तमाम वामपंथी गैर सरकारी संगठनों और समाचारों समूहों ने गोवा के तीन महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को निशाना बनाया है। आरोप है कि इन परियोजनाओं से वन्य जीव (वाइल्ड लाइफ) को नुकसान पहुँचेगा। यह तीन परियोजनाएँ कुछ इस प्रकार हैं: राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) 4-ए को चौड़ा करना, ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण और वर्तमान रेलवे लाइन को दोहरा करना। जिसका विरोध कि तमाम सामाजिक कार्यकर्ता कर रहे हैं।
आरोपों के अनुसार, इन परियोजनाओं के चलते भगवान महावीर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और मल्लेम स्थित नेशनल पार्क का वन्य जनजीवन प्रभावित होगा। विरोध की इस हवा में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी छलांग लगा चुके हैं। नतीजतन गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और उनके बीच वाद-विवाद भी देखने को मिला।
इस प्रकरण की शुरुआत हुई 9 नवंबर को, जब अरविन्द केजरीवाल ने गोवा में पर्यावरण और वन्य जीव की सुरक्षा के लिए प्रदर्शन कर रहे लोगों को सराहा। इसके साथ ही साथ, केजरीवाल ने प्रदर्शनकारियों पर दर्ज की गई प्राथमिकी के लिए गोवा सरकार की निंदा भी की। केजरीवाल ने प्रमोद सावंत की अगुवाई में गोवा में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी सरकार पर जनता के विरोध को दबाने का आरोप लगाया था।
केजरीवाल द्वारा की गई टिप्पणी का जवाब देते हुए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने समाचार समूहों के समक्ष अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि गोवा की चिंता करने से पहले अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली की स्थिति सुधार लेनी चाहिए।
Goans camping day n nite to #savemollem and stop #coalprojects. FIRs done against many Goans incl AAP volunteers. Muzzling protests and lodging FIR will not dampen spirit of Goans to save Goa from being a coal hub. Govts shud not implement projects against the wishes of people.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 9, 2020
इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने गोवा न्यूज़ हब के ट्वीट का उल्लेख करते हुए गोवा के मुख्यमंत्री की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह ‘दिल्ली के प्रदूषण बनाम गोवा के प्रदूषण’ के संबंध में नहीं है। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना होगा कि दिल्ली या गोवा कहीं भी प्रदूषण नहीं हो।
.@DrPramodPSawant Its not abt Delhi’s pollution vs Goa’s pollution. Both Delhi and Goa are dear to me. We are all one country. We all have to work together to ensure there is no pollution in both Delhi and Goa. https://t.co/AWiIg7zX1W
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 11, 2020
प्रमोद सावंत इस बात से सहमत नज़र आए और उन्होंने कहा कि गोवा की सरकार राज्य में प्रदूषण को समाप्त करने के लिए लगातार कार्यरत है। लेकिन अपनी चतुराई का प्रदर्शन करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस जवाब का इस्तेमाल करते हुए गोवा के मुख्यमंत्री कहा कि वह प्रदर्शनकारियों की आवाज़ सुनें। फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि वह जानते हैं केंद्र गोवा पर परियोजनाएँ थोप रहा है, उन्हें (प्रमोद सावंत) को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से असहमति जतानी चाहिए और गोवा को कोयले का हब (गढ़) बनने से रोकना चाहिए।
Dear @ArvindKejriwal ji,
— Dr. Pramod Sawant (@DrPramodPSawant) November 12, 2020
Doubling of Railway tracks is a nation building exercise.
There is no threat to Mollem & we will ensure it remains that way.
We will not allow Goa to become coal hub.
Knowing your expertise in creating Center vs State issues, we will skip your advice. https://t.co/R0nyO8Bzry
इसके बाद प्रमोद सावंत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल के दावे को खारिज किया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में रेलवे लाइनों को दोहरा किया जा रहा है और इस परियोजना से मोल्लेम को कोई ख़तरा नहीं है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि गोवा कोयले का हब नहीं बनेगा। इसके अलावा उन्होंने केंद्र और गोवा सरकार के बीच तनाव पैदा करने का प्रयास करने की बात पर केजरीवाल को तार्किक ढंग से घेरा। उन्होंने कहा, “केंद्र और राज्य के बीच विवाद पैदा करने पर आपकी कुशलता के बारे में हम बखूबी जानते हैं इसलिए हम आपकी सलाह को नज़रअंदाज़ करते हैं।”
.@DrPramodPSawant ji, you don’t need to listen to my advice but please listen to the voices of Goans. Shouldn’t Goans have some say in their own state? Is Central diktat more important than Goan voices? https://t.co/aApYjBxZzq
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 12, 2020
लेकिन अरविन्द केजरीवाल की बात ही निराली है, वह लगातार निवेदन करते रहे कि केंद्र सरकार गोवा पर यह परियोजना थोपना चाहती है। गोवा की सरकार को इसका विरोध करना चाहिए।
दिल्ली का अनियंत्रित प्रदूषण
अरविन्द केजरीवाल ने भले ही गोवा सरकार को सुझावों का एक लंबा पुलिंदा दे दिया हो लेकिन इस बीच वह दिल्ली के पर्यावरण के हालात भूल गए। जिसकी स्थिति सुधारने में वह लगभग नाकामयाब रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में इस वर्ष बेहिसाब प्रदूषण है लेकिन दिल्ली की सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह असफल साबित हुई है। जबकि यह बात सभी जानते थे कि साल के इस वक्त में दिल्ली के भीतर प्रदूषण की मात्रा कहीं ज्यादा बढ़ जाती है।
अरविन्द केजरीवाल ने दावा किया था कि पराली जलाना वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण था और वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह पडोसी राज्यों में किया जाता है। कुल मिला कर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपनी निष्क्रियता और लापरवाही के लिए अन्य मुख्यमंत्रियों को दोषी ठहरा दिया और प्रदूषण के तमाम अहम कारणों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया।
इतना ही नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री का पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी इस मुद्दे पर वाद विवाद हो चुका है। इस मुद्दे पर पर्यावरण मंत्री का कहना था कि दिल्ली के कुल प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी सिर्फ 4 फ़ीसदी है। जिस पर केजरीवाल ने कहा था कि नकारने से इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा, फिर उन्होंने दावा किया कि पराली ही दिल्ली के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। आईआईटी कानपुर द्वारा साल 2015 में किए गए एक शोध के अनुसार दिल्ली के 70 फ़ीसदी प्रदूषण का कारण, स्थानीय स्रोत हैं। जिसमें सड़क की धूल, वाहन और घरेलू स्रोत मुख्य रूप से शामिल हैं। यानी केजरीवाल के दावे के अनुसार सिर्फ पराली जलाना दिल्ली के प्रदूषण का एकमात्र सबसे बड़ा कारण नहीं है।
मूल समस्या का उल्लेख और उसे स्वीकार नहीं करने की वजह से दिल्ली की सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदूषण पर नियंत्रण करने में असफल रही है। दिल्ली की सरकार ने अक्टूबर में ‘ग्रीन वॉर रूम’ इओन (ion) की शुरुआत की थी जिसके तहत तमाम निर्देश जारी किए गए थे। जिसमें सैटेलाइट तस्वीरें, धूल ख़त्म करने के लिए ड्राइव, अलग अलग क्षेत्रों में एंटी स्मोग गन लगाना, दिल्ली में प्रदूषण के 13 हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों के लिए एक्यूआई (AQI) समेत अन्य कई निर्देश। लेकिन इनमें से कोई भी निर्देश प्रभावी साबित नहीं हुआ बल्कि राजधानी के कई क्षेत्रों का एक्यूआई स्तर लगभग 999 रहा जो कि डिवाइस द्वारा मापी जाने वाली सबसे अधिक रीडिंग है। सरल शब्दों में कहें तो दिल्ली का प्रदूषण स्तर इतना है, जितना मशीन की माप से भी ज़्यादा है।
पटाखों पर प्रतिबंध लगाने और ग्रीन पटाखों का संग्रह करने वालों को गिरफ्तार करने के अलावा (दिल्ली सरकार द्वारा इसके लिए लाइसेंस जारी किए जाने के बाद) प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केजरीवाल सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इतना ही नहीं केजरीवाल ने प्रदूषण के मुद्दे पर गोवा के मुख्यमंत्री से बहस कर ली लेकिन अपने पड़ोसी राज्य पंजाब को पराली जलाने से रोकने के लिए मना नहीं कर पाए जो उनके मुताबिक़ प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। यह बात भी आम लोगों की समझ के दायरे से बाहर है कि पता नहीं कैसे केजरीवाल ने गोवा सरकार के साथ प्रदूषण का सामना करने का प्रस्ताव रख दिया। जो दिल्ली से लगभग 2000 किलोमीटर दूर स्थित है और वहाँ की जलवायु और पर्यावरण कितना अलग है।
दोहरा करने की परियोजना को लेकर झूठ
इस परियोजना के तहत कर्नाटक के होसपेट और गोवा के वास्कोडिगामा के बीच रेलवे लाइन को दोहरा किया जाएगा। कुल 342 किलोमीटर की रेलवे लाइन में 252 किलोमीटर रेलवे लाइन का काम पूरा हो चुका है, बचे हुए 90 किलोमीटर में लगभग 70 किलोमीटर गोवा में आता है। इस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की ज़रूरत तब महसूस हुई जब यह बात सामने आई कि 24 कोच की लंबाई वाली पैसेंजर ट्रेन को प्लेटफॉर्म की लंबाई और अन्य पहलुओं की वजह से शुरु नहीं किया जा सकता था।
तमाम कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों ने इस परियोजना का तमाम पर्यावरण संबंधी कारणों की वजह से विरोध किया। जिसमें नेशनल पार्क को हानि, पुरानी इमारतों को नुकसान, कोयले के आवागमन की वजह से पर्यावरण की हानि। ऐसा भी दावा किया जाता है कि उच्च न्यायालय ने इस परियोजना पर रोक लगाई है और परियोजना को रोकने के लिए रेलवे बोर्ड की तरफ से भी आदेश जारी किया गया था। एक और दावे के अनुसार रेलवे ने इस परियोजना के लिए ग्रामीण प्रशासन से अनुमति नहीं ली थी।
इसके बाद रेलवे के आईआईएससी, बेंगलुरु की मदद से एक सर्वेक्षण (एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट) कराया। देश का एक ऐसा प्रतिष्ठित संस्थान जो वन विभाग और पर्यवारण मंत्रालय से जुड़ी चीज़ों का विश्लेषण और निगरानी रखता है। उस क्षेत्र में पशुओं की ‘सेफ क्रासिंग’ के लिए 5 नए अंडरपास, 3 नए ओवरपास बनाए जाने की योजना तैयार की गई है। पर्यावरण मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि किसी भी परम्परागत इमारत ट्रैक को दोहरा करने की परियोजना के दौरान नहीं तोड़ा जाएगा।
इसके अलावा सरकार कोयले के निर्यात पर भी रोक लगाएगी, इसका मतलब रेलवे ट्रैक पर कोयले का आवागमन बढाया नहीं जाएगा। रेलवे ने यह बताया है, ‘हाईकोर्ट ने परियोजना पर रोक लगाई है’ यह बात झूठी है क्योंकि इस मसले पर अभी भी सुनवाई होनी है। इसके अलावा रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किए गए आदेश की बात भी पूरी तरह झूठ है। मंत्रालय के मुताबिक़ क़ानूनी तौर पर अगर रेलवे की ज़मीन पर किसी भी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी स्थानीय प्रशासन की ज़रूरत नहीं पड़ती है।