Wednesday, January 22, 2025
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कुआँ पूजन, शादी-ब्याह, पूजा-पाठ… हरिहर मंदिर में सब होता था: संभल के बुजुर्गों ने जामा मस्जिद मानने से किया इनकार, बताया- दीवारें बनाकर हिंदुओं का प्रवेश किया बंद

ये शाही जामा मस्जिद संभल के कोट इलाके में है। इस जगह को दो भागों में बांटा गया है, एक कोट पूर्वी और दूसरा कोट गर्भी। मुख्य द्वार के सामने ज्यादातर हिंदू रहते हैं। पत्रकार ने इन्हीं कुछ हिंदुओं से मुलाकात की।

उत्तर प्रदेश का संभल इस्लामी कट्टरपंथियों की हिंसा के कारण लगातार चर्चा में है। ऐसे में हर मीडियाकर्मी ग्राउंड पर जाकर अपनी पड़ताल को साझा कर रहा है। हाल में स्वराज्य पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा भी स्थिति जानने वहाँ पहुँचीं और एक्स अकाउंट (पूर्व में ट्विटर) पर बताया कि इलाके के बुजुर्ग हिंदू और उनके पूर्वज विवादित स्थल को लेकर क्या बताते आए हैं।

स्वाति गोयल के ट्वीट के अनुसार, ये शाही जामा मस्जिद संभल के कोट इलाके में है। ये जगह दो भागों में बँटा हुआ है, एक कोट पूर्वी और दूसरा कोट गर्भी। मुख्य द्वार के सामने ज्यादातर हिंदू रहते हैं। पत्रकार ने इन्हीं कुछ हिंदुओं से मुलाकात की।

इनमें एक 66 साल के अनिल टंडन भी हैं। अनिल टंडन बताते हैं कि वो कोट पूर्वी इलाके में रहते हैं और उनके परिवार ने हमेशा उस इमारत को हरिहर मंदिर ही माना है।

टंडन ने बताया कि पहले यहाँ हरिहर मंदिर ही था। 8 साल की उम्र में वो अपने परिजनों के साथ मंदिर जाया करते थे जोकि मस्जिद के भीतर है। मगर, बाद में हिंदुओं की एंट्री परिसर में रोक दी गई। यहाँ दीवारें बना दी गई और कमरे को बंद करके ताला लटका दिया गया। अंदर एक कुंड भी है।

इसी प्रकार 75 साल के अरविंद अरोड़ा ने बताया कि उनका परिवार 1947 में लाहौर से आया था। परिवार को पता चला कि ये जगह हरिहर मंदिर है और यहाँ ज्यादातर विस्थापित पंजाबी रहते थे लेकिन बाद में माहौल बिगड़ने के बाद वो इलाके को छोड़ने लगे।

इसके बाद 90 साल की मुन्नी देवी ने बताया- “पहले अंदर कुआँ था जो खुला हुआ था, फिर आधा हिस्सा भीतर ले लिया गया और आधा बाहर रह गया। हम लोग वहाँ कुआँ पूजने जाते थे। उन्होंने कहा, “मेरे जितने बच्चे हुए सबका कुआँ वहीं पूजा गया। बाकी फिर इन्होंने कुआँ पूजना बंद करवा दिया।” मुन्नी देवी ने कहा- “हमें ये लगता नहीं है ये हरिहर मंदिर ही है। इन लोगों ने कभी अंदर जाने नहीं दिया। मगर हमारे घर में पानी उसी कुएँ से आता था।”

गौरतलब है कि स्थानीय बुजुर्गों की बातचीत से यही पता चलता है कि शाही जामा मस्जिद में पहले लोगों का आना-जान था, मगर बाद में हर चीज बंद करवा दी गई। इलाके के बुजुर्ग अब भी याद करते हैं कि कैसे अपने बचपन या युवावस्था में वो मंदिर जाते थे। उनके पुरखे उन्हें साफ कहते थे कि ये मस्जिद नहीं मंदिर है। बातचीत के दौरान कोई भीतर बने कुंड की बात बताता है तो कोई साफ कहता है कि यहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया गया है।

इससे पहले बता दें कि इस स्थल को लेकर भाजपा विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने भी टिप्पणी की थी। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा था कि संभल में जामा मस्जिद हरि मंदिर था। जिसे समाजवादी पार्टी की सरकार ने 2012 में जामा मस्जिद में तब्दील करा दिया था। इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि साल 2012 से पहले इस जगह पर हिंदू माताएँ पूजा-पाठ करने जाती थीं। इसके अलावा यहाँ शादी ब्याह के कार्यक्रम भी कराए जाते थे। बच्चा बच्चा इसे हरि मंदिर के नाम से जानता था। बाद में सपा के शफीकुर्रहमान बर्क के दबाव में उनकी पार्टी की सरकार ने यहाँ पूजा बंद करवा दी और हिंदुओं को वहाँ जाने से रोक दिया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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