Monday, May 6, 2024
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गौ-भक्त केजरीवाल, क्या से क्या हो गए देखते देखते

जब भी केजरीवाल जी को ऐसी अलग किस्म की राजनीति करते हुए देखता हूँ तो मुझे शुरुआती दिनों में क्रांति के नाम पर आम आदमी पार्टी की पाँच रुपए की पर्ची काटकर उनसे जुड़ने वाले मासूम और भटके हुए नौजवान याद आते हैं

देश को पिछले एक-दो साल में जितने गौ-भक्त मिले हैं, इतने आज़ादी के 60 साल बाद तक कभी नहीं मिले थे। गौ भक्तों की श्रेणी में आज एक और नाम जुड़ गया है। ये नाम कोई और नहीं बल्कि देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री का है, जिन्होंने अपने कई प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त करवाने से कई सौ साल पहले घोषणा कर दी थी कि वो ‘अलग किस्म की राजनीति’ करेंगे। हालात ये हुए कि दिल्ली में चुनाव प्रचार के पहले ही दौर में वो खुद को ‘पीड़ित बनिया’ बता गए।

जब भी केजरीवाल जी को ऐसी अलग किस्म की राजनीति करते हुए देखता हूँ तो मुझे क्रान्ति के शुरुआती दिनों में चंदा माँगकर ‘वॉलंटियर्स’ जोड़ने वाले वो भोले-भाले युवक याद आते हैं, जो कह रहे थे कि उन्होंने अपनी तनख्वाह का फ़लाना प्रतिशत आम आदमी पार्टी को दे दिया है। तभी दूसरा वॉलंटियर एक सत्संगी लेख लिखता हुआ मिलता था, जिसमें वो बताता था कि कैसे वो अपने कॉलेज से मिलने वाली स्कॉलरशिप आम आदमी पार्टी को देने के बाद ‘हल्का’ महसूस कर रहा था। भैया, हल्का ही महसूस करना था तो ‘पेट-सफ़ा’ ले लेते, बेकार में राजू श्रीवास्तव पीला कोट पहनकर सुबह शाम टेलीविज़न पर उसकी मार्केटिंग कर रहा है, जबकि वो अपने खाली समय में फ़ेसबुक पर लोगों को गाली दे सकता था।

देश की जनता बहुत समय से परेशान थी कि जब उनके क्रांतिकारी नेता अरविन्द केजरीवाल हाथों में पेचकस-प्लास लेकर बिजली नहीं बना रहे हैं, ना ही उनके फिल्मों के रिव्यु आ रहे हैं, तो वो मुख्यमंत्री होकर आखिरकार आजकल अपना कौन सा फ़र्ज़ निभा रहे हैं?

जवाब आज ही आम आदमी पार्टी द्वारा जारी किए गए एक विडियो में आ चुका है। मित्रों, केजरीवाल बाबू गौ माता को धुप-अगरबत्ती लगा रहे हैं, मैंने देखा कि विडियो में जिस गाय माता को वो आरती की थाली घुमा रहे हैं और तिलक लगा रहे हैं, वो केजरीवाल जी की गौभक्ति के कारण बहुत तंदुरुस्त हो गई है। मने कहाँ योगी जी असल गौसेवक होने का वादा करते रहे और कहाँ केजरीवाल जी ने यहाँ भी बाज़ी मार डाली।

ये गौभक्ति का निर्णय शायद केजरीवाल जी ने ट्विटर पर लोगों से जनादेश लेकर ही किया है। वो ट्वीट कर के जनता की राय पूछ भी चुके हैं कि क्या दिल्ली की जनता भी यही चाहती है की गाय की सेवा की जाए? जवाब शायद “हाँ” ही था

दोस्तों, देश में आस्था का सैलाब आ चुका है। अब बस मोदी जी ही ऐसे इंसान रह गए हैं जो हिन्दुओं के लाख चाहने के बावज़ूद भी हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं। वरना तो 48 वर्ष के युवा द्वारा जनेऊ धारण कर लिया जा चुका है, पहली रोटी गाय माता को खिलाई जाने लगी है। लिबरल-फेमिनाज़ी महिलाओं में मंदिरों में प्रवेश के लिए होड़ मची हुई है, कुछ तो सुबह 3 बजे उठकर मंदिर में घुसी जा रही हैं। जबकि किसी कट्टर हिन्दू शेर से अगर आप पूछेंगे कि वो आख़िरी बार कब नहा-धोकर ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर में भगवान के दर्शन करने गया था तो उसे यही याद करने में हफ्ता लग जाएगा कि वो आखिरी बार 10 बजे से पहले भी कब उठा था?

लेकिन आस्था का माहौल टाईट है, रोज सुबह उठकर सबसे पहले नाश्ते के साथ पित्रसत्ता और लंच में ब्राह्मणवाद को कोसने वाली फेमिनाज़ियों को भी अगर आप कह देंगे कि बहन आजकल मंदिर जाकर कॉन्ट्रोवर्सी हो रही है, तो वो भी बिना पिंक कलर के खरगोश के मुँह वाले ज़ुराब पहने ही दौड़ लगाकर झट से मंदिर में जाकर खड़ी हो जाएगी।

लेकिन अभी तो चुनाव आने में कुछ और महीने बाकी हैं। अभी मैं उम्मीद लेकर चल रहा हूँ कि देश में गाय माता खूब फूलेंगी-फलेंगी। आख़िरी बार गौ-माताओं का स्वर्णिम काल तब आया था जब मामले की नज़ाकत को भांपते हुए एक समाजवादी नेता ने बैलों को और एक लौह महिला ने गाय और बछड़े को अपनी पार्टी का चिन्ह घोषित कर दिया था। ये बात अलग है कि जरुरत पड़ने पर उसी कॉन्ग्रेस ने केरल में वामपंथियों के साथ मिलकर गाय को काटकर जबरदस्त प्रदर्शनी लगाकर उत्सव भी मनाया।

तो भैया, ये गाय माता हैं, बच्चों का बड़े से बड़ा अपराध भी क्षमा कर देना माता का स्वभाव होता है। इसलिए जितना हो सके चुनावों से पहले अपराध कर डालिए। जनता तो सब देख ही रही है।

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आशीष नौटियाल
आशीष नौटियाल
पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice

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