13 दिसंबर। इतिहास की कई बड़ी घटनाओं की गवाह है ये तारीख। भारत के नज़रिए से देखें तो आतंक की दो बड़ी घटना इसी तारीख से जुड़ी है। एक 13 दिसंबर 2001 को आतंक का साया लोकतंत्र के मंदिर की चौखट तक पहुँच गया था। वहीं, 13 दिसंबर 1989 को पॉंच आतंकी रिहा करने को सरकार मजबूर हो गई थी। दोनों घटना में एक और समानता है। 2001 में एक बेटी के कारण आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए थे, तो 1989 में एक बेटी की रिहाई की क़ीमत आतंकियों को आज़ाद कर चुकाई गई थी।
2001 में 13 अगस्त की सुबह देश की राजधानी के बेहद महफ़ूज़ माने जाने वाले इलाक़े में शान से खड़ी संसद भवन की इमारत में घुसने के लिए आतंकवादियों ने सफेद रंग की एम्बेसडर का इस्तेमाल किया। सुरक्षाकर्मियों को गच्चा दे अंदर दाखिल भी हो गए। लेकिन उनके क़दम लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया।
1989 में आतंकवादियों ने जेल में बंद अपने कुछ साथियों को रिहा कराने के लिए देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री रुबिया सईद का अपहरण कर लिया था। सरकार ने 13 दिसंबर को आतंकवादियों की माँग को स्वीकार करते हुए पाँच आतंकवादियों को रिहा कर दिया।
संसद पर हमले के दौरान वीरगति को प्राप्त कमलेश कुमारी को उनकी बहादुरी के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान प्राप्त करने वाली वो पहली भारतीय महिला कॉन्स्टेबल थीं। आइए जानते हैं जब देश की संसद पर आतंकियों की नापाक नज़र पड़ी तो कमलेश कुमारी ने उसे कैसे नाकाम किया।
13 दिसंबर 2001 को सुबह के 11:25 बजे थे। संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। सदन की कार्यवाही स्थगित हुए 40 मिनट बीते थे। तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत क़रीब 200 सासंद संसद के अंदर थे। CRPF की महिला कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी गेट पर तैनात थीं। तभी अचानक सफेद अंबेसडर कार गेट नंबर-11 पर आ पहुँची। इसमें पाँच आतंकी AK-47 और हैंड ग्रेनेड से लैस थे। पाँचों आतंकियों ने चकमा देने के लिए सेना की वर्दी पहन रखी थी, लेकिन जैसे ही वो गेट नंबर-11 पर आए, वो कमलेश कुमारी की पैनी नज़र को धोखा नहीं दे पाए। पाँचों आतंकी जब गाड़ी से उतरकर संसद में घुसने लगे, तो कमलेश कुमारी को उनके आतंकी होने पर शक़ हो गया।
परंपरागत तौर पर संसद भवन में तैनात होने वाली महिला जवानों के पास हथियार नहीं होता। कमलेश के पास भी हथियार नहीं थे। हाथों में एक वॉकी-टॉकी था। उन्होंने बिना एक क्षण की देरी किए ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। अपने साथी कॉन्स्टेबल सुखविंदर सिंह अलर्ट कर दिया और आतंकियों के संसद में घुसने की जानकारी दे दी। कमलेश कुमारी की आवाज़ एक आतंकी के कान तक भी पहुँची। उसने कमलेश कुमारी पर गोलियों की बौछार कर दी। 11 गोलियों से ज़ख़्मी हुईं कमलेश कुमारी ने तब भी हिम्मत नहीं छोड़ी और अलॉर्म बजाकर सभी को आतंकी हमले से सचेत कर दिया। इसके बाद पूरे संसद की सुरक्षा मशीनरी अलर्ट मोड पर आ गई।
वहीं, उनके साथी सुखविंदर सिंह ने दौड़कर संसद भवन के अंदर जाने के सभी गेट बंद कर दिए। तब तक पूरे संसद भवन में आतंकी हमले का हल्ला मच चुका था। इस दौरान आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच 45 मिनट तक मुठभेड़ हुई। इस दौरान, सुरक्षाकर्मियों ने पाँच आतंकियों को मार गिराया था। हमले के बाद 15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य और इस हमले के मास्टरमाइंड अफ़जल गुरू को जम्मू-कश्मीर से पकड़ लिया था।
कमलेश को गोली मारने वाले आतंकी को जवान सुखविंदर सिंह ने मार गिराया था। एक मीडिया रिपोर्ट में सुखविंदर के हवाले से बताया गया है, “उन्होंने फिदायीन हमलावर को लेकर सिक्योरिटी को अलर्ट कर दिया। लेकिन वह निहत्थी थीं और खुले में होने के कारण उसकी आवाज़ आतंकी के कानों तक भी पहुॅंची। इससे पहले कि हमारी तरफ से कोई प्रतिक्रिया दी जाती उस आतंकी ने उनके पेट में गोली मार दी। यह आतंकी संसद के भीतर घुसने की फिराक में था।” यदि उस आतंकी पर कमलेश की नज़र नहीं पड़ती, उसे मार गिराया नहीं जाता और वह ख़ुद को उड़ा लेता तो नुक़सान कहीं ज़्यादा होता।
बहादुर कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी की ममता पर उनकी कर्तव्यपरायणता भारी पड़ गई। उन्होंने अपनी दो छोटी बेटियों की भी परवाह किए बिना आतंकियों से लोहा लिया। 11 गोलियाँ खाईं, मगर अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी और तत्परता से निभाया। जब संसद पर हमले की घटना हुई उस वक्त कमलेश की बड़ी बेटी ज्योति नौ साल की थी तो छोटी बेटी श्वेता महज डेढ़ साल की थी। इस समय उनकी दोनों बेटियाँ 24 और 17 साल की हो चुकी हैं। ज्योति ने फतेहगढ़ के महिला डिग्री कॉलेज से बीएससी किया है। कमलेश कुमारी का परिवार फर्रुखाबाद के आवास विकास कॉलोनी में रहता है। दोनों बेटियाँ अपने नाना राजाराम और पिता अवधेश के साथ रहतीं हैं।
बलिदानी कमलेश कुमारी के बारे में उनके परिजन बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही वर्दी से प्यार था। उनका यह सपना शादी के बाद 1994 में पूरा हुआ, जब उन्हें रैपिड एक्शन फ़ोर्स में इलाहाबाद में तैनाती मिली। जुलाई, 2001 में संसद सत्र के दौरान उनकी तैनाती संसद की सुरक्षा में की गई थी।
इधर, मुफ्ती मोहम्मद सईद का परिवार आज भी राजनीति में सक्रिय है। सईद अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी राजनीतिक विरासत बेटी महबूबा मुफ्ती के हाथों में है। वे जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनकी बहन रूबिया सार्वजनिक चर्चाओं से दूर रहती हैं। दैनिक भास्कर की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पेशे से डॉक्टर रूबिया चेन्नई में अपने पति और दो बेटों के साथ रहती हैं। उनके परिवार को वहॉं भी सुरक्षा मिली हुई है।