बता दें कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार बनने के बाद भी मुल्क की स्थिति में सुधार नहीं है। इस्लामी कट्टरपंथियों की लगाई आग का असर बाजार पर भी नजर आ रहा है। वहाँ लोग महंगाई से तंग आ रहे हैं। बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स के आँकड़े बताते हैं उपभोक्ता मूल्य सूचांक पिछले 12 साल में सबसे ज्यादा रहा है जो कि11.66 फीसद है। इसी तरह खाद्य मुद्रास्फीति की बात करें तो ये भी 13 वर्षों में पहली बार 14 प्रतिशत के सबसे अधिक रही।
इन्हीं हालातों के बीच इंडिया टुडे ने ढाका के सबसे बड़े थोक बाजार कावरान में जाकर स्थिति का जायजा लिया और कुछ स्थानीय खुदरा व्यापारियों से बात की। इस दौरान इंडिया टुडे को पता चला कि कैसे बांग्लादेशी टका का मूल्य लगातार गिर रहा है। व्यापारियों पर सामान बेचने का दबाव है लेकिन मुनाफा उन्हें कोई नहीं मिल रहा। उन्हें बस उम्मीद है कि जल्द ही हालात सुधरेंगे और उनकी जिंदगी में बदलाव आए।
व्यापारियों ने बताया कि देश में अस्थिरता के कारण कावरान बाजार में लोगों ने आनाजाना कम कर दिया है। दाल-चावल की कीमत पहले के मुकाबले बढ़ गई है क्योंकि ये चीजें आयात के जरिए आती हैं। अब चूँकि आयात होने में व्यवधान है इसलिए दाल चावल के साथ अन्य वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।एक व्यापारी ने बताया कि वो लोग फिलहाल कीमतों को स्थिर रख रहे हैं लेकिन सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वे अगले महीने तक कीमतें बढ़ा सकेंगे कयोंकि जरूरत की चीजें वाकई महंगी हो गई हैं।
वहीं ये भी बताया जा रहा है कि तख्तापलट की स्थिति में बांग्लादेश की विदेशी मुद्रा भंडार भी प्रभावित हुआ है। पिछले महीने जो भंडार 21.78 बिलियन था वो अब 20.48 बिलियन डॉलर पहुँच गया है। इस स्थिति से निपटने के लिए मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को एक दिन में अधिकतम नकद निकासी की सीमा तक तय करनी पड़ी जो कि मात्र एक लाख है। व्यापारियों का कहना है कि ये सीमा तय होने से उन्हें विदेशी मुद्रा खरीदने में समस्या आ रही है और बाजार भी धीरे हो रहा है। ये स्थिति बांग्लादेश में आयात और ईंधन मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगी।
मालूम हो कि साल 2009 में हसीना सरकार के आने के बाद बांग्लादेश के विकास को एक नया रूप मिला था। उन्होंने 2009 में सत्ता में आने के बाद से इस कदर उद्योग पर ध्यान केंद्रित किया और नए वैश्विक बाजारों में विस्तार किया कि आँकड़ों में बांग्लादेश ऊपर जाने लगा। इस दौरान बांग्लादेशी परिधानों की किफ़ायती कीमतों ने अंतरराष्ट्रीय खुदरा विक्रेताओं, विशेष रूप से ज़ारा और एचएंडएम जैसे फास्ट-फ़ैशन ब्रांडों को आकर्षित किया। जिससे न केवल लाखों नौकरियाँ पैदा हुईं बल्कि जीवन स्तर में भी सुधार हुआ। हसीना ने अपने कार्यकाल में बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को देश की ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता पर भरोसा मिला।