2016 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुस आतंकी ठिकानों को टारगेट किया था। फिर 2019 में एयर स्ट्राइक की गई। लेकिन मोदी सरकार के जमाने में सेना ने जो पहली सर्जिकल स्ट्राइक की थी, वह म्यांमार में हुई थी। जून 2015 में म्यांमार की सीमा में घुसकर भारतीय सेना ने ऑपरेशन को अंजाम दिया था। इसी म्यांमार में फरवरी 2021 में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को सेना द्वारा अपदस्थ किए जाने के बाद से चीजें तेजी से बदलती दिख रही हैं।
सैन्य शासन वाले म्यांमार को हाल ही में चीन से मिंग क्लास की एक किलर पनडुब्बी मिली है। 20 दिसंबर 2021 को मलक्का स्ट्रेट से होते हुए चीनी पनडुब्बी पहुँची। यह बात भी सामने आई है कि म्यांमार नौसेना की की शिपयॉर्ड में एक विशाल ड्राई डॉक का भी निर्माण चल रहा है। इसके पीछे भी चीन बताया जा रहा।
उल्लेखनीय है कि म्यांमार में सियासी संकट के पीछे भी चीन की साजिश मानी जाती है। इसको लेकर वहाँ काफी उग्र प्रदर्शन भी हुए हैं। चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ (OBOR) परियोजना से भी चीन जुड़ा हुआ है। लेकिन जब तक लोकतांत्रिक सरकार रही यह परियोजना लटकी रही। लेकिन इस सरकार के तख्तापलट के बाद बीजिंग की घुसपैठ लगातार बढ़ रही है। चीन की मंशा को इससे भी समझा जा सकता है कि जब 3 फरवरी 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में म्यांमार में तख्तापलट के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया तो चीन ने अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया।
रणनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो भारत से म्यांमार काफी करीब है। चीन यहाँ पर कई सारी परियोजनाओं पर काम कर रहा है। वर्ष 2018 में चीन ने म्यांमार के साथ क्याउक्प्यू शहर में गहरे जल के बंदरगाह बनाने को लेकर समझौता किया था।
क्या है ड्राई डॉक
खबर ये भी है कि म्यांमार में चीन ड्राई डॉक बना रहा है। यंगून नदी के थिलावा शिपयार्ड के उत्तर में स्थित एक ग्रीन फील्ड में यह बन रहा है। 40,000 की क्षमता वाला यह ड्राई डॉक भारत से काफी नजदीक होगा। ड्राई डॉक एक प्रकार का संकरा बंदरगाह होता है, जिसका इस्तेमाल पनडुब्बी या युद्धपोतों की मरम्मत के लिए किया जाता है। ड्राई डॉक पानी में डूबा रहता है, लेकिन जैसे ही कोई पनडुब्बी या युद्धपोत आता तो दूसरी तरफ से इसके पानी को बाहर कर दिया जाता है ताकि उसकी मरम्मत की जा सके।
समुद्री गतिविधियों पर नजर रखने वाले रक्षा विशेषज्ञ एचआई सटन के मुताबिक, म्यांमार में चीन अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है, जो कि भारत के लिए खतरा बन सकता है। जिस शिपयार्ड को चीन बना रहा है कल को इस पर वो अपनी सेना भी तैनात कर सकता है। म्यांमार में इतने बड़े शिपयार्ड का निर्माण के पीछे दो तर्क दिए जा रहे। पहला यह कि म्यांमार किसी बड़े युद्धपोत का निर्माण कर रहा हो और दूसरा तर्क इसे चीन से जोड़ता है। इससे चीन की पहुँच भारत तक आसान हो जाएगी। दरअसल, भारत की एकमात्र ट्राई सर्विस थिएटर कमांड इसी क्षेत्र में है और चीन यहाँ से इस पर नजर रख सकता है।
BREAKING: New #OSINT article. #China is building a missive dry dock in Myanmar https://t.co/YVggZN6mji
— H I Sutton (@CovertShores) January 7, 2022
Often find China's blue roofs helpful around the world.
Belt & Blue Roofs?
Belt & Dry Docks?
Belt & Submarines? pic.twitter.com/T83mgSRKym
दरअसल, चीन की कोशिश है कि जिस तरह से उसने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का विकास करने के नाम पर पहले पाकिस्तान को जमकर कर्ज बाँटा और फिर जब पाकिस्तान उसके कर्ज को लौटाने में विफल रहा तो उस पर कब्जा करके बैठ गया। यहाँ पर उसने पीएलए को तैनात कर रखा है। ठीक उसी तरह से वो म्यांमार में भी कर सकता है।
इसी तरह से चीन ने भारत के पड़ोसी श्रीलंका में भी किया था। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह के विकास पर चीन ने अरबों डॉलर खर्च किए। चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज के जंजाल में कुछ इस तरह से फँसाया कि अब वो उससे उबर ही नहीं पा रहा है। श्रीलंका को चीन ने 5 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है। अपने देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए वह चीन से और एक अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है। स्थिति यही रही तो अगले कुछ महीनों में श्रीलंका दिवालिया हो जाएगा। ठीक उसी प्लान के तहत चीन अब म्यांमार में निवेश करता दिख रहा।
इसके जरिए चीन न केवल भारत के पूर्वी तट बल्कि अंडमान सागर के काफी नजदीक पहुँच जाएगा। चीनी पीएलए द्वारा भारत की जासूसी की कई मामले सामने आ चुके हैं। कई बार चीन की परमाणु पनडुब्बियों को भारत की समुद्री सीमा के भीतर देखा गया है। पिछले साल 21 जनवरी 2021 को भी चीन के एक जासूसी जहाज को इंडोनेशिया की नौसेना ने पकड़ा था। इसके अलावा पानी के भीतर चलने वाला उसका एक ड्रोन भी पकड़ा गया था। इससे ये स्पष्ट होता है कि चीन इस क्षेत्र में लगातार जासूसी कर रहा है।
इसी रणनीति के तहत चीन ने अफ्रीकी देश ज़िबूती में अपना निवेश किया है और उसके एक बंदरगाह को अपना मिलिट्री बेस बनाया है। जनवरी 2016 में चीन ने 10 साल की लीज पर ज़िबूती में लॉजिस्टिक्स सपोर्ट बेस लिया। 2017 के मध्य तक चीन ने उसको पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए एक सपोर्ट बेस में बदल दिया।
किस तरह चीनी चुनौती का जबाव दे रहा भारत
हालाँकि, भारत भी चुप नहीं बैठा है और लगातार अपनी रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ा रहा है। ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत की इसी रणनीति का एक हिस्सा है। इसके अलावा दक्षिण हिंद महासागर में भी भारत का मालदीव के साथ अच्छा रिश्ता है। वहीं भारत ने भी म्यांमार को पनडुब्बी दिया है।
इसके अलावा दक्षिण से चीन को रणनीतिक जबाव देने के लिए हंबनटोटा के जबाव में श्रीलंका और भारत के बीच कोलंबो बंदरगाह के विकास को लेकर समझौता हुआ है। कोलंबो श्रीलंका का सबसे बड़ा बंदरगाह है, जहाँ से 90 फीसदी समुद्री माल की आवाजाही होती है। 35 साल से लटके पड़े त्रिंकोमाली ऑयल टैंकर फार्म के पुनर्विकास के लिए भी भारत और श्रीलंका के बीच समझौता हुआ है, जिसे चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसके अलावा क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) के जरिए भी चीन को घेरा जा रहा है।