Thursday, December 12, 2024
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बांग्लादेश में संविधान का ‘खतना’: सेक्युलर, समाजवादी जैसे शब्द हटाओ, मुजीब से राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनो – सबसे बड़े सरकारी वकील ने दिया सुझाव

युनुस सरकार की कोशिशों का सीधा अर्थ यह है कि वह बांग्लादेश को इस्लामी बहुलवाद वाला एक देश बनाना चाहती है और यह भी संभव है कि वह आगे चल कर सेक्युलरिज्म हटा कर इस्लाम को देश का आधिकारिक धर्म घोषित कर दे।

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद देश के इस्लामीकरण की तैयारी हो रही है। बिना किसी चुनाव के सत्ता चला रही युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान से ‘सेक्युलर’ शब्द निकालने की तैयारी कर रही है। युनुस सरकार इसी के साथ बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने वाले बंगबंधु मुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनना चाहती है। यह बात खुले तौर पर बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने देश के हाई कोर्ट में कही है।

क्या है युनुस सरकार का प्लान?

युनुस सरकार में अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्ज़माँ ने हाई कोर्ट में देश के संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की वकालत की है। उन्होंने यह बात हाई कोर्ट में संविधान के 15वें संशोधन पर हो रही बहस के दौरान दिया है। युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान का 15वां संशोधन रद्द करना चाहती है। असदुज्ज्माँ ने कहा, “हम चाहते हैं कि संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटा दिए जाएँ… ‘समाजवाद’ नहीं, बल्कि ‘लोकतंत्र’ राज्य की नीति का मूल सिद्धांत हो सकता है।”

असदुज्जमाँ ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करवाने की लड़ाई के हीरो, पहले राष्ट्रपति और तख्तापलट से हटाई गईं प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा दिए जाने का भी कोर्ट में विरोध किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें 15वें संविधान संशोधन से यह दर्जा मिला है, जो ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि इसको लेकर गंभीर बहस चल रही है।

कैसे सेक्युलर बना था बांग्लादेश, क्या है 15वाँ संशोधन?

15वाँ संविधान संशोधन 2011 में शेख हसीना की सरकार लेकर आई थी। इस संविधान संशोधन के जरिए ही सेक्युलर और समाजवादी शब्द जोड़े गए थे। इसके साथ ही इसी संविधान संशोधन से मुजीबुर्रहमान को राष्ट्रपिता घोषित किया गया था। इस संशोधन के जरिए सत्ता पर असंवैधानिक तरीकों से कब्ज़ा किया जाना भी अवैध करार दे दिया गया था। इसके अलावा इस संशोधन के जरिए अस्थायी सरकार बनाए जाने का नियम खत्म कर दिया था।

15वाँ संविधान संशोधन उन लोगों पर भी चुनाव लड़ने की रोक लगाता है जिनको 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की मदद और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए सजा मिली हो। इस संशोधन में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भी प्रावधान किए गए थे। देश में सत्ताधारी अपनी मनमानी ना कर पाएँ, इसके लिए आपताकाल की अधिकतम सीमा भी 120 दिनों के लिए ही कर दी गई थी। अब युनुस सरकार इसी संविधान संशोधन को खत्म करना चाहती है।

क्या इस्लामी मुल्क बनाने की तैयारी में है युनुस सरकार?

अब जब युनुस सरकार 15वाँ संशोधन खत्म करने की तैयारी में है। इसको लेकर बांग्लादेश में हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई है। युनुस सरकार सरकार याचिका लगाने वालों के पक्ष में है। उसके तरफ से वकीलों की फ़ौज खड़ी करके इस संशोधन को असंवैधानिक करार दिए जाने की कोशिश हो रही है। युनुस सरकार की कोशिशों का सीधा अर्थ यह है कि वह बांग्लादेश को इस्लामी बहुलवाद वाला एक देश बनाना चाहती है और यह भी संभव है कि वह आगे चल कर सेक्युलरिज्म हटा कर इस्लाम को देश का आधिकारिक धर्म घोषित कर दे।

यदि वह आधिकारिक तौर पर इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म नहीं भी घोषित करती तो भी सेक्युलर शब्द हटाए जाने के बाद इस्लामी उसूलों को थोपना आसान हो जाएगा। समस्या सिर्फ यहीं नहीं रुकती है। मुजीबुर्रहमान से राष्ट्रपिता का दर्जा छीनना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। यह दिखाता है कि वह उस आदमी के योगदान को भुलाना चाहती है जिसने करोड़ों बंगालियों को पाकिस्तान के अत्याचार से बचाया। मुजीब के राष्ट्रपिता रहते हुए देश को इस्लामीकरण की तरफ ले जाना मुश्किल होगा, क्योंकि इस्लामीकरण के यह सिद्धांत, मुजीब के सिद्धांतों के एकदम उलट दिखेंगे।

इसके अलावा इस संशोधन के खत्म होने से युनुस सरकार को संवैधानिक दर्जा भी मिल सकेगा और वह कार्यवाहक के नाम पर बिना आम जनता से चुने हुए देश को नियंत्रित कर सकेंगे। यदि यह संशोधन खत्म हुआ तो देश के अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक हो जाएँगे और उनको मिले विशेषाधिकार भी खत्म होंगे। बांग्लादेश के हिन्दू पहले ही इस्लामी कट्टरपंथ का सामना कर रहे हैं, 15वाँ संशोधन हटने के बाद वह अपनी आवाज भी नहीं उठा पाएँगे।

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