पाकिस्तान और आतंकवाद एक दूसरे के पर्याय हैं। अनगिनत बार इस बात के प्रमाण मिल चुके हैं, फिर भी यूनाइटेड नेशन से लेकर अन्य तमाम मानवाधिकारवादी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस पर ख़ामोश हैं। क्यों? ये सवाल कौन उठाएगा? किससे उम्मीद की जाए? इन सभी संस्थाओं को इन आतंकियों के मानवाधिकार दिखते हैं लेकिन जो अनगिनत लोग इनके आतंक का शिकार हो रहे हैं, उस पर अज़ीब सा सन्नाटा है। क्यों? ये वही जानें कि आतंक और आतंकवाद पर इस सभी संस्थाओं का दोहरा रवैया क्यों है? बार-बार अनेक प्रमाण मिलने पर भी ये मौन चुभता है, उन सभी को जिनके अंदर थोड़ी सी भी मानवता और संवेदनशीलता बची हुई है।
हालिया मामला पुलवामा का है, जिसमें 44 CRPF के जवान एक आत्मघाती हमले में आतंक का शिकार हो गए। इस घटना की खुलेआम ज़िम्मेदारी ‘जैश-ए-मुहम्मद’ के लेने के बाद भी उसका सरगना मसूद अज़हर न सिर्फ़ पाकिस्तान में घूम रहा है बल्कि ख़ुद ये स्वीकार भी रहा है कि उसे पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने सुरक्षा मुहैया कराया है। कल ही इमरान खान पुलवामा आत्मघाती हमले में पाकिस्तान के शामिल होने का सबूत माँग रहे थे, जबकि पहले भी भारतीय एजेंसियों ने बहुत ज़्यादा सबूत मुहैया कराए हैं। पाकिस्तानी आतंक से तबाह अन्य पड़ोसी देशों ने भी इतना सबूत अभी तक पाकिस्तान को दे दिया है कि अगर पाकिस्तान उसे कबाड़ के भाव भी बेचे तो कुछ दिन उसका ख़र्चा चल जाएगा।
पुलवामा अटैक से पहले एक वीडिओ में जैश-ए-मुहम्मद सरग़ना मौलाना मसूद अज़हर कुछ आतंकियों के सामने तक़रीर देते हुए कह रहा है:
“मैं देख रहा हूँ ख़ुदा की क़सम मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैं रब्बे क़ाबा की ताक़त पर क़ुर्बान हो गया। हमारे वर्दी वाले भाई (पाकिस्तानी सेना) इसी झंडे (जैश-ए-मुहम्मद का) की दिलेरी में हमारे साथ-साथ चल रहे हैं। अल्लाह के सिवा कोई ग़ालिब नहीं हो सकता। अल्लाह की ताक़त ही सब पर ग़ालिब है। ख़ुदा की क़सम अपनी खुली आँखों से देख सकते हो। पुलवामा की किसी बच्ची का नाम गूगल पर लिखकर सर्च करो। तुम्हे कश्मीर के गाँव नज़र आएँगे। घरों पर जैश-ए-मुहम्मद के झंडे और दरवाजों पर अमीरे जैश की तस्वीर (मसूद अज़हर की), अमीरे जैश के लिखे मज़ामीन (जो कुछ लिखा है) को हिन्दुस्तान नहीं उतार सकता। अल्लाह ने हमारे फिदाईन के ख़ून के टुकड़ों की बरक़त से हमें यहाँ तक पहुँचाया है। लेकिन अभी काम ख़त्म नहीं हुआ है।”
ये कौन सा काम है, जो अभी बाकी है? कब इस आतंकी सरगना के मंसूबों पर लग़ाम लगाई जाएगी? इस तक़रीर में वह खुलेआम पुलवामा का नाम ले रहा है। वह पाकिस्तानी सैनिकों को धन्यवाद दे रहा है। वह फिदाइनों की तारीफ़ कर अन्य को फिदाईन बनने के लिए उकसा रहा है। यह सब पाकिस्तान की सरजमीं पर वहाँ के आर्मी की सरपरस्ती में हो रहा है। क्या इससे बड़ा सबूत भी चाहिए?
एक और बात मुझे चुभती है। इस्लाम तो शांति का धर्म है। वामपंथी बुद्धिजीवियों ने हमेशा इस बात का समर्थन भी किया है, तर्क भी दिए हैं। लेकिन शांतिपूर्ण इस्लाम इतना असहिष्णु क्यों है? क्यों पैगम्बर मुहम्मद के कार्टून बना देने भर से शार्ली ऐब्दो पर इस्लामी आतंकियों का क़हर टूट पड़ता है? क्यों शिया-सुन्नी के नाम पर ये पूरी क़ौम क़त्लेआम पर उतारू हो जाती है।
जैश-ए-मुहम्मद नामक आतंकी आत्मघाती संगठन बनाकर बेगुनाहों को मारने से क्या पैग़म्बर साहब खुश होते होंगे? क्या आज तक किसी मानवाधिकारवादी, अंतरराष्ट्रीय या किसी फ़तवावीर ने कोई आदेश या फ़तवा जारी किया कि ऐसे आतंकी दस्ते न बनाए जाएँ। बावजूद इसके कि सारी दुनिया आज ऐसे संगठनों के नाम पर थूक रही है, ऐसा कोई फ़तवा या आदेश सुनने में नहीं आया है।
वैसे पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से देश भर में छिपे ‘शांति दूत’ सामने आए खुशियाँ मनाते हुए, उससे उनकी छिपी सड़ी हुई मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई। पता नहीं कब तक यूँ ही ये आतंकी संगठन पकिस्तान की कोख़ में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की नज़रों के सामने खुलेआम पलते रहेंगे और पूरी विश्व बिरादरी इस पर आँख मूँदे फिर से किसी नए आतंकी हमले तक गूँगी-बहरी बनी रहेगी?
इन सब विडम्बनाओं के बावजूद एक बार फिर भारत आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने की दिशा में कूटनीतिक पहल कर रहा है। इस पहल में फ्रांस ने कहा है कि वह अगले कुछ दिनों में आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाएगा। हालाँकि जैश-ए-मोहम्मद को पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित कर रखा है। फिर भी अज़ीब बात ये है कि यह आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए एक बार फिर कूटनीतिक अभियान चला रहा है। पर अंज़ाम क्या होगा? क्या कोई देश फिर वीटो पावर के नाम पर अड़ंगा लगाएगा या इस आतंकी को उसके अंजाम तक पहुँचाया जाएगा, इस पर सभी की निगाहे हैं।