किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कान्टैक्ट के छूने पर POCSO के तहत अपराध न मानने के हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। साथ ही भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने मामले के आरोपित को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब माँगा है।
A Bench headed by the Chief Justice of India SA Bobde also issues notice to the accused in the case, seeking his response in two weeks. https://t.co/RACAoDiQDZ
— ANI (@ANI) January 27, 2021
बता दें कि यूथ बार असोसिएशन में बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट के इस फैसले पर विवाद छिड़ गया था। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा बल्कि IPC की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध माना जाएगा।
हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने सेशन्स कोर्ट के फैसले में संशोधन किया था, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की परिभाषा में शारीरिक संपर्क प्रत्यक्ष होना चाहिए या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “स्पष्ट रूप से अभियोजन की बात सही नहीं है कि आवेदक ने उसका टॉप हटाया और उसका ब्रेस्ट छुआ। इस तरह बिना पेनेट्रेशन के यौन मंशा से सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ।”
हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी महाराष्ट्र सरकार से इस मामले में अपील दायर करने के लिए कहा था। महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के चेयरपर्सन प्रियांक कानूनगो ने कहा था कि फैसले में ‘यौन इरादे से बिना किसी पेनेट्रेशन के स्किन टू स्किन’ की भी समीक्षा किए जाने की जरूरत है और राज्य को भी इस पर संज्ञान लेना चाहिए। यह फैसला इस मामले में नाबालिग पीड़िता के लिए अपमानजनक प्रतीत हो रहा है।