इंडियन एक्सप्रेस ने अपने हालिया रिपोर्ट में हिंदुत्व विरोधी प्रचार के साथ नए साल की शुरुआत की है, जहाँ उसने ‘नमाज विरोधी ब्रिगेड’ (anti-namaz brigade) शब्द गढ़ा है और इसे गुरुग्राम में हिंदू संत कालीचरण महाराज की कानून को ताक पर रखकर की गई गिरफ्तारी के खिलाफ चल रहे शांतिपूर्ण विरोध से जोड़ दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विरोध मार्च का नेतृत्व कुलभूषण भरवा ने किया था, जो संयुक्त संघर्ष समिति के कानूनी सलाहकार हैं, जो सार्वजनिक स्थानों पर खुले में नमाज का विरोध कर रहे हैं। गुरुग्राम के हिंदू केवल नमाज के लिए सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इसे राजनीतिक इस्लाम के दावे के रूप में देखा जाना चाहिए।
गुरुग्राम बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भरवा, जिन्होंने 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया के पास सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर बंदूक तानने वाले किशोर का बचाव किया था। उन्होंने गाँधी के खिलाफ कालीचरण महाराज के आक्रोश का समर्थन किया और जिस तरह से छत्तीसगढ़ पुलिस ने अंतरराज्यीय प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए मध्य प्रदेश से उन्हें गिरफ्तार किया, उसकी निंदा की।
भरवा ने कहा, “हम कालीचरण महाराज द्वारा गाँधी के खिलाफ की गई टिप्पणी का पुरजोर समर्थन करते हैं और जिस तरह से छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया हम उसकी निंदा करते हैं। जब धर्म के आधार पर देश का बँटवारा हुआ तो गाँधी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? देश के विभाजन को स्वीकार करने में उनकी भूमिका के लिए यह देश गाँधी को कभी माफ नहीं करेगा।”
भाजपा के पूर्व नेता नरेंद्र सिंह पहाड़ी, जो 2019 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हार गए थे, ने आरोप लगाया कि कालीचरण महाराज की गिरफ्तारी जानबूझकर किये गए टारगेट का मामला है। उन्होंने कहा, “जब कोई हिंदू राष्ट्र और हिंदू हितों की बात करता है, तो तुरंत प्राथमिकी और गिरफ्तारी होती है, जबकि अन्य छूट जाते हैं।”
परवीन यादव, जो गुरुग्राम में खुले में नमाज का विरोध करने वाले एक समूह का हिस्सा थे, उन्होंने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, “अधिकारियों ने ओवैसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है, जो अपने भाषणों में हिंदुओं को धमका रहे हैं और भड़का रहे हैं।”
मामला एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पुलिस को खुली धमकी का था। “यह याद रखना। योगी हमेशा के लिए मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। मोदी हमेशा के लिए प्रधान मंत्री नहीं रहेंगे…” जिसका वीडियो वायरल हो गया था।
“हम मुसलमान समय के कारण चुप हैं लेकिन याद रखें कि हम अन्याय को नहीं भूलेंगे। हम आपके अन्याय को याद रखेंगे। अल्लाह, अपनी शक्तियों से, तुम्हें नष्ट कर देगा, इंशाअल्लाह। हम याद करेंगे। समय बदलेगा। फिर कौन आएगा तुम्हें बचाने? जब योगी वापस अपने मठ में जाएँगे, जब मोदी पहाड़ों पर जाएँगे, तो आपको बचाने कौन आएगा। याद रखें, हम नहीं भूलेंगे।”
गिरफ्तारी को तो भूल जाइए, ओवैसी के भाषण की निंदा उन छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों ने भी नहीं की थी, जो रायपुर मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा अब 13 जनवरी तक न्यायिक हिरासत में कालीचरण महाराज को फटकारने के लिए तैयार थे।
उत्तराखंड में हाल ही में धर्म संसद में अपने भाषण के दौरान, कालीचरण महाराज ने कहा था, “हमारी आँखों के सामने भारत दो भागों में कट गया था। ईरान, इराक और अफगानिस्तान पहले ही अलग हो चुके थे। बांग्लादेश और पाकिस्तान उनके द्वारा हमारी आँखों के सामने अलग हो गए। उन्होंने इन हिस्सों को भारत से अलग करने के लिए राजनीति का इस्तेमाल किया। उस ह#मी मोहनदास करमचंद गाँधी ने भारत को तबाह कर दिया। मैं उस ह#मी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे जी को नमन करता हूँ।”
उन्होंने भारत में नेहरू वंश के कुशासन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए गाँधी की आलोचना भी की।
जबकि कालीचरण महाराज को दंडित किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर कानून अपना काम करता है, लेकिन यह मामला यह सवाल खड़ा करता है कि गाँधी कितने सम्मान के पात्र हैं। और, हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मानदंड कैसे निर्धारित करते हैं?
2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि क्या गाँधी जैसे ऐतिहासिक शख्सियतों की रक्षा करना “समाज की सामूहिक जिम्मेदारी” नहीं थी। चूँकि “राष्ट्रपिता” के रूप में कोई आधिकारिक घोषणा या शीर्षक नहीं है, तकनीकी रूप से वह एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे। तो, क्या अन्य ऐतिहासिक शख्सियतों जैसे कि, बहुत ज़्यादा तिरस्कार किए जाने वाले वीर सावरकर को भी ऐसी ‘सुरक्षा’ नहीं मिलनी चाहिए?
यह भी ध्यान देने योग्य है कि मीडिया, विशेष रूप से इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुत्व के खिलाफ हर अवसर का प्रोजेक्ट कर रहा है। जबकि गुड़गाँव के हिंदू सार्वजनिक स्थानों पर नमाज का विरोध कर रहे थे, जिससे गंभीर उपद्रव हो रहा था, मीडिया इसे “नमाज विरोधी” विरोध के रूप में प्रदर्शित कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि विरोध करने वाले हिंदू खुद नमाज के खिलाफ थे। हालाँकि, यह पूरी तरह झूठ है।