लोकसभा चुनाव की सरगर्मियाँ जैसे-जैसे बढ़ रही है, जनधार खो चुकी पार्टियों, लुटेरे-घोटालेबाज, सजायाफ्ता नेताओं, सत्ता के लिए देश को गिरवी रखने वाली पार्टियों और प्रोपेगेंडा पत्रकारों सभी की साँसे-ऊपर नीचे हो रही हैं। लोकसभा के चुनावी दौर में एक तरफ कॉन्ग्रेस से जहाँ लगभग सभी बची-खुची साख समेटने वाली पार्टियाँ किनारा करती नज़र आईं तो साथ ही महागठबंधन के महामिलावट की पोल भी खुलती चली गई। और अब पूरा महागठबंधन, जो सिर्फ मोदी विरोध में कुढ़ते नेताओं का जुटान था, तिनके की तरह बिखर गया।
गाँव में एक कहावत है “बहुते जोगी मठ उजाड़” अर्थात एक जगह जहाँ इतने प्रधानमंत्री गठबंधन करें, वहाँ इनके स्वार्थबंधन का तेल तो निकलना ही था और वह निकला भी। खैर अभी, इस लेख में मुख्य फोकस में मायावती हैं और उनका अपने भतीजे अखिलेश के साथ जनाधार बचाने की जद्दोजहद पर भी पड़ी धुन्ध साफ की जाएगी। साथ ही मायावती के “सर्व-समावेशी” कमेंट पर मीडिया के पाखंड पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा कि कैसे ये पूरा गिरोह लोकतंत्र की दुहाई देकर उसकी जड़ों में मट्ठा डालने पर आमादा है।
मायावती की रही-सही साख भी अब बची नहीं है इसमें कोई दो राय नहीं और अब जिस तरह उनके अपने ही उनसे किनारा कर रहे हैं उससे मायावती के बहुजन से लेकर सर्वजन की राजनीतिक धरातल भी खिसकती नज़र आ रही है। नफ़रत की राजनीति का बीज बोने वाली बसपा के सेफ वोटर भी अब कहीं और ठौर तलाश रहे हैं। क्योंकि वह अब जाति के नाम पर और ठगी के शिकार होने से बचने लगे हैं। जिसका अंदाजा मायावती को बखूबी है। इसलिए अब उनकी पूरी राजनीति खुद के कुनबे तक सिमट गई है।
यहाँ तक कि दलित राजनीति के दूसरे धड़े भी मायावती और उनकी पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें बसपा की डूबती नाव साफ दिखने लगी है। कभी बामसेफ की स्थापना कांशीराम ने की थी। बसपा की स्थापना के बाद कुछ चुनावों तक यह संगठन उसके लिए उसी तरह काम करता था, जैसे आरएसएस बीजेपी के लिए वैचारिक संगठन के रूप में काम करता है। हालाँकि, यह तुलना उतना सार्थक नहीं है, क्योंकि कभी भी RSS देश के ताने-बाने के विरोध में नहीं रहा, राष्ट्र सर्वोपरि होते हुए भी नफ़रत और घृणा को आरएसएस ने कभी भी बढ़ावा नहीं दिया। लेकिन कांशीराम ने अपनी राजनीतिक शुरुआत ही सवर्णों के खिलाफ अपमानजनक नारों के जरिए दलितों- पिछड़ों का ध्रुवीकरण करके सिर्फ उनका एकतरफा राजनीतिक लाभ उठाया। अब का बामसेफ तो इससे और आगे निकल गया है। वो सवर्णों में भी खासतौर से ब्राह्मणों को अपने निशाने पर लेने में घृणा और नफ़रत की सभी सीमाएँ लाँघ गया है।
बामसेफ ने बसपा से पूरी तरह किनारा कर लिया है, यहाँ तक कि बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने कह दिया, “उनके संगठन का मायावती और बसपा से कोई संबंध नहीं है और न ही लोकसभा चुनाव में कोई समर्थन। कांशीराम तक बसपा दलितों, बहुजनों के लिए काम कर रही थी, लेकिन जब से इसे मायावती ने हथिया लिया है तब से वो सर्वजन खासतौर पर ब्राह्मणजनों के लिए काम कर रही है। वो मिशन से भटक गई है। इसलिए उन्हें हमारा कोई समर्थन हो ही नहीं सकता।”
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मेश्राम ने यह भी कहा, “हाथी के पागल होने की संभावना होती है। इससे पहले कि हाथी पागल हो जाए, उस पर अंकुश लगाने के लिए महावत बैठा देना चाहिए। वरना हाथी हमारे ऊपर ही चढ़ जाएगा। कांशीराम जी ने जो हाथी (बसपा) पैदा किया था वो अब पागल हो गया है। बसपा अब लक्ष्य से भटक चुकी है। कांशीराम जी के समय वाली बसपा और अब वाली बसपा में काफी अंतर है। इसलिए हम उसके साथ नहीं हैं।”
दलितों के वोट पर अपना सर्वाधिकार का दावा बसपा, बामसेफ और प्रकाश अम्बेदकर भी करते रहे हैं लेकिन अब बामसेफ ने खुद को दलितों का का मसीहा बताते हुए, अन्य पर दलित हितों की अनदेखी का आरोप लगाया। महाराष्ट्र में प्रकाश अम्बेदकर के समर्थन पर मेश्राम ने कहा, “बिल्कुल, उन्हें भी समर्थन नहीं होगा, क्योंकि वो आरएसएस के इशारे पर काम कर रहे हैं। इसका मेरे पास सबूत है।” हालाँकि, जहाँ कुछ न मिले वहाँ हर जगह बीजेपी-RSS पर आरोप मढ़कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के उपक्रम से ज़्यादा यह और कुछ नहीं है।
देखा जाए तो बहुजन के हित की बात करने वाली लगभग सभी पार्टियाँ लगातार उनसे छल करती रहीं हैं, स्वहित और स्वार्थसिद्धि ही उनका अब मुख्य ध्येय रह गया है। जिस बीजेपी के ऊपर ये आरोप मढ़ते रहे वो सही मायने में सर्वजन हित के लिए काम करते हुए “सबका साथ, सबका विकास” के मूलमंत्र के साथ लगातार आगे बढ़ रही है। बीजेपी का जनाधार इन सभी विपक्षी पार्टियों के एकजुट होने और हर तिकड़म लगाने के बाद भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
आज ये सभी पार्टियाँ अपना जनाधार इस कदर खो चुकी है कि मायावती ने संभावित हार के मद्देनज़र लोकसभा चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है। फिर भी मायावती की पार्टी इस लोकसभा-चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर अपने लिए बची-खुची सम्भावना तलाश रही है। पिछले दिनों बसपा महासचिव सतीश मिश्रा की समधन ने भी बीजेपी ज्वाइन कर लिया।
ऐसे में राजनीतिक संजीवनी तलाश रही बसपा ने आज रामनवमी के दिन योगी आदित्यनाथ के हिन्दुओं से वोटिंग अपील पर अपनी बौखलाहट प्रदर्शित करते हुए ये भूल गई कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने मुस्लिमों से एक झुण्ड में सपा-बसपा को वोट देने की अपील की थी। ऐसा करके भी वो सेक्युलर थी। और मायावती के प्रतिक्रिया में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वोटिंग अपील के साथ ही एक बार फिर इन छद्म सेक्युलरों और वामपंथी पक्षकारों को खतरा नज़र आने लगा। हालाँकि, उस समय मायावती के मुस्लिमों के अपील में किसी को ध्रुवीकरण नज़र नहीं आया। सबने अपनी ज़ुबान सील ली थी।
VIDEO-
— SaahilMurli Menghani (@saahilmenghani) April 13, 2019
Mayawati makes it clear she has no regret over her Muslim remark.
A defiant Mayawati says, "contrary to reports I have not apologised to EC over my remarks".
Backgrounder- Mayawati's had in a rally asked Muslim community not to split its votes in the national election pic.twitter.com/68hNlIvBbR
ऊपर के वीडियो में, मायावती को स्पष्ट सुना जा सकता है कि वह मुस्लिम समुदाय से अपनी टिप्पणी और अपील पर चुनाव आयोग से माफी नहीं माँगेगी। वह यह भी सुनिश्चित करते हुए मुस्लिम समुदाय को यह स्पष्ट कर रही हैं कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम है और उन्हें इस पर कोई अफसोस नहीं है।
एक तरफ जहाँ मायावती मुस्लिम समुदाय से अपनी अपील पर अड़ी हुई हैं, वहीं उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आड़े हाथों लेने के लिए ट्विटर का सहारा लिया कि वे ’अली’ और ‘बजरंगबली’ के बीच मतदाताओं को बाँट रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुस्लिम वोटों की माँग और एकतरफा ध्रुवीकरण पर यह टिप्पणी की थी कि उनका कहना है कि केवल मुस्लिम ही उन्हें वोट दें, तो भाजपा हिंदुओं को एकजुट करना चाहेगी।
रामनवमी की देश व प्रदेशवासियों को बधाई व शुभकामनायें तथा उनके जीवन में सुख व शान्ति की कुदरत से प्रार्थना। ऐसे समय में जब लोग श्रीराम के आदर्शों का स्मरण कर रहे हैं तब चुनावी स्वार्थ हेतु बजरंग बली व अली का विवाद व टकराव पैदा करने वाली सत्ताधारी ताकतों से सावधान रहना है।
— Mayawati (@Mayawati) April 13, 2019
यहाँ दिलचस्प बात यह है कि मोदी, बीजेपी और योगी से घृणा की हद तक नफ़रत करने वाले इस गिरोह ने मायावती के मुस्लिम एकजुटता वाली टिप्पणी को बायपास करते हुए वामपंथी मीडिया गिरोह योगी आदित्यनाथ के अपील में साम्प्रदायिकता से लेकर और भी न जाने कौन-कौन से एंगल ढूँढ लाई है। जो यह दिखाता है कि कैसे पीएम मोदी को हराने के लिए लुटियंस मीडिया का बहुसंख्यक प्रोपेगेंडा अभियान अपना सब कुछ दाँव पर लगा चुका है। खैर अब तो जनता भी मीडिया के इन नमूनों के खूब मजे ले रही है। जिससे इन्हें मिर्ची लग रही है।
पता नहीं ये सभी मीडिया गिरोह कौन सा डोज लेते हैं कि एक तरफ बामसेफ से लेकर अपना जनाधार खो चुकी मायावती की यह अपील कि ‘मुस्लिम कॉन्ग्रेस को वोट न देकर अपना एक मुस्त वोट बसपा-सपा गठबंधन को दें।’ इसमें इन मीडिया गिरोहों को, न लोकतंत्र की हत्या नज़र आई, न विघटनकारी राजनीति दिखी बल्कि मायावती के बयान में इस गिरोह को समावेशी अवधारणा नज़र आ गई। जबकि मायावती के बयान पर योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी विभाजनकारी-विघटनकारी हो गई। इस पूरे गिरोह को एक बार फिर लोकतंत्र खतरे में नज़र आने लगा। सब अपने बिलों से निकलकर उछल-कूद मचाने लगे।
यह बिलबिलाहट जनाधार खो चुकी लुटेरी पार्टियों और चाटुकार पक्षकारों का सामूहिक रुदन है। जब तक यह सर्वजन के हित की बात नहीं करेंगे, जबतक ये प्रोपेगेंडा को निष्पक्षता के लिफाफे में लपेट कर जनता को धोखा देते रहेंगे, तब तक इनका भला नहीं होने वाला। अब जनता जाग चुकी है, धोखे से न नेता को वोट मिलने वाला है और न ही पक्षकारों को रीडर या दर्शक।