हिपोक्रेसी का पर्याय बन चुकी संस्था पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) एक बार फिर से विवादों में है। इस बार इस संस्था ने AMUL से पंगा लिया और उम्मीद के मुताबिक मुँह की खानी पड़ी। PETA ने अमूल को पत्र लिख कर vegan Milk के उत्पादन के लिए कहा था, लेकिन अमूल ने ऐसा जवाब दिया है कि PETA की बोलती ही बंद हो गई।
We do support cow slaughter bans. However, for them to have a practical effect, we must appreciate that the beef and leather industries are supplied cattle to kill, and are able to exist, largely thanks to the dairy sector.
— PETA India (@PetaIndia) May 30, 2021
हालाँकि, बाद में पेटा ने इस पर अपनी सफाई दिया, जिसका लब्बोलुआब यह था कि हम गाय का दूध पीते हैं, इसलिए होती है गौ-हत्या… डेयरी से बूचड़खानों में सप्लाई होती है गाय। दरअसल, पेटा इंडिया ने 26 मई को कहा था, “अमूल अपने उत्पादों के उत्पादन के लिए ‘शाकाहारी दूध (vegan Milk ) बनाना शुरू कर सकता है।” एनजीओ ने दावा किया था कि भारतीय किसानों को शाकाहारी भोजन से काफी फायदा होगा।
#PETA India supports beef bans. However, if we want to end slaughter, we must recognise the beef & leather industries exist coz they r supplied cattle to be killed by dairy industry. There’s no such thing as cows/buffaloes raised for beef in India https://t.co/wMrlYHd6my
— PETA India (@PetaIndia) May 29, 2021
अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर यह भी कहा, “पेटा चाहती है कि अमूल 100 मिलियन गरीब किसानों की आजीविका छीन ले और 75 वर्षों में किसानों के पैसे से बनाए गए सभी संसाधनों को genetically modified Soya के लिए अपने मार्केट को MNCs के हवाले कर दे, जो अपने उत्पादों को अत्यधिक कीमतों में बेचते हैं जिसे औसत निम्न मध्यम वर्ग बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
गाय-बछड़ा प्रेम दिखाने वाले पेटा को कानूनी बूचड़खानों में गायों के कटने से कोई दिक्कत नहीं है। वो सिर्फ गैर-कानूनी बूचड़खानों के बंद करने की बात कर रहा है। पेटा इंडिया की विज्ञप्ति में मोटे आकलन के हवाले से कहा गया कि देश में अवैध या गैर लाइसेंसी बूचड़खानों की संख्या 30,000 से ज्यादा है। हालाँकि, कई लाइसेंसधारी बूचड़खानों में भी पशुओं को बेहद क्रूरतापूर्वक जान से मारा जाता है।
पेटा इंडिया ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अनुरोध किया कि वे ऐसी पशुवधशालाओं को बंद कराएँ जिनके पास उपयुक्त प्राधिकरणों के लायसेंस नहीं हैं और जो कानून द्वारा निषिद्ध तरीकों का इस्तेमाल करती हैं।
पेटा ने सिर्फ अवैध या गैर लाइसेंसी बूचड़खानों में होने वाली पशुओं की हत्या पर तथाकथित दुख जताया है। लाइसेंसधारी बूचड़खानों में होने वाली हत्या से उसे कोई परहेज नहीं है। वास्तविकता यह है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार रहा है पशुपालन और कृषि। देश की तकरीबन 70% आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। वास्तव में ये संस्था देश में जारी डेयरी फार्म की छवि खराब कर vegan Milk जैसी बनावटी चीजों को बढ़ावा देना चाहती है।
PETA का मानना है कि दूध के व्यवसाय में जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है, लेकिन शायद PETA नहीं जानता कि भारत में सदियों से पशु पालन होता आया है और यहाँ के किसान पशु-प्रेमी होते हैं, उन पर क्रूरता करने वाले नहीं। यहाँ एक बात और समझ में नहीं आती कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा करने का आरोप भी हम पर लगता है और गायों के साथ क्रूरता करने के आरोपित भी हम ही हैं?
ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि PETA ने दावा किया था कि भारतीय किसानों को शाकाहारी भोजन से काफी फायदा होगा, पर कैसे? वैसे बेहतर यही होगा ये संस्था अपने मूल उद्देश्यों पर फोकस करें जो खुद जानवरों को बचाने के नाम पर उनकी हत्या कर देती है। यह वास्तविकता भी है, PETA एक विवादित संस्था है जो अपने फायदे के लिए किसी भी तरह के प्रोपेगेंडे को बढ़ावा देती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है। वर्जीनिया डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड कंज्यूमर सर्विसेज (VDACS) की रिपोर्ट के मुताबिक PETA ने साल 2019 में 1,593 कुत्तों, बिल्लियों और अन्य पालतू जानवरों को मार दिया था। वहीं 2018 में 1771 जानवरों की हत्या कर दी गई। इसी तरह 2017 में 1809, 2016 में 1411 और 2015 में 1456 जानवरों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1998 से लेकर 2019 तक PETA ने 41539 जानवरों की हत्या कर दी।
इस संबंध में HUFFPOST नामक एक अमेरिकी वेबसाइट पर वर्ष 2017 में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें तथ्यों के साथ यह दावा किया गया था कि PETA ना सिर्फ खुद जानवरों को मारता है, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है। इसके लिए PETA पशुओं से संबन्धित क़ानूनों का दुरुपयोग करता है। इस लेख के मुताबिक PETA ने अमेरिका के वर्जीनिया में वर्ष 2014 में एक पालतू कुत्ते को बिस्किट का लालच देकर अपने पास बुलाया और उसे पकड़ लिया।
पेटा कई बार अपने पशु-प्रेम की आड़ में हिन्दू-विरोधी एजेंडा को बढ़ावा देती आई है। वैसे तो पेटा हर धर्म के ऐसे त्योहारों पर टिप्पणी करता है, जो किसी न किसी तरीके से पशुओं के अधिकारों का हनन करते हैं, लेकिन जब बात हिन्दू धर्म के त्योहारों की आती है, तो पेटा अपनी एजेंडावादी मानसिकता के चलते ऐसे मामलों में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखाता है।
जानवरों की रक्षा के आड़ में PETA इंडिया ने कई बार हिन्दू त्योहारों पर निशाना साधा है। ईद जैसे इस्लामिक त्योहारों पर, कटने वाले बकरों को लेकर PETA इंडिया की न सिर्फ ज़ुबान सिल जाती है, बल्कि हिन्दुओं को शाकाहारी बनने की शिक्षा देने वाला PETA समुदाय विशेष को जानवरों को काटने के तौर तरीके भी बताता है।