जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों को मोदी सरकार बैन कर सकती है। संगठन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) की धारा 3 (1) के तहत कार्रवाई की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में पाकिस्तानी संस्थानों में कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस सीट देने के मामले में चार गिरफ्तारियों से पता चला है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से जुड़े संगठन उम्मीदवारों से पैसा लेकर उसका इस्तेमाल घाटी में आतंकी घटनाओं के लिए फंडिग में कर रहे थे।
अधिकारियों के मुताबिक, घाटी में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सदस्य हिज्बुल-मुजाहिदीन (एचएम), दुख्तरान-ए-मिल्लत (डीईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इन लोगों ने आतंकी फंडिंग के लिए हवाला के जरिए विदेशों से धन का संचय किया। इस फंड का इस्तेमाल सुरक्षाबलों पर पथराव करने, स्कूलों को व्यवस्थित रूप से जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने जैसे कार्यों के लिए किया गया। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करने का प्रस्ताव मोदी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत लाया गया है।
गौरतलब है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन वर्ष 1993 में हुआ था। शुरुआत में यह 26 कट्टरपंथी समूहों के साथ मिलकर बना था, लेकिन साल 2005 में इसमें फूट पड़ गई। इसी के साथ इसके नरम दल का नेतृत्व मीरवाइज और कट्टरपंथी दल का नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी करने लगे।
खास बात यह है कि 1993 के बाद ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि इस संगठन पर कोई सरकार प्रतिबंध लगाने जा रही है। इससे पहले पाकिस्तान समर्थक और अलगाववादी समर्थक संगठन जमात-ए-इस्लामी को 2019 में केंद्र द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके अलावा, आसिया अंद्राबी दुख्तारन-ए-मिल्लत और यासीन मलिक के जेकेएलएफ को भी क्रमशः 2018 और 2019 में प्रतिबंधित कर दिया गया।