Monday, May 6, 2024
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उद्धव सरकार की आलोचना पर मुंबई पुलिस ने ‘एक्टिविस्ट’ हर्षाली पोद्दार को हिरासत में लिया, एल्गार परिषद हिंसा की भी है आरोपित

पुलिस ने पोद्दार को इससे पहले दो समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने और अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से शांति और सद्भाव को बिगाड़ने के आरोप में अप्रैल 2020 में हिरासत में लिया था।

कोरोना महामारी के दौरान उद्धव सरकार के लिए विवादित सोशल मीडिया पोस्ट शेयर करने के मामले में मुंबई पुलिस ने भीमा-कोरेगाँव की आरोपित हर्षाली पोद्दार को हिरासत में लिया है। पोद्दार के ख़िलाफ़ MRA मार्ग पुलिस थाने में केस दर्ज हुआ था। इसके बाद बुधवार को सत्र न्यायालय ने उनकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज की और आज उनके ख़िलाफ़ यह कार्रवाई हुई।

इस खबर को एल्गार परिषद और भीमा-कोरेगाँव शौर्य दिन प्रेरण अभियान के ट्विटर हैंडल से शेयर किया गया। फेसबुक पर भी प्रतिबंधित आतंकी संगठन कबीर काला मंच ने इस खबर को शेयर किया और दावा किया गया कि हर्षाली को फर्जी केस में पकड़ा गया है।

खबरों के अनुसार, सत्र अदालत ने पोद्दार की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए पिछले साल 29 अगस्त को अदालत द्वारा उसे दी गई अंतरिम सुरक्षा भी रद्द कर दी।

फर्जी पोस्ट शेयर करने पर पकड़ी गई हर्षाली पोद्दार  

पुलिस ने पोद्दार को इससे पहले दो समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने और अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से शांति और सद्भाव को बिगाड़ने के आरोप में अप्रैल 2020 में हिरासत में लिया था। पोद्दार ने मोहसिन शेख की एक फेसबुक पोस्ट अपनी टाइमलाइन पर साझा की थी। इसमें उन्होंने तबलीगी जमात और मुस्लिम समुदाय को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराने पर राज्य सरकार की आलोचना की थी।

गिरफ्तारी के भय से हर्षाली ने 27 अगस्त को जमानत याचिका दाखिल की और उनके वकील इशरत खान ने कहा कि उनके ऊपर कोई केस नहीं बनता। वकील ने न्यायालय को कहा कि पूरा केस बेबुनियाद है। उन्होंने आरोप लगाया कि चूँकि हर्षाली एक कार्यकर्ता हैं, इसलिए उन्हें फर्जी केस में फँसाया गया।

बता दें कि साल 2017 के भीमा-कोरेगाँव केस में पुणे पुलिस में हर्षाली का नाम पहले ही एफआईआर में मौजूद है। दिसंबर 2019 में उनका नाम मामले से जुड़ी एफआईआर में डाला गया था।

आरोपों के अनुसार, आरोपित ने कथित तौर पर “लोगों को उकसाने और हिंसा पैदा करने और कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असहमति फैलाने के लिए साजिश रची थी।” इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि आरोपित ने कथित तौर पर भारत और राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रची … 4 लाख राउंड और अन्य हथियारों के साथ M4 (परिष्कृत हथियार) की वार्षिक आपूर्ति के लिए 8 करोड़ रुपए का आयोजन किया, नेपाल और मणिपुर के सप्लायरों के माध्यम से गोला-बारूद का इंतजाम किया और अपने रोड शो के दौरान राजीव गाँधी-प्रकार की घटना की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रची।”

क्या है भीमा कोरेगाँव एल्गार परिषद

एल्गार परिषद भीमा-कोरेगाँव केस 31 दिसंबर 2017 को शनिवार वाड़ा में आयोजित हुए एल्गार परिषद के कार्यक्रम से संबंधित है। इसी कार्यक्रम के बाद 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की थी। वहाँ भीमा-कोरेगाँव युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ मनाने लाखों दलित इकट्ठा हुए थे, जिसे 1818 में पेशवा के ख़िलाफ़ लड़ा गया था और इसमें ब्रिटिशों ने जीत हासिल की थी। इस युद्ध में ब्रिटिशों की तरफ से अधिकतर दलित थे।

इस पूरे केस में 8 जनवरी को मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद पुणे पुलिस ने अपनी जाँच शुरू की। पुलिस के अनुसार, गिरफ्तार हुए ‘कार्यकर्ताओं’ ने दावा किया कि इस आयोजन को माओवादियों द्वारा पोषित किया गया था और आरोपित भी माओवादी ही हैं।

पुणे पुलिस ने इस मामले में 2 साल तक अपनी जाँच जारी रखी, फिर जाँच को इस वर्ष जनवरी में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी को ट्रांसफर कर दिया गया। मामला सँभालने के बाद एजेंसी ने दावा किया कि कुछ आरोपितों के डिवाइसों से ऐसे दस्तावेज और पत्र पाए गए, जिनसे पता चला कि उन लोगों के लिंक प्रतिबंधित सीपीआई (एम) समूह से थे।

मामला एजेंसी को ट्रांसफर होते ही इस केस में पुलिस ने 9 कथित बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया। इसमें सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस और वरवरा राव का नाम शामिल था। इन पर आरोप था कि इन्होंने वहाँ भड़काऊ भाषण दिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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