भारतीय राजनीतिक इतिहास में 9 दिसंबर का दिन बेहद महत्वपूर्ण है। इसी दिन 200 साल के ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के बाद देश के भावी-भविष्य के लिए संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली के कंस्टीट्यूशनल हॉल में हुई थी। और अब इसी दिन 9 दिसंबर 2018 को अपने जन्मदिन के मौके पर सोनिया ने डीएमके नेताओं से मिलकर कॉन्ग्रेस-डीएमके गठबंधन को लोकसभा चुनाव के लिए एक तरह से हरी झंडी दिखाई। ऐसा करके सोनिया ने एक ऐसे राजनीतिक दल के साथ गठबंधन किया है, जिस दल के नेता पर राजीव गाँधी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप है।
सोनिया गाँधी के 72वें जन्मदिन 9 दिसंबर 2018 के मौके पर राहुल गाँधी ने ट्वीट करके कुछ तस्वीर साझा की थी, इस तस्वीर में सोनिया गाँधी डीएमके के नेताओं से मिलते हुए दिख रही हैं। डीएमके नेता टीआर बालू, स्टालिन और ए राजा ने दिल्ली में सोनिया से मुलाकात करके शॉल ओढ़ाकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। इसके साथ ही यह ज़ाहिर हो गया कि आने वाले चुनाव में कॉन्ग्रेस-डीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। लेकिन राजनितिक बहस यहाँ आकर खत्म नहीं होती है, बल्कि यहाँ से शुरू होती है।
Shri Stalin & senior members of the DMK, visited Sonia Ji in Delhi today, to wish her on her birthday. We had a warm & cordial meeting & discussed a range of issues. I look forward to continuing our dialogue & to strengthening our alliance, that has stood the test of time. pic.twitter.com/Cdg0deyfQG
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 9, 2018
यह सोचने वाली बात है कि एक राजनीतिक पार्टी, जिसके नेताओं पर राजीव गाँधी हत्या का आरोप है, उस पार्टी के नेताओं से अपने जन्मदिन की सुबह सबसे पहले मिलकर सोनिया क्या संकेत देना चाहती है? क्या ऐसा करके सोनिया ने उस दल से दोस्ती कर ली है, जिसके उपर राजीव गाँधी के क़त्ल का इल्जाम है? इस सवाल का जवाब है, ‘हाँ, सोनिया ने अपने पति के हत्यारोपी से दोस्ती आज नहीं बल्कि एक दशक पहले ही कर ली थी।’ इस गठबंधन के बाद कई लोगों को हैरीनी हुई थी। लोगों की यह हैरानी जायज़ भी थी, क्योंकि राजीव सिर्फ़ सोनिया के पति नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी थे।
जब राजीव की हत्या में डीएमके नेताओं का नाम आया
राजीव गाँधी की हत्या के बाद जाँच के लिए एक जैन कमीशन का गठन किया गया था। इस कमीशन को राजीव गाँधी हत्याकांड को सुलझाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस कमीशन ने अपने अंतरिम रिपोर्ट में इस बात को ज़ाहिर किया कि श्रीपेरेंबदूर में राजीव की हत्या करने वाले आतंकवादी, राज्य के डीएमके नेताओं के संपर्क में थे। जब यह घटना हुई तब राज्य में डीएमके की सरकार थी। ऐसे में रिपोर्ट में इस बात की चर्चा है कि कई डीएमके नेताओं को भी इस साज़िश की जानकारी थी।
हालाँकि, बाद में जब जैन कमीशन की रिपोर्ट आई तब केंद्र में आईके गुजराल साहब की सरकार थी। गुजराल सरकार में डीएमके गठबंधन दल के रूप में शामिल थी। ऐसे में इस बात की संभावना ज़ाहिर की गई कि सरकार ने जानबूझकर अंतरिम रिपोर्ट से उस हिस्से को अलग कर दिया जिसमें डीएमके उपर कार्रवाई करने की बात कही गई थी। तब कॉन्ग्रेस ने भी गठबंधन सरकार से डीएमके को बाहर करने की बात कही थी। जब कॉन्ग्रेस पार्टी की बात को गुजराल ने नज़रअंदाज़ कर दिया तो पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था।
लेकिन आश्चर्च की बात यह है कि इसी डीएमके से सोनिया ने 2004 लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया। इस गठबंधन के पिछे सोनिया ने यह तर्क दिया था कि एक सांप्रदायिक पार्टी को हराने के लिए मैंने ऐसा किया है। लेकिन ऐसा करके अपने पति की मौत को अंजाम देने वाले डीएमके को भले ही सोनिया ने माफ़ कर दिया हो, परंतु उसी डीएमके ने 2G घोटाले की बात सामने आने के बाद अपने नेताओं को भ्रष्टाचार में फँसता देख समर्थन वापस ले लिया।
एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए अपने पति की मौत को भूल जाने वाली सोनिया की डीएमके ने जरा भी परवाह नहीं की। इन सबके बावजूद एक बार फ़िर से मोदी सरकार को गिराने के लिए दोनों दलों ने पहले के किए-धरे पर मिट्टी डालकर गठबंधन कर लिया है।
जब करुणानिधि ने खुद प्रभाकरण को दोस्त बताया
भारतीय जाँच एजेंसी इस बात को ज़ाहिर कर चुकी है कि राजीव के मौत में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण का हाथ था। प्रभाकरण ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पूरी रणनीति तैयार की थी। देश के एक भावी युवा नेता को मारने के लिए कोई और नहीं बल्कि प्रभाकरण जिम्मेदार है, यह जानते हुए भी 2009 को अपने एक इंटरव्यू में करुणानिधि ने बताया कि प्रभाकरण उनके काफ़ी अच्छे दोस्त थे। ऐसा कहकर डीएमके नेता ने एक तरह से राजीव के हत्यारे से अपनी दोस्ती होने की बात को स्वीकार कर लिया। यह सोचने वाली बात है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद सोनिया के नेतृत्व वाले कॉन्ग्रेस ने करुणानिधि से हाथ मिलाना स्वीकर किया।
अपने पति के हत्यारे से दोस्ती कैसी?
यह कितना आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक नफ़ा-नुकसान को देखते हुए एक महिला नेता उस पार्टी के साथ मंच साझा करने लगती है, जिसने कभी उसके पति की मौत का ताना-बाना बुना था। यही नहीं इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि सोनिया ने अपनी बेटी को पिता के हत्यारे से मिलने के लिए जेल भेजा। प्रियंका ने यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि वह अपने पिता के हत्यारों को माफ़ करना चाहती है। ऐसा करते हुए प्रियंका ने ज़रा भी नहीं सोचा कि वो भारतीय कानून व्यवस्था से आगे निकल रही हैं। किसी हत्यारे की सज़ा क्या होगी इस फ़ैसले का अधिकार प्रियंका नहीं बल्कि देश के न्यायपालिका का होता है।