Friday, September 27, 2024
Homeदेश-समाजक्या शिव मंदिर को तोड़कर बनाई गई है मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह? कोर्ट में...

क्या शिव मंदिर को तोड़कर बनाई गई है मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह? कोर्ट में याचिका, जानिए अजमेर में हिंदुओं के पवित्र स्थलों में गोमांस खाने वाले थे कौन

मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।

राजस्थान के अजमेर जिला न्यायालय में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खिलाफ एक दीवानी वाद दायर किया गया है। इसमें कहा गया है कि अजमेर दरगाह एक शिव मंदिर है और इस पर कब्जा करके दरगाह बनाई गई है। कोर्ट में कहा गया है कि इस जगह को भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित की जाए और मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए केंद्र को निर्देश दी जाए।

याचिका में कोर्ट से दरगाह समिति को परिसर पर किए गए अनधिकृत और अवैध कब्जे को हटाने का निर्देश देने की माँग की गई है। याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को दरगाह का सर्वेक्षण करने के निर्देश देने का आग्रह किया गया है। इसमें दावा किया गया है कि मुख्य प्रवेश द्वार की छत का डिज़ाइन हिंदू संरचना जैसी है, जो दर्शाता है कि यह स्थल मूल रूप से एक मंदिर था।

इस याचिका में आगे कहा गया है, “इन छतरियों की सामग्री और शैली स्पष्ट रूप से उनके हिंदू मूल को उजागर करती है। दुर्भाग्यवश, उनकी उत्कृष्ट नक्काशी रंगाई-पुताई और सफेदी के कारण छिपी हुई है। इसको हटाने के बाद उनकी असली पहचान और वास्तविकता को प्रदर्शित किया जा सकता है।” इसमें यह भी कहा गया है कि यहाँ के तहखाने में गर्भगृह होने के प्रमाण मौजूद हैं। 

हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि अजमेर दरगाह खाली ज़मीन पर बनाई गई है। इसके बजाय, ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि उस जगह पर महादेव मंदिर और जैन मंदिर थे, जहाँ हिंदू एवं जैन भक्त अपने देवताओं की पूजा करते थे। यहाँ पर हिंदू भगवान शिव का जलाभिषेक करते थे।

वाद में अजमेर निवासी हरविलास शारदा की साल 1911 में लिखी पुस्तक ‘हिस्टोरिकल एंड डिस्क्राप्टिव’ का हवाला दिया है और कहा है कि मौजूदा 75 फीट ऊँचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे का इस्तेमाल किया गया है। हरविलास शारदा ‘रॉयल एशियाटिक ब्रिटेन एंड आयरलैंड’ के सदस्य थे। इसके साथ ही वे अजमेर में एडिशनल एक्स्ट्रा कमिश्नर भी रहे।

विष्णु गुप्ता ने अधिवक्ता शशि रंजन कुमार सिंह के माध्यम से यह वाद दायर किया है। इसकी सुनवाई 10 अक्टूबर को होने की संभावना है। दरअसल, मुस्लिमों का दावा है कि अजमेर दरगाह उनके सूफी संप्रदाय के संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है। यहाँ स्थित मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर हर साल बड़ी संख्या में मुस्लिम चादर चढ़ाने आते हैं।

अजमेर दरगाह के खादिमों ने जताई आपत्ति

हिंदू सेना की याचिका पर अजमेर दरगाह की ओर से आपत्ति जताई गई है। अखिल भारतीय सूफी सज्जापदानशीं परिषद के अध्यक्ष एवं दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन के उत्तराधिकारी नसीरूद्दीन चिश्ती और दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जागदान के सचिव सरवर चिश्ती ने इसे बेबुनियाद बताया है।

इन लोगों ने कहा कि अगर धार्मिक स्थलों पर झूठी और बेबुनियाद साजिश रची गई तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसमें आगे कहा कि इतिहास पर नजर डालें तो दरगाह ख्वाजा साहब को लेकर कभी आपत्ति नहीं जताई गई। मुगलों से लेकर खिलजी और तुगलक, हिंदू राजाओं और यहाँ तक कि मराठों ने भी दरगाह को बड़े सम्मान के साथ देखा और अपनी आस्था व्यक्त की।

मुख्यमंत्री भजन लाल को भी लिखी जा चुकी है चिट्ठी

इससे पहले इस साल जनवरी में ‘महाराणा प्रताप सेना’ के अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवर्धन सिंह परमार ने इसके लिए पत्र लिखा है। राजवर्धन सिंह ने कहा था कि ये दरगाह हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाया गया है, जिसकी ASI सर्वे बहुत जरूरी है। इस सर्वे से सारा स्पष्ट हो जाएगा। उन्होंने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी जाँच की माँग की थी और यही माँग भजनलाल शर्मा से भी की।

राजवर्धन सिंह परमार ने सोशल मीडिया पर एक पत्र और वीडियो शेयर करके कहा था, “अजमेर दरगाह कोई दरगाह नहीं बल्कि एक हिंदू मंदिर है।” उन्होंने दावा किया था कि ‘महाराणा प्रताप सेना’ ने पहले इसे राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार के संज्ञान में लाया था। ये अलग बात है कि कॉन्ग्रेसी सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।

राजवर्धन सिंह परमार ने कहा था कि इसके लिए उन्होंने राजस्थान के कई जिलों में ‘जन जागरण यात्रा’ निकाली थी और इस दौरान लोगों ने उनकी इस माँग का समर्थन किया था। उन्होंने सीएम भजनलाल से अनुरोध किया था कि वे आवश्यक निर्देश जारी करें और अयोध्या में बाबरी ढाँचे और वाराणसी में ज्ञानवापी ढाँचे की जाँच की तरह अजमेर के दरगाह की भी जाँच करवाएँ।

अजमेर दरगाह को लेकर क्या कहता है इतिहास

मोइनुद्दीन चिश्ती को लेकर इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि मोइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया, नसीरुद्दीन चिराग और शाह जलाल जैसे सूफी संत जब इस्लाम के मुख्य सिद्धांतों की बात करते थे तो वे वास्तव में रूढ़िवादी और असहिष्णु विचार रखते थे।

उदाहरण के लिए, सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती और औलिया इस्लाम के कुछ पहलुओं जैसे- नाच (रक़) और संगीत (सामा) को लेकर उदार थे, जो कि उन्होंने रूढ़िवादी उलेमा के धर्मगुरु से अपनाया, लेकिन एक बार भी उन्होंने कभी हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। औलिया ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था।

इस पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया है गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफी संतों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में धर्म परिवर्तन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चिश्ती, शाह जलाल और औलिया जैसे सूफी ‘काफिरों’ के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए भारत आए थे। उदाहरण के लिए- मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आए और गोरी द्वारा अजमेर को जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने के लिए अजमेर में बस गए थे। यहाँ उन्होंने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।

मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।

इस अना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आए थे।

इसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया। यहाँ तक कि आज भी इन सूफी संतों की वास्तविकता से उलट यह बताया जाता है कि ये क़व्वाली, समाख्वानी, और उपन्यासों द्वारा लोगों को ईश्वर के बारे में बताकर उन्हें मुक्ति मार्ग दर्शन करवाते थे। लेकिन तत्कालीन हिन्दू राजाओं के साथ इनकी झड़प और उनके कारणों का जिक्र शायद ही किसी इतिहास की किताब में मिलता हो।

खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।”

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

अपने ही मंत्री के आदेश से हिमाचल की कॉन्ग्रेस सरकार ने झाड़ा पल्ला, कहा- दुकानों पर नाम लिखने का नहीं हुआ है फैसला: हाईकमान...

रेस्टोरेंट-ढाबों और खाने-पीने की रेहड़ियों पर दुकान मालिक का नाम दर्शाने को लेकर लिए गए फैसले से हिमाचल प्रदेश सरकार पलट गई है।

जिसने राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए बनाया ₹8300 करोड़ का फंड, उसने अब अमेरिका में खरीदे 200+ रेडियो स्टेशन: कौन है PM मोदी-ट्रंप से...

वामपंथी अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस को अमेरिका में 'ऑडेसी' खरीदने की मंजूरी मिल गई है। ऑडेसी अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी रेडियो स्टेशन चेन है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -