि विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें। इस दौरान जमीअत ने ये भी साफ कर दिया है कि वो मदरसों को ‘शिक्षा के अधिकार यानी आरटीई’ में लाने के खिलाफ है और इसे संवैधानिक अधिकार बताते हुए कहा कि मदसरों को शिक्षा के अधिकार कानून से बाहर ही रखा जाए। ये अधिकार हमें संविधान ने दिया है, जिसे हम छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 4-5 जून 2024 को दिल्ली में जमीअत उलमा-ए-हिंद की गवर्निंग काउसिंल की बैठक में करीब 2000 सदस्यों-पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। इसमें पारित प्रस्ताव में मुस्लिम अभिभावकों से आग्रह किया गया है कि वह अपने बच्चों में तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रति विश्वास पैदा करें और शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी बहुदेववादी प्रथाओं में भाग लेने से बचें। यदि जबरदस्ती की जाए तो विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें।
प्रस्ताव में कहा गया है- जमीअत उलेमा-ए-हिंद राज्य सरकारों की ओर से शिक्षा प्रणाली को भगवा रंग में रंगने और स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को शिर्क (अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर को मानना) के काम करने के लिए मजबूर करने के प्रयासों की कड़ी निंदा करती है। किसी को भी इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि इस्लाम धर्म की मूल मान्यता तौहीद (एकेश्वरवाद) है और कोई भी मुस्लिम किसी भी कीमत पर किसी भी परिस्थिति में अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत स्वीकार नहीं कर सकता और न ही वह ऐसे किसी व्यक्ति की इबादत स्वीकार करेगा जो गैर-धार्मिक लोगों की प्रथा और पहचान है। सरकार की ओर से स्कूली छात्र-छात्राओं को सूर्य नमस्कार, सरस्वती पूजा, हिंदू गीत, श्लोक या तिलक लगाने के लिए बाध्य करने का आदेश मजहबी आजादी में हस्तक्षेप और धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन है, जिसे मुस्लिम या कोई भी न्यायप्रिय भारतीय स्वीकार नहीं कर सकता।
खुद जमीअत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने एक दिन पहले अधिवेशन में मुस्लिम युवाओं से आधुनिक शिक्षा के माध्यम से देश की सेवा का आह्वान किया था। लेकिन अगले ही दिन शुक्रवार (5 जुलाई 2024) को मदनी ने कहा कि जमीअत विशुद्ध धार्मिक संगठन है। यह आधुनिक शिक्षा के विरोध में नहीं है, लेकिन हमारा स्पष्ट मानना है कि नई पीढ़ी को बुनियादी धार्मिक शिक्षा प्रदान किए बिना स्कूल की शिर्क (किसी को अल्लाह के बराबर दर्जा देना) वाली शिक्षाओं पर आधारित पाठ्यक्रम न पढ़ाया जाए।
हमारी लड़ाई नफरत से है, देश पर इस्लामोफोबिया का दाग नहीं लगने देंगे: मौलाना मदनी की जमीअत उलमा-ए-हिंद की सभा में स्पष्ट घोषणा
— Jamiat Ulama-i-Hind (@JamiatUlama_in) July 4, 2024
– जमीअत उलमा-ए-हिंद के नेतृत्व में नई पीढ़ी के ईमान और आस्था की रक्षा के लिए आगे आएं मुसलमान: मौलाना अबुल कासिम नोमानी
– इस्लामोफोबिया के खिलाफ अलग कानून… pic.twitter.com/r40pwaKj2i
मदरसों को आरटीई के दायरे में लाने का विरोध
मौलाना महमूद मदनी ने उत्तर प्रदेश के गैरमान्यता प्राप्त 4,204 मदरसों में पढ़ रहे बच्चों को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून के तहत अन्य स्कूलों में प्रवेश दिलाने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय का भी तीखा विरोध किया। इसपर टकराव वाला रुख अपनाते हुए मदनी ने कहा कि हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि इस्लामी मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून से अलग हैं। यह अधिकार हमें संविधान ने दिया है, जिसे हम छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।