पर्यावरण संरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर आज पूरा विश्व चिंतित है। वैज्ञानिक बहुत समय पहले से ही लगातार हमें चेतावनी दे रहे हैं कि यदि मनुष्य अभी नहीं सुधरा तो भविष्य में होने वाले नुकसान के लिए उसे तैयार रहना पड़ेगा। वैसे तो पर्यावरण को लेकर हर देश अपने स्तर पर जागरूकता फैलाने का प्रयास करता रहा है।
लेकिन आज 15 मार्च को ऐसा पहली बार हो रहा है कि पर्यावरण को बचाने के लिए 105 देशों के स्कूली छात्र हड़ताल करने वाले हैं। विश्व भर के क़रीब 1,500 से अधिक शहरों के स्कूली छात्र इस हड़ताल में भाग लेंगे। आप सोच रहे होंगे कि एकदम से स्कूली छात्रों में पर्यावरण को लेकर इतनी जागरूकता कैसे जाग उठी कि एक साथ इतने बच्चों ने हड़ताल करने का फैसला कर लिया। तो आपको बता दें कि इस हड़ताल की वजह के पीछे एक 16 वर्षीय छात्रा है जिसका नाम ग्रेटा थनबर्ग है।
Fridays for future. The school strike continues! #climatestrike #klimatstrejk #FridaysForFuture pic.twitter.com/5jej011Qtp
— Greta Thunberg (@GretaThunberg) September 16, 2018
स्वीडन की ग्रेटा पर्यावरण के लिए काफ़ी चिंतित है। उसके अनुसार जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ उठाए कदमों पर्यावरण को बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है। एक 16 साल की छात्रा में पर्यावरण को लेकर ऐसी जागरूकता वाकई सराहनीय है। इस हड़ताल की खबर के बाद आज ग्रेटा को हर कोई जानना चाहता है कि आख़िर एक 16 साल की बच्ची की सोच को इतना विस्तार कैसे मिला? तो बता दें कि ग्रेटा अब सिर्फ एक छात्रा नहीं रह गई हैं, बल्कि उनके विचारों ने उन्हें समाज में बहुत प्रतिष्ठित बना दिया है।
Nelson College haka #ClimateStrike pic.twitter.com/4tPuUsZ9po
— Naomi Arnold (@NaomiArnold) March 15, 2019
आज पूरे विश्व में अपनी पहचान बना लेने वाली ग्रेटा को नार्वे के 3 सांसदों द्वारा नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। पिछले वर्ष 2018 में ग्रेटा को पर्यावरण के मुद्दे पर बोलने के लिए TEDx Stockholm में वक्ता के रूप में भी बुलाया गया और साथ ही दिसंबर में ग्रेटा संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में भी बुलाया गया। ग्रेटा के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें 2019 में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम में भी आमंत्रित किया गया था। जहाँ पर उनके भाषण को सुनकर लोग हैरान रह गए थे।
There’s a huge turnout in Auckland for the #climatestrike #ss4cnz #climatestrike #schoolstrike4climate pic.twitter.com/w441QTmZgl
— Greenpeace NZ (@GreenpeaceNZ) March 14, 2019
जाहिर है कि एक 16 साल की लड़की अगर बड़े-बड़े दिग्गजों के समक्ष कहे कि वह उन लोगों को पर्यावरण को लेकर आश्वस्त नहीं बल्कि परेशान देखना चाहती है तो लोगों की हैरानी बनती ही है। ग्रेटा कहती है कि नेताओं को पर्यावरण को बचाने के लिए उस घोड़े की तरह बर्ताव करना चाहिए जो कि आग में घिरा हो और बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा हो।
Tomorrow we school strike for the climate in 1769 places in 112 countries around the world. And counting.
— Greta Thunberg (@GretaThunberg) March 14, 2019
Everyone is welcome. Everyone is needed. Let’s change history. And let’s never stop for as long as it takes. #fridaysforfuture #schoolstrike4climate #climatestrike pic.twitter.com/xpCLQN8icv
ग्रेटा को अपनी इन्हीं बातों के कारण टाइम मैग्जीन द्वारा वर्ष 2018 की सबसे प्रभावशाली किशोरी के तौर पर शामिल किया था। आज 105 देशों के स्कूली छात्रों की सहायता से होने वाली हड़ताल पर ग्रेटा का कहना है कि उन्हें इस स्ट्राइक से काफ़ी उम्मीदें हैं। वो कहती हैं कि वो और उनके साथ के बच्चे अब ऐसा करने के लिए युवा हो चुके हैं, लेकिन फिर भी सत्ता में बैठे लोगों को इसके लिए गंभीर रूप से काफ़ी कुछ करना चाहिए।
Inspired by Sweden teenage activist @GretaThunberg, this group students and their parents have joined in on the global movement #FridaysForFuture to demand stronger action to combat climate change from the Hong Kong government. pic.twitter.com/kMUtNjwxE2
— Rachel Leung (@LeungRrachel) March 15, 2019
ग्रेटा ने इस मुहिम को #FridaysForFuture और #SchoolsStrike4Climate नाम से शुरू किया। इस मुहिम की शुरूआत पिछले वर्ष की गई थी, जिसमें ग्रेटा स्वीडिश संसद तक साइकिल पर गईं और वहाँ पर हाथ का बना हुआ एक साइन बोर्ड लेकर बैठीं रहीं थी।
ग्रेटा के कदम को काफी लोगों द्वारा सराहा गया। ग्रेटा का कहना है कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सिर्फ़ रैलियाँ करने भर से कुछ नहीं होने वाला है। आपकों बता दें कि ग्रेटा के द्वारा शुरू की गई यह मुहिम एक आंदोलन की तरह है जो कि सम्पूर्ण मानव जाति के भविष्य के लिए किया जा रहा है। हाल ही वैज्ञानिकों ने खबरदार किया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल विश्व के औसत तापमान में वृद्धि हुई है बल्कि लू की गर्माहट में भी काफ़ी वृद्धि हुई। इस गर्मी को वैज्ञानिकों ने वन्यजीवों के लिए जानलेवा बताया।
याद दिला दें कि इन बातों को हल्के में लेने का मतलब अपने भविष्य को अंधकार में ढकेलने के समान है क्योंकि शोधकर्ताओं के मुताबिक बढ़ते तापमान के कारण लू से जितनी मौतें 2003 में यूरोप में हुई थीं, 21 वीं सदी के आखिर तक यह लू का तापमान पहले से 4 गुना बढ़कर अधिक हो जाएगा और इससे होने वाली मौतों का आँकड़ों का अंदाज फिर आप खुद ही लगा सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम भी पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान दें और 16 साल की ग्रेटा की तरह व्यापक स्तर पर लोगों को जागरूक करें।