गिनती की घटनाएँ। ऐसी घटनाएँ रोज देश के किसी न किसी कोने से सामने आती ही रहती हैं। जितनी सामने आती हैं उससे कहीं ज्यादा दबा दी जाती हैं। हलाला, बहुविवाह से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि बहुविवाह, हलाला जैसी प्रथाओं को आपराधिक श्रेणी में रखा जाए और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ सजा तय हो। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं चाहता की उनकी कौम की महिलाओं को इससे आज़ादी मिले। उसने याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह शरिया का मसला है।
बहुविवाह प्रथा मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियाँ रखने की इजाजत देता है जबकि ‘निकाह हलाला’ का संबंध पति द्वारा तलाक दिए जाने के बाद यदि मुस्लिम महिला उसी से दुबारा शादी करना चाहती है तो इसके लिए उसे पहले किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और उसके साथ वैवाहिक रिश्ता कायम करने के बाद उससे तलाक लेना होगा।
एक ओर ये इस्लामिक कट्टरपंथी मुस्लिम महिलाओं को बहुविवाह और हलाला की दीवार के पार तक नहीं देखना देना चाहते। लेकिन, उन्हीं महिलाओं को सीएए विरोध की आड़ में ढाल बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं। लगातार सामने आए वीडियो बताते हैं कि इस विरोध के पीछे जो लोग हैं उनके मंसूबे देश विरोधी हैं। शरजील इमाम के ताजा वीडियो और गिरफ्तारी इसी का एक हिस्सा है। लेकिन, कानून की नजरों से बचे रहने के लिए साजिशन महिलाओं को शाहीन बाग जैसी जगहों पर महीने भर से ज्यादा समय से इन्हीं कट्टपंथियों ने बिठा रखा है।
फिर रामचंद्र गुहा जैसे लोग हैं जो हलाला, बहु विवाह जैसी कुरीतियों से अभिशप्त इन महिलाओं को के इस्तेमाल का बचाव करते हैं। वे कहते हैं कि शाहीन बाग की महिलाएँ सांप्रदायिक कानून, पितृसत्तात्मक राजनीति और हिंसा के खिलाफ लड़ रही हैं। जिस कानून से किसी भारतीय का कोई लेना देना न हो उसका विरोध कर रही महिलाओं का इस तरह समर्थन एक तरह से कट्टरपंथ को प्रोत्साहित ही करना है। जबकि गुहा जैसे लोगों को मुस्लिम महिलाओं को हलाला, बहुविवाह जैसे सांपद्रायिक और पितृसत्तात्मक कानून से मुक्ति पाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए था।
The women of Shaheen Bagh are opposed to communal laws, patriarchal politics, and violence. No wonder the Home Minister of India does not like them:https://t.co/9nK4jzHtSe
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) January 26, 2020
आज मुस्लिम महिलाओं की स्थिति इतनी दयनीय है कि वो जिस मजहब की होने के कारण खुद के अस्तित्व को खतरे में बता रही हैं और पहचान की लड़ाई लड़ने का दावा कर रहीं हैं। उन्हें उसी मजहब के पैरोकारों ने इतना दबाया हुआ है कि उनके लिए इबादत करने की जगह तक सीमित है।
इस दिशा में पत्रकार जिया उस सलाम ने मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश करने और नमाज अदा करने की इजाजत देने की माँग करने वाली याचिका पर हस्तक्षेप आवेदन दाखिल किया है। पिछले साल पुणे स्थित पीरजादे दंपत्ति ने याचिका दाखिल की थी। साथ ही देश भर की मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश की माँग करते हुए दावा किया था कि इस तरह का प्रतिबंध “असंवैधानिक” और जीवन के मौलिक और समानता के अधिकारों का उल्लंघन है।
ये ध्यान देने वाली बात है कि शाहीन बाग में बैठीं औरतों को ये तक नहीं मालूम होगा कि उन्हें अब तक आखिर बेवजह मस्जिदों में जाने से क्यों रोका गया और क्यों उनके लिए सीमाएँ तय की गई। वास्तविकता में तो उनका खुद का मजहब उन्हें इसकी इजाजत देता है। जिया उस सलाम ने अपनी अर्ज़ी बताया था कि भारत में महिलाओं के लिए मस्जिदों में प्रवेश करने के लिए कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। वहाँ एक मौन प्रतिबंध है, क्योंकि महिलाओं के लिए कोई अलग प्रवेश नहीं है, उनके लिए कोई पृथक क्षेत्र नहीं है। यह प्रथा कुरान और हदीस के सिद्धांतों के खिलाफ है।
कट्टरपंथ की जकड़ से निकलने की असली पहल मुस्लिम महिलाओं को ही करनी होगी। फरहत नकवी, निदा खान जैसी महिलाएँ तीन तलाक से लेकर बहु विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ लड़ भी रही हैं। इसके लिए इस्लामिक कट्टरपंथी उन्हें निशाना भी बनाते रहे हैं। लेकिन, असल आजादी के लिए हर मुस्लिम महिला को इस मोर्चे पर लड़ना होगा।
फिलहाल तो उन पर कट्टरपंथ का नशा ज्यादा हावी दिखता है। इसलिए, वे हिंदुओं को पटक-पटक कर मारने की बात कर रही हैं।
“Jis din hum Hinduo se zyada ho gaye naah us din hinduo ko raaste me patak patak ke maarenge”.
— Mikku ? (@effucktivehumor) January 28, 2020
Ganga-Jamuni tehzeeb ? pic.twitter.com/a5LoHBUMhB