‘अरी मोरी मइया, जे का सुन लेओ’ की तर्ज पर वामपंथनों का दिल छिहत्तर बीट प्रति मिनट की रफ्तार से धकधकाने लगा कि युवा दिलों की धड़कन और निहायत ही सस्ते जॉनी डेप्प के नाम से विख्यात परमसम्माननीय, हम सबके आदरणीय, श्री अजीत भारती जी अब ऑपइंडिया की नौकरी छोड़ रहे हैं। आज जब श्री भारती जी के पास, जिन्हें कभी-कभार जॉनी डेप्प कहने वाली जनता भावातिरेक में जॉनी सिन्स भी कह देती है, यह खबर आई कि उन्हें ऑक्सफोर्ड से प्रोफेसरी का बुलावा आया है तो उन्होंने भारी हृदय से सीईओ को त्यागपत्र सौंप दिया।
हालाँकि, ऑक्सफोर्ड से उन्हें सिर्फ एक मेल ही आया था, जिसकी आईडी थी [email protected], जिससे उन्होंने तय कर लिया कि सही जगह से ही ईमेल आई है। ज्योंहि यह मेल आया तब से ही श्री भारती, यानी मैं, स्वयं से ही थर्ड पर्सन अर्थात् ‘अन्य पुरुष’ में बात करने लगे। इससे पता चलता है कि व्यक्ति बड़ा होते ही कितना बड़ा वाला हो जाता है।
उन्होंने पूर्व के पत्रकारों द्वारा ऐसे विलक्षण मौकों पर किए गए कार्यों का अनुसरण करते हुए सबसे पहले तो ट्विटर के बायो में ‘असिस्टेंट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड’ लिखा और फिर बाद में ऑपइंडिया के लोगों को बताया कि अब वो वहीं से इंग्लैंड की राजनीति और भारत द्वारा कोहिनूर लाने के राष्ट्रवादी प्रयासों पर ‘जेपेग’ फाइल पर टेक्स्ट में अपने विचार और नीचे में ‘श्री अजीत भारती, असोसिएट प्रोफेसर, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय’ लिख कर भेजेंगे।
इससे होता कुछ खास नहीं है, लेकिन बिना एक भी क्लास लिए हुए आप ‘टीचिंग एट ऑक्सफोर्ड’ लिख कर जब लंदन की सड़कों पर से ट्वीट करते हैं, तो उसका एक अलग किक मिलता है। जैसा कि श्री सलमान भाई खान ने भी कहा है कि जीवन में किक होना ही चाहिए। ये बात और है कि उन्होंने ये विचार फुटपाथ वाले कांड के बाद रखे।
साथ ही, परमसम्माननीय श्री अजीत जी ने ट्विटर पर अपने ऑक्सफोर्ड में जाने के महत्व को गंभीरता से लेते हुए वामपंथियों की जगह, अपने ही खेमे को लोगों को ‘बरनॉल’ आदि बाँटने लगे क्योंकि उन्हें किसी ने समझाया कि ऑक्सफोर्ड में जगह बनानी है तो वामपंथी बनना पड़ेगा। लोगों को नीचा दिखाना, बार-बार याद दिलाना कि ऑक्सफोर्ड अमेरिका में नहीं इंग्लैंड में है, आदि ऐसी आदतें हैं जो कि व्यक्ति को बड़े होने का आभास मिलते ही क्रियान्वित करते रहना चाहिए।
उन्होंने लंदन में एक घर भी देख लिया है और ऐलान कर दिया है कि वो लंदन में हैं जहाँ टेम्स नदी है। हाँ, भले ही पूरी दुनिया को पता है कि लंदन कहाँ है, और टेम्स किधर बहती है, फिर भी दुनिया को यह बताना आवश्यक है कि आप भी वहीं हैं, जहाँ टेम्स नदी है। श्री भारती को उनके मित्र अलख सुंदरम् ने बताया कि गोरों की जमीन पर जाते ही मुँह पर मुल्तानी मिट्टी लगा कर घूमें ताकि उन्हें ब्राउन समझ कर कोई दुष्टता न कर दे। अलख ने उन्हें सलाह देते हुए एक कहावत बताई कि ‘जैसे देस, वैसा भेष’। अलख से इतने पर न रहा गया तो उसने अंग्रेजी में भी कहा कि ‘व्हेन यू आर इन रोम, बिहेव लाइक बिहारी’।
श्री भारती जी से जब किसी ने पूछा कि ऑक्सफोर्ड में वो क्या पढ़ाने जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा, “मुझे शायद कैमिस्ट्री ऑफ बॉयोलॉजिकल फिजिक्स के लिए चुना गया है।” लेकिन सत्य तो यह है कि पिछले सोलह सालों से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य और पत्रकारिता में ही अनुभव हासिल किया है, और ऐसा कोई डिपार्टमेंट ऑक्सफोर्ड में है ही नहीं। इस पर श्री भारती ने लोगों को नीचा दिखाते हुए कहा, “आज कल दुनिया आगे बढ़ रही है, तुम लोग रह जाओगे व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के ही। जीवन बीत जाएगा गुड मॉर्निंग के मैसेज भेजने में। यूट्यूब से दुनिया लॉकडाउन में जलेबी ही नहीं, डलगोना कॉफी बनाना सीख रही है। मैंने भी नित्यानंद जी के स्पेस-टाइम से ले कर फैब्रिक ऑफ यूनिवर्स पर वीडियोज देख रखे हैं। बाद बाकी कसर इंटरस्टेलर, अवेंजर्स और टेनेट जैसी फिल्मों को देख कर पूरी कर ली।”
इतने के बाद भी श्री भारती जी की दलीलों से विरोधियों का मुँह बंद हो गया, लेकिन श्री भारती जी ने ट्विटर पर इस घटना के बारे में बताते हुए किसी रैंडम आदमी को टैग किया और लिखा, “I teach at Oxford!” कुछ लोगों ने श्री भारती को बताया कि ‘नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है’ कि तर्ज पर उन्हें बौराने की आवश्यकता नहीं है। इससे वो काफी नाराज हो गए और ऐसा कहने वाले के बारे में ट्वीट किया, “कुछ लोगों को मेरे ऑक्सफोर्ड जाने से बहुत दुख हो रहा है, बरनॉल लगा लो!”
श्री भारती मानते हैं कि जो ऑक्सफोर्ड चला जाता है वो स्वतः ही पूरे इंग्लैंड, स्पेन, इटली और अमेरिका की राजनीति के बारे में जानने लगता है। लेकिन स्वयं पता हो तो क्या फायदा, आपको पता है, यह बात लोगों को भी तो पता होनी चाहिए, अतः उन्होंने बिना किसी ट्रेंड के ट्वीट किया, “अगर आप जो बाइडेन की राजनीति को देखें, और फिर आप कमल हसन को देखें, जिन्हें वाइस प्रेसिडेंट चुना गया है, तो आपको पता चलेगा कि एक लोकतंत्र के रूप में अमेरिका कितना आगे है जिसने भारतीय फिल्म उद्योग को भी अपनाया है। यह सर्वसमावेशी चरित्र ही उसे एक महान लोकतंत्र बनाता है।” इस ट्वीट को ऑपइंडिया ने प्रमुखता से जेपेग फाइल बना कर अपने हैंडल से ट्वीट कर दिया।
यह लिखने के बाद उन्होंने तुरंत ट्रम्प समर्थकों को एक गंदी गाली दे दी, जो यहाँ अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। श्री भारती ने जब से यह ओहदा पाया है तब से वह बकैत कुमार को भी कुछ उल्टा-सीधा कहने को कुलबुला रहे थे। उन्होंने उसे चिढ़ाने के लिए हरे रंग के कपड़े पर ‘व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी’ लिखा हुआ टीशर्ट खरीदा और उसके साथ तस्वीर खिंचा कर ट्वीट कर दिया। उनके एक प्रशंसक ने ट्वीट के नीचे कमेंट किया, “षर, रबिसबा की तो सुलग गई होगी देख के!”
कुल मिला कर देखा जाए तो ऑपइंडिया छोड़ने का उन्हें दुख तो है लेकिन व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता रहता है। उन्होंने वादा किया है कि विदेश से वो लगातार अपने नाम के साथ ‘असोसिएट प्रोफेसर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ वाले जेपेग फाइल भेजते रहेंगे ताकि संस्थान का भी नाम ऊँचा हो कि वो अब डीयू, जेएनयू, एएमयू की कवरेज से ऊपर उठ कर ऑक्सफोर्ड तक पहुँच गए हैं।
हालाँकि, अभी श्री भारती जी गाँधी विहार के पच्चीस गज वाले मकान में ही हैं, लेकिन फ्री वीपीएन की मदद से उन्होंने ट्विटर पर अपने ‘निजी सचिव’ का अकाउंट खुलवा लिया है और उसे कहा है कि वो सर्वर लोकेशन लंदन का ही प्रयोग करे, और अपने अगले ट्वीट में यह लिखे:
“बोरिस जॉनसन को मैं देख रहा हूँ कि वो कोरोना के नए स्ट्रेन से लड़ने के लिए लॉकडाउन लगा रहे हैं। लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि अर्थव्यवस्था पर भी ध्यान देना आवश्यक है। दोनों में सामंजस्य बिठाना ही बेहतर नेतृत्व का परिचायक है! – अजीत भारती, असोसिएट प्रोफेसर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी”