समलैंगिक शादी को मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई का केंद्र सरकार ने विरोध किया है। दिल्ली हाई कोर्ट से केंद्र ने कहा कि अदालत अभी अत्यंत जरूरी मामलों की सुनवाई कर रही है। लिहाजा रोस्टर के हिसाब से इस पर गौर किया जाए।
केंद्र की दलीलों के बाद मामले की सुनवाई 6 जुलाई तक स्थगित कर दी गई है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के सामने याचिका पर सुनवाई को लेकर स्थगन-पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि देश फिलहाल एक महामारी से निपट रहा है। अन्य जरूरी मामले हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। मेहता ने कहा, “एक सरकार के रूप में, तात्कालिकता के संदर्भ में हमारा ध्यान वर्तमान मुद्दों पर है।” उन्होंने कोर्ट से यह भी कहा कि इस समय कानून अधिकारी भी महामारी से संबंधित मामलों से निपट रहे हैं।
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता सौरभ कृपाल ने कहा कि सरकार को तटस्थ होना चाहिए और कोर्ट को तात्कालिकता निर्धारित करनी होगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक अन्य वकील डॉ. मेनका गुरुस्वामी ने अदालत से कहा कि अस्पतालों में प्रवेश और उपचार के लिए भी इसकी जरूरत पड़ रही है। इसके जवाब में मेहता ने कहा, “अस्पतालों के लिए विवाह प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है। मैरिज सर्टिफिकेट के बिना किसी की मौत नहीं हो रही है।”
इससे पहले समलैंगिक विवाह को लेकर अपना रुख साफ करते हुए केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट से कहा था कि सेम सेक्स के जोड़े का पार्टनर की तरह रहना, भारतीय परिवार नहीं माना जा सकता और इसे मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। केंद्र ने कहा था, “हमारे देश में, एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह के संबंध की वैधानिक मान्यता के बावजूद, विवाह आवश्यक रूप से उम्र, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है।”
गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समान लिंग विवाह को मान्यता देने की माँग की गई है। याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा, गोपी शंकर एम, गीति थडानी और जी ओरवसी ने दायर कर रखी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हिंदू विवाह अधिनियम किसी भी दो हिंदुओं की शादी को अनुमति देता है। इसमें कहीं ऐसा नहीं कहा गया है कि शादी आदमी और औरत के बीच ही होनी चाहिए। लिहाजा समलैंगिकों को भी शादी का अधिकार होना चाहिए और उनकी शादी को मान्यता दी जानी चाहिए।