Monday, December 23, 2024
Homeविविध विषयधर्म और संस्कृतिविदिशा विजय मंदिर: औरंगजेब ने जिसे उड़वाया तोपों से... अब उसी डिजाइन वाली नई...

विदिशा विजय मंदिर: औरंगजेब ने जिसे उड़वाया तोपों से… अब उसी डिजाइन वाली नई संसद में बैठेंगे सभी धर्मों के सांसद

1922 के समय मुस्लिमों द्वारा यहाँ नमाज पढ़नी शुरू कर दी गई, हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली पूजा का विरोध प्रारम्भ हो गया। जिसके बाद विजय मंदिर को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया और मुस्लिमों के लिए एक नई ईदगाह बनवाई गई।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर (किमी) दूर स्थित है विदिशा। यहाँ एक ऐसा ही हिन्दू धर्म स्थल है, जो लोगों के लिए पर्यटन का स्थान बन कर रह गया है लेकिन वास्तविकता में प्राचीन काल में यह भारत के विशालतम मंदिरों में से एक था। हम बात कर रहे हैं, विदिशा के विजय मंदिर की, जिसकी विशालता के कारण मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इसे तोप से उड़वा दिया था। लेकिन अनेकों इस्लामी आक्रमणों के बाद आज भी मंदिर के अवशेष बचे हुए हैं और आश्चर्य की बात यह है कि सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली नई भारतीय संसद की बनावट बिल्कुल इस मंदिर के समान ही है।

मंदिर का इतिहास

दरअसल विदिशा का विजय मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित था। चालुक्य राजाओं ने अपनी शौर्यपूर्ण विजय को अमर बनाने के लिए विजय मंदिर का निर्माण कराया था। चूँकि चालुक्य वंशी राजा स्वयं को सूर्यवंशी मानते थे, ऐसे में उन्होंने यह विशाल मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित किया। मंदिर के निर्माण का श्रेय चालुक्यवंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति को जाता है। इसके बाद 10वीं-11वीं शताब्दी के दौरान परमार शासकों द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। हालाँकि मंदिर ने कई बार इस्लामी आक्रमण भी झेला, जिसके कारण मंदिर क्षतिग्रस्त भी हुआ। ऐसे में मराठा शासकों के द्वारा भी मंदिर में जीर्णोद्धार कराए जाने के प्रमाण मिलते हैं।

खजुराहो के मंदिरों से भी विशाल

विजय मंदिर के अवशेषों के अध्ययन से यह जानकारी मिलती है कि यह मंदिर खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिरों से भी कहीं अधिक विशाल और समृद्ध था, साथ ही इस मंदिर में की गई नक्काशी भी उस दौर की सर्वश्रेष्ठ कलाकारी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि विजय मंदिर की ऊँचाई लगभग 100 थी और यह मंदिर आधा मील इलाके में फैला हुआ था। आज भी मंदिर का जो अवशेष है, वह एक ऊँचे बेस पर स्थापित है।

मंदिर में उस दौर की सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला की जानकारी मिलती है। मंदिर के दक्षिणी भाग की खुदाई करने पर मुख्य द्वार की विशाल चौखट प्राप्त हुई। इस पर शंख की बहुत सुन्दर कलाकृति उत्कीर्णित की गई है। इसके अलावा जिस चबूतरे पर मंदिर का निर्माण किया गया है, वहाँ पत्थरों पर अनेकों देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ निर्मित की गई हैं। मंदिरों के स्तंभों को यक्ष की आकृतियों से सुसज्जित किया गया है।

मंदिर से सम्बंधित कलाकृतियों में सबसे सुन्दर यहाँ मिला कीर्तिमुख माना जाता है, जिसका प्रदर्शन विदेशों में भी किया जा चुका है। मानव और सिंहों के मुख को उकेर कर जो कलाकृति बनाई जाती है, उसे कीर्तिमुख कहा जाता है और विदिशा के विजय मंदिर में मिलने वाला कीर्तिमुख अपने आप में अद्वितीय माना जाता है। मंदिर में प्राचीनकाल में कृष्णलीला आयोजित किए जाने के अवशेष भी मिलते हैं।

इस्लामी आक्रमण का इतिहास

विदिशा के इस विशाल विजय मंदिर ने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार इस्लामी आक्रमणों का सामना किया लेकिन फिर भी मुस्लिम कट्टरपंथी इस मंदिर की पहचान को नष्ट नहीं कर पाए। इतिहासकार निरंजन वर्मा के अनुसार सबसे पहले मंदिर में सन् 1233-34 के दौरान इस्लामी आक्रमण हुआ। दिल्ली के शाह मोहम्मद गौरी के गुलाम अल्तमश ने मंदिर और यहाँ स्थापित प्रतिमाओं को तोड़ दिया। लेकिन सन् 1250 के दौरान इसका पुनर्निर्माण किया गया। इसके बाद यह मंदिर सन् 1290 में अलाउद्दीन खिलजी और सन् 1459-60 के समय महमूद खिलजी के कट्टरपंथ का निशाना बना।

सन् 1532 में बहादुरशाह ने विजय मंदिर को नुकसान पहुँचाया। हालाँकि इन सब के बाद भी मंदिर को सुरक्षित रखने के प्रयास होते रहे। यही कारण था कि मुगल आक्रांता औरंगजेब के दौरान यह मंदिर अपनी विशालता के कारण प्रसिद्ध था। मंदिर का यही वैभव औरंगजेब से न देखा गया और उसने सन् 1682 में तोपों का उपयोग करके मंदिर का बड़ा हिस्सा नष्ट कर दिया। औरंगजेब के इस हमले के बाद मराठा शासकों ने मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य संपन्न कराया।

इतिहासकार वर्मा का कहना है कि सन् 1922 के समय मुस्लिमों द्वारा यहाँ नमाज पढ़नी शुरू कर दी गई और हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली पूजा का विरोध प्रारम्भ हो गया। 1947 के बाद से हिन्दू महासभा द्वारा इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया गया, जिसके बाद विजय मंदिर को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया और मुस्लिमों के लिए एक नई ईदगाह बनवाई गई।

प्रस्तावित संसद भवन से समानता

ऑपइंडिया की इस मंदिर शृंखला में मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताया गया था, जिसे भारत की तांत्रिक यूनिवर्सिटी कहा जाता था और इसी से प्रेरित होकर अंग्रेज वास्तुविद एडविन के लुटियंस ने 1921-27 के दौरान भारतीय संसद का निर्माण करवाया था।

देश के महत्वाकांक्षी सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंतर्गत अब नई संसद का निर्माण प्रस्तावित है। लेकिन जैसे ही इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत बनाई जाने वाली भारतीय संसद का प्रारूप सबके सामने आया, उसके बाद लोगों की नजर विदिशा के विजय मंदिर की ओर गई। विजय मंदिर को ऊँचाई (एरियल व्यू) से देखने पर प्रस्तावित भारतीय संसद बिल्कुल इसी की तरह दिखाई देती है। दोनों की ही आकृति त्रिभुजाकार है और इस्लामी आक्रमण से पहले विजय मंदिर की ऊँचाई भी लगभग 100 मीटर थी, ऐसे में दोनों संरचनाओं में अद्भुत मेल है।

कैसे पहुँचें?

विदिशा, भोपाल से लगभग 60 किलोमीटर (किमी) की दूरी पर स्थित है और भोपाल का राजा भोज हवाईअड्डा यहाँ का नजदीकी हवाईअड्डा है। इसके अलावा इंदौर के देवी अहिल्याबाई हवाईअड्डे से विजय मंदिर की दूरी लगभग 250 किमी है।

विजय मंदिर से विदिशा जंक्शन की दूरी लगभग 2 किमी है। विदिशा रेलमार्ग जरिए देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी विदिशा, मध्य प्रदेश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। राष्ट्रीय राजमार्ग 146 विदिशा से ही होकर गुजरता है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

किसी का पूरा शरीर खाक, किसी की हड्डियों से हुई पहचान: जयपुर LPG टैंकर ब्लास्ट देख चश्मदीदों की रूह काँपी, जली चमड़ी के साथ...

संजेश यादव के अंतिम संस्कार के लिए उनके भाई को पोटली में बँधी कुछ हड्डियाँ मिल पाईं। उनके शरीर की चमड़ी पूरी तरह जलकर खाक हो गई थी।

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।
- विज्ञापन -